खेत नहीं तो कौन खा रहा खाद, आख़िर कहां खप रही गोदाम से चली बोरी?

खेत नहीं तो कौन खा रहा खाद, आख़िर कहां खप रही गोदाम से चली बोरी?

यूरिया के लिए मारामारी हो रही है. बच्चे, जवान और बूढ़े सभी लाइनों में लग रहे हैं. एक एक बोरी खाद के लिए क्या महिलाएं और क्या पुरुष, सबका हालट टाइट है. उधर सरकार कहती है कि खाद की कोई कमी नहीं है. फिर खाद के लिए इतनी मारामारी क्यों है?

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 08, 2025,
  • Updated Aug 08, 2025, 7:10 AM IST

यूरिया और डीएपी के लिए हाहाकार है. किसान लगातार अपनी रातें काली कर रहे हैं. लाइनों में खड़े खड़े उनका सब्र जवाब दे रहा है, मगर यूरिया नहीं मिल रही. मिलता है तो केवल आश्वासन. मज़े की बात तो ये है कि सरकारें मुनादी पीटती हैं कि हमने हर जगह खाद का बंदोबस्त किया हुआ है. फिर सवाल ये है कि आख़िर गोदाम से चली खाद को कौन खा रहा, खेत या मुनाफाखोर? आइए इसी के बारे में जानते हैं.

यूरिया के लिए देश के अलग-अलग कोने से जैसी तस्वीरें आ रही हैं, वह चौंकाने वाली और दुखी करने वाली हैं. कहीं लाइनों में किसान बेहोश हो रहे तो कहीं टोकन देकर उन्हें चलता किया जा रहा. यहां तक कि किसान का पूरा परिवार एक दो बोरी यूरिया के लिए लाइन में लगा है. जवान, बूढ़े, बच्चे सब. कर्नाटक के गडग से तो एक ऐसी खबर आई जिसे सुनकर आप चौंक जाएंगे. यहां किसानों के बच्चे यूरिया के लिए लाइनों में लग रहे हैं. इससे उनका स्कूल छूट रहा है. यानी यूरिया ने स्कूल तक को अपनी चपेट में ले लिया है. ऐसी कई कहानियां हैं जो सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर यूरिया की बोरी कहां जा रही है?

कहां गई किसानों की यूरिया?

इसके लिए एक रिपोर्ट पर गौर करे. ये रिपोर्ट है 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की. इसमें कहा गया है कि जो यूरिया किसान के खेत में जानी चाहिए. वह यूरिया प्लाईवुड, वार्निश, पेंट, एडब्ल्यू सॉल्यूशन, बीयर, अवैध शराब, एक्वाकल्चर, पोल्ट्री और मवेशियों के फीड में खप रही है. यानी जिस यूरिया को खेत और फसल में डालना चाहिए, वह यूरिया मुनाफाखोरों के कारखानों में जा रही है. ऐसे में भला गोदामों के बाहर खाद के लिए मारामारी क्यों न होगी. भला किसान को क्या पता कि यूरिया की बोरी मुनाफाखोरों ने खेत के बजाय फैक्ट्रियों और कारखानों में पहुंचा दी है. 

आंध्र में चौंकाने वाला मामला

दरअसल, पूरा मामला आंध्र प्रदेश में सामने आया है जहां खादों के दुरुपयोग को लेकर केंद्र के निर्देश पर राज्य सरकार ने एक्शन लिया. इसे रोकने का साफ-साफ संदेश दिया. केंद्र ने राज्य सरकार को बताया कि पिछले साल की तुलना में इस साल खरीफ सीजन में यूरिया की मांग में इतना बड़ा उछाल कैसे आया. पिछले साल जहां 3 लाख मीट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल हुआ था, इस साल वह 3.88 लाख मीट्रिक टन पर कैसे पहुंच गया. यानी सीधा 88,000 मीट्रिक टन का उछाल. केंद्र के इस सवाल पर आंध्र प्रदेश सरकार के कान खड़े हो गए.

वार्निश और पेंट की खेती!

यूरिया, जो केवल फसलों की खेती के लिए है, उसे कथित तौर पर प्लाईवुड, वार्निश, पेंट, सॉल्यूशन, बीयर, अवैध शराब निर्माण, एक्वाकल्चर, मुर्गी पालन और पशु आहार जैसे उद्योगों में इस्तेमाल के लिए भेजा जा रहा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि इसमें से कुछ कथित तौर पर सीमा पार पड़ोसी राज्यों में तस्करी करके पहुंचाई जाती है. आंध्र प्रदेश के कई जिले जिनमें एनटीआर, एलुरु, पालनाडु, कुरनूल, अनंतपुर, श्री सत्य साईं, चित्तूर, तिरुपति, एएसआर, मान्यम, विशाखापत्तनम और श्रीकाकुलम शामिल हैं जो तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के साथ बॉर्डर साझा करते हैं, वहां से बॉर्डर पार यूरिया तस्करी का जोखिम बढ़ जाता है. इस घटना से समझा जा सकता है कि फसलों के लिए बनी यूरिया कहां जा रही है और उधर गोदामों के बाहर किसान क्यों मजबूर है.

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