
हाल ही में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के एक समुद्री तट पर करीब पचास पायलट व्हेल मछलियां मृत पाई गईं. कुछ और व्हेल जिनमें जीवन शेष था. उन्हें बचाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन अथक प्रयासों के बावजूद वैज्ञानिक और बचावकर्ता आखिरकार हार गए और इस झुंड की लगभग सभी मछलियों ने दम तोड़ दिया. ऐसा नज़ारा पहले कभी नहीं देखा गया था. क्योंकि समुद्र तट तक आने से पहले ये व्हेल मछलियां काफी देर तक एक सघन समूह में एक दूसरे के बिलकुल करीब रह कर तैरती रहीं. इस खबर ने एक बार फिर विशेषज्ञों, समुद्र और पर्यावरण प्रेमियों को न सिर्फ दुखी किया बल्कि अचंभित भी. आप भी कभी-कभार ऐसी खबरों से रूबरू होते होंगे जिनमें व्हेल मछलियों द्वारा ‘आत्महत्या’ का ज़िक्र होता है.
प्रायः गहरे पानी में रहने वाली ये मछली जब उथले पानी में आती है, तो अपने ही बोझ से बेदम हो जाती हैं. धरती के गुरुत्वाकर्षण से अनजान उनके अंग काम करना बंद कर देते हैं. ये भी विडंबनापूर्ण है कि गहरे पानी का ये जीव ऐसी स्थिति में डिहाइड्रेशन से मर जाता है और हाई टाइड यानी ज्वार आने की स्थिति में पानी उनके ब्लोहोल को ढक लेता है इसलिए वे डूब कर भी मर जाती हैं.
व्हेल मछलियां समुद्र के इको सिस्टम के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. दरअसल, व्हेल का आहार हैं हेरिंग, क्रिल और स्प्रेट जैसी चारा मछलियां (फोरेज फिश). इन मछलियों में आयरन की मात्रा अधिक होती है. चूंकि इस विशाल समुद्री जीव को मांसपेशियों की नहीं चर्बी की ज़्यादा ज़रूरत होती है, इसलिए भोजन में मौजूद आयरन व्हेल के मल से बाहर निकल जाता है. अनेक अध्ययनों से यह पता चला है कि समुद्र में सांद्र आयरन पर ही माइक्रोस्कोपिक एल्गी पैदा होती है,
जिसमें समुद्र के तल में विभिन्न प्रकार का जीवन पनपता है. समुद्र की गहराइयों में यह आयरन या तो धूल कणों के जरिए आता है या फिर तलहटी से पानी के ऊपर उमड़ने से. एक अन्य प्रमुख स्रोत है. व्हेल का मल. सरल शब्दों में कहा जाए तो व्हेल समुद्र में जहां-जहां जाती है वह अपने मल से इन एल्गी के प्रजनन और प्रसार में मदद करती हैं.
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व्हेल चूंकि एक विशालकाय मछली है इसलिए वह अपने साथ-साथ समुद्र की तलहटी में स्थित पोषक तत्वों को पूरे समुद्र में फैलाने का महत्वपूर्ण काम भी करती है. यह लगभग ऐसा होता है मानो कोई किसान अपने खेत में खाद का छिड़काव कर रहा हो. इसीलिए व्हेल को समुद्र का किसान कहा जाता है. क्योंकि इसके जरिये समुद्र की तलहटी में स्थित एल्गी और अन्य छोटे जीवों को भी जीवन चलाने के लिए आवश्यक पोषक तत्व मिल जाते हैं.
लंबे अध्ययन के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर आए हैं कि जब-जब समुद्र में व्हेल की संख्या ज़्यादा रही, समुद्र में जन-जीवन और समुद्री ईको सिस्टम स्वस्थ रहता है. यही वजह है कि अब दुनिया भर में व्हेल के शिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया है. लेकिन वैज्ञानिक आज तक यह ठीक-ठीक नहीं जान पाए हैं कि व्हेल मछली और खासकर पायलट व्हेल सामूहिक तौर पर यह आत्मघाती कदम क्यों उठाती है? क्यों ये सौम्य और विशाल मछलियाँ अचानक एक झुंड बना कर समुद्र तट पर आ जाती हैं?
व्हेल के इस रहस्यमय बर्ताव को ‘बीचिंग’ कहा जाता है. जब ये एक समूह में तट पर आकर फंस जाती हैं तो इसे ‘मास सेटेशियन स्ट्रेंडिंग’ कहा जाता है. लेकिन क्या वो रास्ता भूल जाती हैं, या फिर किसी अन्य खतरनाक शिकारी जानवर से बचने के लिए ऐसा करती हैं? अभी ठीक-ठीक कुछ नहीं कहा जा सकता. करीब एक हफ्ता पहले 55 व्हेलों का समूह स्कॉटलैंड के एक समुद्र तट पर ‘फंसा’ हुआ था जिनमें से सिर्फ एक को ही विशेषज्ञ बचा पाये. विशेषज्ञों का अनुमान था कि ये व्हेल संभवतः एक गर्भवती साथी के प्रसव में मदद करना चाहती थीं जिसे प्रसव में बहुत दिक्कत आ रही थी.
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि तनाव ग्रस्त होना भी इसका एक कारण हो सकता है, या फिर व्हेल के एक समूह में अगर कोई एक मछली किसी रोग से संक्रमित हो जाए तो भी वे ऐसा बर्ताव कर सकती हैं. एक कारण और बताया जाता है. चूंकि व्हेल ध्वनि तरंगों से समुद्र में अपनी राह खोजती हैं इसलिए हो सकता है कि समुद्र के भीतर मनुष्य द्वारा किए गए तकनीकी प्रयासों से उनकी ध्वनि तरंगों में व्यवधान आ जाता है और वे रास्ता भूल कर समुद्र तट तक आ जाती हैं.
मनुष्य के द्वारा समुद्र के भीतर मशीनी शोर से व्हेल पर क्या असर पड़ता है- यह भी ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है. कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह शोर संभवतः व्हेल मछलियों में अवसाद, तनाव और भ्रम की स्थिति भी पैदा कर सकता है जिसके नतीजतन ये ऐसा कदम उठाती हैं. जो भी हो, इस सौम्य और विशालकाय मछली का इतनी बड़ी संख्या में आत्मघात करना हमारे समुद्रों के लिए अच्छी खबर नहीं है, खास तौर पर अब, जबकि हम क्लाइमेट चेंज के दैत्य से जूझ रहे हैं.