‘गुनाह’ एक जैसा... फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सजा अलग-अलग क्यों

‘गुनाह’ एक जैसा... फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सजा अलग-अलग क्यों

पराली चर्चा में है. पहली वजह ये कि इससे दिल्ली वालों का दम घुट रहा है. दूसरी वजह ये कि इस पराली ने इतने किसानों पर मुकदमे लगवा दिए कि लोग इसका नाम अब सहम कर ले रहे हैं. तीसरी बड़ी वजह ये है कि इस पराली ने सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च अदालत को भी फैसले देने पर मजबूर कर दिया.

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शैलेश चतुर्वेदी
  • New Delhi,
  • Nov 23, 2023,
  • Updated Nov 23, 2023, 6:08 PM IST

932 एफआईआर, लगभग पौने दो करोड़ रुपए का जुर्माना, जो करीब 7500 लोगों से वसूला गया. 340 किसानों के रेवेन्यू रिकॉर्ड में रेड एंट्री. यह पंजाब का आंकड़ा है, पराली से जुड़ा हुआ. तीन दिन पहले समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह आंक़ड़ा था. पंजाब की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में बताया गया कि 618 रेड एंट्रीज हुई हैं. जाहिर है, सख्ती बरती गई. बरतनी ही पड़ेगी. आखिर सुप्रीम कोर्ट का आदेश है. प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है, यह हम सबको पता है.

अब जरा एक और आंकड़े पर नजर डालते हैं. यह 14 नवंबर को टाइम्स ऑफ इंडिय़ा में छपा आंकड़ा है. दक्षिण, मध्य और नई दिल्ली मिलाकर दिवाली में पटाखे चलाने पर कुल जमा एक एफआईआर हुई है. पटाखा प्रेमी नाराज हों, उससे पहले यह जान लें कि जिस तरह पराली पर सुप्रीम कोर्ट सख्त है, वैसे ही पटाखों पर भी है. आज का नहीं, 2018 का आदेश है, जिसमें पटाखों पर बैन लगाया गया था. सिर्फ ग्रीन पटाखों पर छूट थी. 

आंकड़ों का खेल

आंकड़ों में मध्य, दक्षिण और नई दिल्ली के इलाके इसलिए बताना जरूरी था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली में है, जिससे महज 2-3 किलोमीटर दक्षिण जाने पर पॉश साउथ दिल्ली का इलाका आ जाता है. और दूसरी तरफ इतनी ही दूरी के बाद मध्य या सेंट्रल दिल्ली का इलाका है. यानी सुप्रीम कोर्ट के कान पर पटाखे चल रहे थे. लेकिन दिवाली के बाद याद नहीं पड़ता कि अथॉरिटी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई की गई हो, या कम से कम ऐसी बात भी की गई हो. दिल्ली में 80 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मियों के बीच दिवाली वाले दिन 25 से 30 हजार पुलिसकर्मी ही ड्यूटी पर थे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने के लिए कुल फोर्स का महज 30 फीसद के आसपास.

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पूरी दिल्ली का आंकड़ा भी देख लें तो कुल 32 एफआईआर हुई हैं. जाहिर, किसान को भले ही जेल भेज दिया गया हो.  भले ही पराली जलाने की वजह से होने वाली कार्रवाई के डर से किसान की  आत्महत्या जैसी खबरें आ रही हों. लेकिन पटाखेबाजों पर ऐसा कोई डर नहीं था. बल्कि दिवाली पर ऐसा लग रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करना भी पटाखे चलाने का उद्देश्य था.

पटाखे-पराली में भेद क्यों?

सुप्रीम कोर्ट हर साल दिवाली के आसपास पराली और पटाखों पर सख्त होता है. लेकिन वैसी टिप्पणियां पटाखों पर नहीं दिखतीं, जैसी पराली पर दिखी हैं. जैसे – पराली जलाने वाले को एमएसपी नहीं मिलनी चाहिए. आर्थिक लाभ से वंचित करना चाहिए वगैरह. सवाल है कि पटाखों पर क्या करना चाहिए और अब तक क्या किया गया. जबकि आदेश आए पांच साल हो चुके हैं. जिन्होंने आदेश नहीं माना, उन पर.. और जिन्होंने मानने पर मजबूर नहीं किया उन पर क्या कार्रवाई हुई. 

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यकीनन पराली पर सख्ती जरूरी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है. लेकिन पटाखों पर नहीं. भले ही वो सुप्रीम कोर्ट का आदेश हो. एक सुप्रीम कोर्ट के दो आदेशों को दो तरह से लागू किए गए हैं. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट अपने दो फैसलों को लागू किए जाने पर दो अलग तरह के रुख नहीं अपनाएगा. किसान तक कुछ समय पहले एक डॉक्यूमेंट्री के जरिए यह साफ कर चुका है कि पराली क्यों जलाई जाती है, क्या मजबूरियां हैं, वगैरह. इसके बावजूद पराली पर रोक लगनी चाहिए और उसके लिए सरकारों को जरूरी कदम उठाने चाहिए. लेकिन अगर आप पराली के लिए किसान को मजबूर कर रहे हैं, तो यह सवाल उठेगा कि वैसे कदम सुप्रीम कोर्ट के दूसरे फैसले पर क्यों नहीं हैं, जो प्रदूषण के खिलाफ ही है. जबकि दूसरे फैसले के उल्लंघन में यह साफ है कि वहां मामला मजबूरी का नहीं है.

 

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