धान की खेती छोड़कर इन फसलों को लगाया तो 11 प्रतिशत बढ़ सकता है मुनाफा, स्‍टडी में दावा

धान की खेती छोड़कर इन फसलों को लगाया तो 11 प्रतिशत बढ़ सकता है मुनाफा, स्‍टडी में दावा

अगर धान (चावल) की खेती की जगह बाजरा, मक्का और ज्वार जैसे वैकल्पिक अनाज की खेती की जाए तो जलवायु से जुड़े उत्पादन घाटे को 11 प्रतिशत तक कम करने में मदद मिल सकती है. इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद के रिसचर्स की एक टीम ने अपनी स्‍टडी रिपोर्ट में यह दावा किया है.

Paddy cultivationPaddy cultivation
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Mar 11, 2025,
  • Updated Mar 11, 2025, 7:16 PM IST

देश में इस समय खेती को मुनाफे का सौदा बनाने की तैयारी जोरों पर है. इसके लिए हर तरह की पहल को अपनाया जा रहा है. इसी क्रम में की गई एक स्‍टडी में यह बात सामने आई है कि अगर धान (चावल) की खेती की जगह बाजरा, मक्का और ज्वार जैसे वैकल्पिक अनाज की खेती की जाए तो जलवायु से जुड़े उत्पादन घाटे को 11 प्रतिशत तक कम करने में मदद मिल सकती है. यह विकल्‍प अपनाए जाने से किसानों की आय में संभावित रूप से बढ़ोतरी हो सकती है जिसका मतलब है कि किसानों के शुद्ध लाभ में 11 प्रतिशत तक सुधार हो सकता है.

तापमान और बारिश में बदलाव का असमान प्रभाव

आर्थिक रूप से लाभकारी होने के कारण भारत में किसान धान की खेती को बहुत ज्‍यादा पसंद करते हैं. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश शीर्ष धान (चावल) उत्पादक राज्‍य हैं और देश के कुल चावल उत्पादन का एक बड़ा हिस्‍सा इन राज्‍यों से आता है. इस बीच, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद के रिसचर्स की एक टीम ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान और बारिश में बदलाव, धान के उत्पादन को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, जिससे भविष्य में खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है.

11 प्रतिशत तक बढ़ सकता है मुनाफा

उन्होंने कहा कि एक किसान द्वारा किसी निश्चित फसल को कितने भूमि क्षेत्र में बोना है, इस बारे में निर्णय बाजार में फसल की कीमत में उतार-चढ़ाव से काफी प्रभावित होता है, जो संभावित रूप से उनकी आय और लाभ को प्रभावित करता है. लेखकों ने नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में लिखा है कि कटाई क्षेत्र का अनुकूलित आवंटन जलवायु-प्रेरित उत्पादन हानि को 11 प्रतिशत तक कम कर सकता है या कैलोरी उत्पादन और फसल भूमि क्षेत्र को बनाए रखते हुए किसानों के शुद्ध लाभ में 11 प्रतिशत तक सुधार कर सकता है.

'दूसरी फसलों की ओर जा सकते हैं किसान'

उन्होंने आगे लिखा है कि चावल के लिए समर्पित कटाई क्षेत्रों को कम करके और वैकल्पिक अनाजों के लिए आवंटित क्षेत्रों को बढ़ाकर इस तरह के सुधार संभव होंगे. लेखकों ने कहा कि संभावित आय वृद्धि के निष्कर्ष किसानों को आर्थिक प्रोत्साहन दे सकते हैं और उन्हें चावल से जलवायु-लचीली फसलों की ओर श‍िफ्ट करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं. 

स्‍टडी के लेखक अश्विनी छत्रे, भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में एसोसिएट प्रोफेसर और कार्यकारी निदेशक ने कहा कि यह शोध नीति निर्माताओं के लिए किसानों के निर्णयों को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारकों पर विचार करने और जलवायु-लचीली फसलों की खेती को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है. 

इन फसलों के आंकड़ों का किया गया अध्‍ययन

अध्ययन के लिए, टीम ने मॉनसून (खरीफ) मौसम के दौरान उगाए जाने वाले पांच मुख्य अनाजों - रागी, मक्का, मोती बाजरा, चावल और ज्वार को देखा. उपज, कटाई वाले क्षेत्र और कटाई की कीमत के आंकड़े हैदराबाद स्थित अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) से लिए गए थे.

लेखकों ने कहा कि निष्कर्षों ने वर्तमान मूल्य निर्धारण संरचनाओं को संबोधित करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला है - जो वर्तमान में चावल की खेती के पक्ष में पक्षपाती हैं. उन्होंने लिखा कि हमारे परिणाम उत्पादन और लाभ में सह-लाभ प्राप्त करने और अंततः पर्यावरणीय और आर्थिक व्यवधानों के लिए अनाज उत्पादन की लचीलापन बढ़ाने के लिए फसल पैटर्न और कटाई वाले क्षेत्र के आवंटन के महत्व को दिखाती हैं.

भूजल को बचाने के लिए धान की खेती से दूर जाने का सुझाव पिछले अध्ययनों में भी दिया गया है, क्‍योंकि जल एक तेजी से घटता हुआ संसाधन बनता जा रहा है. चावल की कटाई सिंचाई के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर करती है. जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित 2024 के एक अध्ययन में पाया गया कि चावल के साथ बोए गए 40 प्रतिशत क्षेत्र को अन्य फसलों के साथ बदलने से उत्तर भारत में 2000 से खोए 60-100 क्यूबिक किलोमीटर भूजल को पुनः प्राप्त करने में मदद मिल सकती है.

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