पराली के लिए किसान की जमीन जब्त करना जेबकतरों को मृत्यु दंड जैसा है

पराली के लिए किसान की जमीन जब्त करना जेबकतरों को मृत्यु दंड जैसा है

पराली क्या वाकई इतनी बड़ी समस्या है जो सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्था को इस पर टिप्पणी करनी पड़े? या पराली बेचारी 'चरित्र हनन' का शिकार हुई है. कहीं ऐसा तो नहीं कि पराली के धुएं से अधिक जानलेवा और खतरनाक धुआं कहीं और से उठ रहा है?

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पराली के लिए किसान की जमीन जब्त करना जेबकतरों को मृत्यु दंड जैसा हैपराली पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है

अब सुप्रीम कोर्ट भी किसानों के पीछे लग गया है. दिल्ली की प्रदूषण समस्या पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट बार-बार सवाल उठा रहा है. इसमें कहा जा रहा है कि पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं हो रही है? फाइन क्यों नहीं लगाया जा रहा है? यह भी कहा जा रहा है कि किसानों को MSP से बाहर क्यों नहीं किया जाए? और तो और, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल उठा दिया कि किसानों की जमीन एक साल के लिए क्यों न जब्त कर ली जाए.

इसका मतलब है कि सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट मानता है कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए सिर्फ और सिर्फ किसान ही जिम्मेदार हैं और वे दंड के पात्र हैं. यानी कि कल तक आधी-अधूरी जानकारी लिए दिल्ली के जो आम लोग गाना गा रहे थे, अब वही धुन सुप्रीम कोर्ट में प्ले होने लगी है. किसान को खेत से वंचित रखना... यकीन नहीं होता ऐसी बात सुप्रीम कोर्ट से निकली है.

कोर्ट का बयान सरासर गलत

यह बात सही है कि पंजाब-हरियाणा में जलाई गई पराली से दिल्ली में अचानक प्रदूषण फैलता है. लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि पराली प्रदूषण फैलाने के अनेक कारणों में सिर्फ एक है. लेकिन यह प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह कतई नहीं है. इससे भी बड़ा सच ये है कि दिल्ली का प्रदूषण साल भर का है, लेकिन पराली अक्टूबर-नवंबर के तीन या चार हफ्तों की समस्या है. तो सुप्रीम कोर्ट का यह सुझाव देना कि पराली जलाने वाले किसानों के खेत एक साल के लिए जब्त किए जाएं, यह सरासर गलत है.

किसान मजे में नहीं, मजबूरी में पराली जलाता है. और यह मजबूरी उस पर थोपी गई है. सरकारी नीतियों और देश की जरूरतों के चलते. और यह सब पचास सालों से चलती आ रही व्यवस्था की वजह से है. अब पलट कर किसान को ही दोष देना और सूली पर चढ़ाना दुर्भाग्यपूर्ण है. 

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पराली क्यों और कैसे उत्पन्न होती है, पराली क्यों जलाई जाती है, पिछले कुछ सालों में यह क्यों इतनी बड़ी समस्या बनी हुई है, पराली न जलाएं इसके लिए क्या विकल्प हैं, इसमें समय क्यों लग रहा है...इन सब सवालों का जवाब 'किसान तक' ने अपने पहले वीडियो में अपने लॉन्च के समय ही बता दिया था.

क्या काबू में आएगा धुआं?

सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को खरी-खोटी सुनाई तो यह वीडियो हम एक बार और साझा कर रहे हैं ताकि किसानों को प्रदूषण का एकमात्र स्रोत मानकर उन पर बरसना ठीक नहीं है. और किसानों को दिल्ली के प्रदूषण का मुख्य कारण ठहराना और दंड देना समझदारी नहीं है क्योंकि एक दो साल में पराली जलना तो बंद हो जाएगी. लेकिन क्या एक दो साल में दिल्ली का प्रदूषण काबू में आ जाएगा?

अच्छी बात यह है कि किसानों को दंडित करने के इन भयानक सुझावों के बीच में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसान को विलेन नहीं बनाना चाहिए. जस्टिस सुधांशु धुलिया ने संयम बरतते हुए कहा कि किसान विलेन नहीं है. कोई तो कारण है जिसके चलते किसान यह कर रहा है. किसान ही हमें बता सकता है....और किसान यहां (कोर्ट में) नहीं है. हमें किसान की बात सुननी चाहिए. 

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उच्चतम न्यायालय से ऐसी ही सोच की उम्मीद रहती है. देखिए हमारा Launch Video जिसमें पराली की समस्या का हर पहलू उजागर किया है. और फिर हमें बताइएगा कि क्या सिर्फ किसान ही है पराली का विलेन?

 

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