भारत खेती-किसानी और विविधताओं से भरा देश है. यहां अलग-अलग फसलें अपनी खास पहचान की वजह से मशहूर होती हैं. वहीं, कई फसलें अपने अनोखे नाम के लिए भी जानी जाती हैं. ऐसी ही एक फसल है जिसकी वैरायटी का नाम विराट है. दरअसल, ये वैरायटी प्रमुख दलहनी फसल मूंग की एक खास किस्म है, जिसकी खेती गर्मी के दिनों में की जाती है. वहीं, मूंग की दाल को हरा चना भी कहा जाता है. मूंग की खेती भारत के कुछ राज्यों में प्रमुख रूप से की जाती है. इसकी खेती किसान खरीफ और जायद दोनों सीजन में अलग-अलग समय पर करते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं इसकी 5 उन्नत वैरायटी के बारे में.
विराट किस्म: मूंग की ये एक हाइब्रिड किस्म है. ये किस्म पीला मोजेक वायरस का प्रतिरोधी है. यह ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौसम में बोई जा सकती है. इसकी फलियां लंबी, मोटी, और चमकदार हरे रंग की होती हैं. इनसे उगाई गई फसल की प्रति फली में दानों की संख्या भी ज्यादा होती है. साथ ही इस किस्म में मूंग की अन्य प्रचलित किस्मों की तुलना में अधिक रोग सहनशीलता होती है.
शिखा किस्म: मूंग की ये किस्म फाइबर और आयरन के साथ प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत है. इसकी खेती खरीफ के साथ-साथ गर्मियों की फसल के रूप में भी की जा सकती है. इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन रेतीली और दोमट मिट्टी में खेती करने पर सबसे अच्छा उत्पादन होता है.
MH -1142: मूंग की एमएच-1142 किस्म को चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म 63 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है. इस किस्म की उपज क्षमता 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. खरीफ में इसकी बुवाई का उपयुक्त समय जून से जुलाई तक है. यह किस्म उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, झारखंड और उत्तराखंड में बुवाई के लिए अच्छी मानी जाती है.
पूसा विशाल: ये किस्म खरीफ मौसम में कम समय में अधिक उपज देने वाली एक किस्म है. यह किस्म पूरे भारत में उगाई जा सकती है. पीला मोजेक रोग का प्रभाव इसके पौधों पर नहीं देखा जाता है. इसके बीज चमकीले हरे रंग के दिखाई देते हैं. इस किस्म की फसल लगभग 60 से 65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. पूसा विशाल किस्म का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन लगभग 15 क्विंटल है.
जवाहर मूंग-721: मूंग की यह किस्म मध्यम अवधि की उपज देने के लिए विकसित की गई है. इस किस्म को खरीफ और जायद दोनों मौसमों में उगा सकते हैं. इस किस्म के पौधे बुवाई के लगभग 70 से 75 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. साथ ही इस किस्म से लगभग 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज ले सकते हैं. इसकी फलियों के एक गुच्छे में चार से पांच फलियां मिलती हैं. इसके पौधों पर येलो मोजेक और पाउडरी मिल्ड्यू रोग का प्रभाव नहीं देखा जाता है.