लोगों की यह धारणा बन गई है कि किसान खेती के लिए जो कर्ज लेते हैं उसे जान बूझकर बैंकों को लौटाते नहीं हैं. वो चुनावों में कर्जमाफी योजना आने का इंतजार करते हैं. लेकिन, यह पूरा सच नहीं है. बैंकों के एग्री सेक्टर का एनपीए (Non-Performing Asset) पिछले पांच वर्षों में काफी घट गया है. इसका मतलब यह है कि किसान बैंकों से लिया गया पैसा लौटाकर उनका विश्वास जीत रहे हैं. उनकी इनकम में सुधार हो रहा है तो वो लोन की रकम को रिटर्न कर रहे हैं. कृषि क्षेत्र की ओर से बैंकिंग सेक्टर को यह एक सुखद संदेश है. दरअसल, एनपीए वह लोन होता है, जिसने बैंकों के लिए एक निश्चित समय सीमा के लिए मूल राशि पर आमदनी यानी ब्याज नहीं कमाया है. अगर लोन लेने वाले ने कम से कम 90 दिन तक ब्याज या मूल राशि का भुगतान नहीं किया है तो बैंक मूल रकम को एनपीए घोषित कर देता है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने बाकायदा लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा है कि, 'एनपीए में कमी किसानों की चुकौती क्षमता में सुधार का संकेत देती है.' यही नहीं, अब संस्थागत स्रोतों यानी बैंकों और दूसरे सरकारी संस्थानों के जरिए लोन लेने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ रही है. इसकी तस्दीक नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) की रिपोर्ट कर रही है. जिसकी आपको आगे विस्तार से जानकारी मिलेगी.
हालांकि, जून 2024 में आई आरबीआई की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट (FSR) में बताया गया है कि कृषि सेक्टर में फंसे कर्ज का स्तर अभी भी 6.2 फीसदी है जो उद्योग जगत के 3.5 फीसदी से लगभग डबल है. सर्विस सेक्टर में यह 2.7 और पर्सनल लोन (होम लोन, ऑटो लोन आदि) में 1.2 प्रतिशत है. अगर सितंबर, 2022 से तुलना की जाए तो अन्य सभी सेक्टरों मे एनपीए का स्तर जितनी तेजी से कम हुआ है उतनी तेजी से कृषि सेक्टर में कम नहीं हुआ है. लेकिन, कम जरूर हुआ है. इस तरह किसान लोगों की इस धारणा को तोड़ रहे हैं कि किसान कर्ज वापस नहीं करते.
आमतौर पर आप लोगों से यह कहते सुनेंगे कि किसान कर्ज ले लेते हैं और उसकी माफी का इंतजार करते हैं. लेकिन कृषि क्षेत्र का कम होता एनपीए ऐसे लोगों की धारणा को गलत साबित कर रहा है. सच तो यह है कि जिन किसानों की इनकम बढ़ रही है वो लोन रिटर्न कर रहे हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे कृषक भी हैं जिन पर कर्ज है और वो उसे चुकाने की स्थिति में नहीं हैं. इसके बावजूद मोदी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में कोई कर्जमाफी नहीं की है. जबकि सरकार, फसल खराब होने, सूखे और कर्ज को किसानों की आत्महत्या का कारण भी मानती है.
अंतिम बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने 2008 में कृषि कर्जमाफी की थी. लेकिन, मोदी सरकार ने साफ तौर में कहा है कि केंद्र सरकार राज्यों को किसानों के कर्ज माफ करने के लिए किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं उपलब्ध कराएगी. जो सूबे किसानों के कर्ज को माफ करना चाहते हैं उन्हें इसके लिए खुद इंतजाम करना होगा.
जानेमाने कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा भी कृषि कर्ज को लेकर लोगों के माइंडसेट पर सवाल उठाते हैं. उनका कहना है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि किसान जो लोन लेते थे उसे वापस नहीं करते थे. किसान तो पूरी कोशिश करता है कि जो कर्ज उसने लिया है उसे वापस करे, लेकिन कारपोरेट तो सरकार से लिए गए कर्ज को जान बूझकर वापस नहीं करना चाहते. किसानों के खिलाफ सिर्फ यह धारणा बनाई गई है कि वो लोन वापस नहीं करते. ऐसी धारणा बनाना ठीक नहीं. किसानों के पास पैसे आएंगे तो वो हर हाल में लोन का पैसा वापस करेंगे. आप आंकड़ों को देख लीजिए कि किसानों का कितना लोन माफ किया गया है और कारपोरेट का कितना...तब आंख खुल जाएगी.
एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2015-16 में कुल एनपीए 5.66 लाख करोड़ रुपये था और इसमें कृषि ऋण की हिस्सेदारी 8.6 प्रतिशत यानी 48,800 करोड़ रुपये थी. वित्त वर्ष 2018-19 में कुल एनपीए में कृषि क्षेत्र का हिस्सा सिर्फ 1.1 लाख करोड़ रुपये यानी 12.4 प्रतिशत था. साल 2024 में कृषि सेक्टर का एनपीए 6.2 फीसदी रह गया है.
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 10 दिसंबर 2024 को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कहा है कि आरबीआई के अनुसार, 30 सितंबर, 2024 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 3,16,331 करोड़ रुपये और निजी क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 1,34,339 करोड़ रुपये था. बकाया कर्ज के प्रतिशत के तौर पर देखा जाए तो कुल एनपीए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 3.09 प्रतिशत और निजी क्षेत्र के बैंकों में 1.86 प्रतिशत था.
कृषि ऋण का एक बड़ा हिस्सा किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना के जरिए वितरित किया जाता है. साल 1998 में शुरू की गई इस योजना का मकसद किसानों को कृषि इनपुट खरीदने और उनकी उत्पादन जरूरतों को पूरा करने के लिए नकदी मुहैया करवाना है. भले ही कृषि क्षेत्र का एनपीए घट रहा है फिर भी कुछ वित्त विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि केसीसी के माध्यम से किसानों को दिए जाने वाले कर्ज में तेजी से इजाफा हो रहा है. इससे कृषि क्षेत्र का एनपीए दूसरे क्षेत्रों की रफ्तार से कम नहीं हो रहा है. बहरहाल, सितंबर 2024 तक कुल चालू किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) खाते 7.71 करोड़ थे, जिनका कुल बकाया 9.88 लाख करोड़ रुपये है.
बहरहाल, मोदी सरकार चाहती है कि किसान साहूकारों की बजाय बैंकों से लोन लें. साहूकार ब्याज की मोटी रकम वसूलते और कर्जदारों को कई बार परेशान करते हैं. जबकि बैंक खेती के लिए जो लोन देते हैं उसका ब्याज सिर्फ 4 फीसदी होता है. इसलिए सरकार ने केसीसी बनवाने की प्रक्रिया न सिर्फ आसान कर दी है बल्कि बैंकों को ज्यादा से ज्यादा किसानों को केसीसी का लाभ देने के निर्देश दिए हैं. इसका असर अब दिखाई देने लगा है.
नाबार्ड के मुताबिक साल 2015-16 में 60.5 फीसदी किसान परिवारों ने संस्थागत स्रोतों से लोन लिया, जबकि 2021-21 में यह बढ़कर 75.5 फीसदी हो गया. साल 2015-16 में 9.4 फीसदी कृषि परिवार साहूकारों (Moneylenders) से लोन लेते थे, लेकिन 2021-22 में यह घटकर सिर्फ 1.6 फीसदी ही रह गया है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने बताया है कि संस्थागत स्रोतों के जरिए लोन लेने वाले किसानों की संख्या 31 मार्च 2020 से मार्च 2024 के बीच 381 लाख बढ़ गई है. कोविड के बाद बड़ी संख्या में लोग अपने गांव वापस गए हैं, जिससे कृषि गतिविधियां बढ़ी हैं. खेती को आगे बढ़ाने के लिए उन लोगों ने किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से सिर्फ 4 फीसदी ब्याज दर का सस्ता लोन लिया. प्रति कृषि लोन खाते में बकाया रकम मार्च 2020 के 1,37,799.88 रुपये से बढ़कर मार्च 2024 तक 1,78,807.77 रुपये हो गई है.
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