पंजाब में हाल ही में आई बाढ़ ने राज्यभर में भारी तबाही मचाई है. इसके चलते किसानों ने व्यापक फसल बीमा नीति की मांग तेज कर दी है. किसानों का कहना है कि खेती लगातार असुरक्षित और जलवायु परिवर्तन की मार से प्रभावित हो रही है. साल 2022 में मार्च में अचानक तापमान बढ़ने से गेहूं की फसल को भारी नुकसान हुआ था. किसानों का कहना है कि मौसम में मामूली बदलाव भी पूरी फसल चौपट कर सकता है. इस बार हालात और खराब हो गए हैं. जुलाई-अगस्त में हुई मूसलाधार बारिश ने अधिकांश जिलों में बाढ़ ला दी, जिससे धान की फसलें डूब गईं.
पंजाब सरकार ने 20,000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा घोषित किया है, लेकिन किसानों ने इसे नाकाफी बताया है. किसानों का कहना है कि असल नुकसान करीब 70,000 रुपये प्रति एकड़ है. इसमें फसल बर्बादी के अलावा दोबारा बुवाई, जलभराव और फसल चक्र बिगड़ने का असर भी शामिल है.
कोहारा के किसान नेता हरिंदर सिंह लखोवाल ने कहा, “पंजाब को बाढ़ से भारी नुकसान हुआ है. प्रधानमंत्री ने राहत पैकेज का ऐलान किया, लेकिन हमें सिर्फ मुआवजा नहीं, बल्कि सुरक्षा चाहिए. कभी आग, कभी बारिश, कभी बाढ़- हमारी फसलें हमेशा खतरे में रहती हैं. फसली बीमा होना जरूरी है. केंद्र की मौजूदा योजना को सुधारना होगा, ताकि हर एकड़ कवर हो और प्रीमियम सरकार दे.”
लुधियाना जिले के बद्दोवाल गांव के किसान लखबीर सिंह ने भी यही मांग दोहराई. उन्होंने कहा, “20,000 रुपये प्रति एकड़ बहुत कम है. बार-बार नुकसान हो रहा है, इसलिए बीमा होना ही चाहिए. सरकार को प्रीमियम देना चाहिए, तभी किसान बच पाएंगे.” उन्होंने कहा कि इस बार न सिर्फ फसलें बल्कि घर और पशुधन भी बर्बाद हुआ है. सरकार को कम से कम 50,000 रुपये प्रति एकड़ और प्रति पशु एक लाख रुपये का मुआवजा देना चाहिए.
एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने भी किसानों का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि बाढ़ से फसलों को भारी नुकसान हुआ, लेकिन सरकार ने कोई ठोस सुरक्षा नहीं दी. उन्होंने जोर देकर कहा कि फसल बीमा अनिवार्य और प्रभावी होना चाहिए, ताकि किसान हर आपदा के बाद असहाय न हों. उन्होंने राज्य सरकार पर सक्रिय न होने और संकट से निपटने के लिए विशेष समिति न बनाने का आरोप लगाया.
AAP सांसद मलविंदर कंग ने भी किसानों की मांग का समर्थन किया. उन्होंने कहा, “फसल बीमा जरूर होना चाहिए. केंद्र की योजना है लेकिन उसमें खामियां हैं. अगर प्रीमियम प्रति एकड़ लिया जा रहा है तो मुआवजा भी प्रति एकड़ होना चाहिए. अभी 70-80% गांव प्रभावित होने पर ही लाभ मिलता है, जो अनुचित है. बीमा का मकसद किसानों की मदद करना होना चाहिए, न कि बीमा कंपनियों का.” (लुधियाना से विवेक ढल का इनपुट)