ICAR- भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान (ICAR-IISWC), देहरादून द्वारा 20 जून 2025 को विकसित कृषि संकल्प अभियान (VKSA)-2025 के समापन पर एक अनुभव साझा कार्यशाला का आयोजन किया. संस्थान के निदेशक डॉ. एम. मधु ने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे अभियान के दौरान पहचानी गई प्रमुख कृषि चुनौतियों पर अनुसंधान परियोजनाएं प्रस्तावित करें. वहीं, प्रमुख वैज्ञानिक और वर्कशॉप को-ऑर्डिनेटर डॉ. एम. मुरुगानंदम ने बताया कि 15 दिन तक चले VKSA अभियान के दौरान महत्वपूर्ण नीतिगत सिफारिशें और रिसर्च योग्य प्राथमिकताएं सामने आईं. इन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. अभियान के दौरान कुछ नीतिगत सिफारिशें भी सामने आई हैं.
एक केंद्रीयीकृत और व्यापक कृषि तकनीकी समाधान डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए, जिसे राज्य के कार्यान्वयन अधिकारियों के साथ सक्रिय रूप से साझा किया जाए, ताकि खेत-स्तर पर प्रभावी और समय पर फैसले लिए जा सके.
समुदाय आधारित विस्तार सहायता: राज्य विभागों के विकास अधिकारियों की सीमित पहुंच को देखते हुए, “फार्मर्स फ्रेंड्स” और “पैरा-फिशर्स” जैसे प्रशिक्षित स्थानीय संसाधन व्यक्तियों की नियुक्ति जरूरी है. स्वास्थ्य क्षेत्र में आशा कार्यकर्ताओं या पशु चिकित्सा में पैरा-वैटरनरी स्टाफ की तरह, ये व्यक्ति किसानों, राज्य विभागों और वैज्ञानिक संस्थानों के बीच सेतु का कार्य करेंगे.
रेगुलर समन्वय बैठकों की जरूरत: वैज्ञानिकों, विकास विभाग के अधिकारियों, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के प्रतिनिधियों और स्थानीय किसान मित्रों के साथ त्रैमासिक समन्वय बैठकें संस्थागत रूप से आयोजित की जानी चाहिए. ये बैठकें ICAR के क्षेत्रीय समिति बैठकों (RCMs) के पूरक रूप में कार्य करेंगी.
वन्यजीव संघर्ष का निवारण: फसलों को जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए नीति आधारित उपाय अपनाए जाने चाहिए. इसमें सौर या विद्युत बाड़ लगाना और खेतों के पास जंगल से सटे क्षेत्रों में बफर फसलें या फलदार वृक्ष लगाना शामिल है.
बीज, उर्वरक और रसायनों जैसे गुणवत्तापूर्ण इनपुट की समय पर और पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. इसके लिए इनपुट विक्रेताओं का पंजीकरण, निगरानी और नियमन अनिवार्य किया जाए, ताकि किसान केवल प्रमाणित और गुणवत्ता वाले उत्पादों का इस्तेमाल करें.
क्षेत्रीय कृषि कॉल सेंटर की स्थापना: क्षेत्रवार एकीकृत कृषि कॉल सेंटर स्थापित किए जाएं, जो बहु-विषयी विशेषज्ञों से सुसज्जित हों. ये केंद्र मोबाइल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से नियमित कृषि सलाह भी प्रदान करें.
मूल्य संवर्धन और बाजार संपर्क: लहसुन, अदरक, हल्दी जैसे उच्च मूल्य वाली फसलों और पॉलीहाउस उत्पादों के लिए मूल्य संवर्धन, भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन अवसंरचना को सुदृढ़ किया जाए ताकि किसानों की आय और प्रतिस्पर्धा बढ़ सके.
विद्यालयों में कृषि साक्षरता: प्राथमिक शिक्षा पाठ्यक्रम में कृषि की मूलभूत जानकारी शामिल की जाए, ताकि युवाओं में कृषि के प्रति रुचि विकसित हो और कृषि व्यवसाय का भविष्य सुरक्षित हो.
जरूरत आधारित इनपुट वितरण: इनपुट वितरण को लक्ष्य-आधारित बनाने से बचा जाए. जैसे, नैनो यूरिया का वितरण केवल स्थानीय आवश्यकता और किसान की पसंद के अनुसार किया जाए, न कि लक्ष्य पूर्ति हेतु, विशेषकर जब पारंपरिक सब्सिडी वाले उर्वरक पहले से उपलब्ध और पसंद किए जा रहे हों.
विकल्पयुक्त भूमि उपयोग प्रणालियां: स्थान विशिष्ट, विविधीकृत और संसाधन-कुशल भूमि उपयोग मॉडल विकसित किए जाएं, जिनमें फसलें, पशुपालन, मत्स्य पालन, मशरूम उत्पादन आदि एकीकृत हों, विशेषकर छोटे और बिखरे भूमि धारकों के लिए.
वन्यजीव निवारक तकनीकें: ऐसी सस्ती, सतत और वन्यजीव-अनुकूल तकनीकों का विकास किया जाए जो जंगली जानवरों के कारण फसल हानि को कम कर सकें.
कीट और रोग प्रबंधन: टमाटर, अदरक, लहसुन, हल्दी, कोलोकेसिया और मक्का जैसी प्रमुख फसलों में जलवायु परिवर्तन और फसल पद्धति के कारण उभरते कीट एवं रोगों (जैसे बैक्टीरियल विल्ट, फॉल आर्मीवॉर्म, सूत्रकृमि) के लिए पर्यावरण अनुकूल और प्रभावी समाधान विकसित किए जाएं.
जल प्रबंधन समाधान: प्राकृतिक जल स्रोतों, जैसे झरनों का संरक्षण करते हुए, सिंचाई और जल संचयन प्रणालियों को इस तरह डिज़ाइन और बढ़ावा दिया जाए जिससे कृषि के लिए जल उपयोग अधिकतम हो सके.
कार्यशाला में यह भी सुझाव दिया गया कि इस प्रकार के अभियानों और क्षेत्र भ्रमणों का आयोजन फसल मौसम शुरू होने से पूर्व ही किया जाए और साथ में जरूरी कृषि सलाह और इनपुट भी वितरित किए जाएं. इससे किसानों की भागीदारी बढ़ेगी और खेती के व्यस्त समय में अभियान में कोई बाधा नहीं आएगी.