
केंद्र सरकार ने किसानों की लंबे समय से अटकी उस मांग को आखिरकार मंजूर कर लिया है जिसके तहत जानवरों से होने वाले नुकसान को भी बीमा के दायरे में लाना था. केंद्र सरकार ने मंगलवार को ऐलान किया है कि अगले खरीफ सीजन से जंगली जानवरों के हमले से होने वाले फसल नुकसान और बाढ़ के कारण धान को होने वाले नुकसान को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत कवर किया जाएगा.
साल 2016 में शुरू की गई बीमा फसल योजना के किसानों को रबी फसलों के लिए इंश्योर्ड अमाउंट का 1.5 प्रतिशत, खरीफ फसलों के लिए 2 प्रतिशत और बागवानी और नकदी फसलों के लिए 5 प्रतिशत का निश्चित प्रीमियम देना होता है. वास्तविक प्रीमियम बीमा कंपनियों की तरफ से हर साल बोली प्रक्रिया से तय किया जाता है. साथ ही निर्धारित सीमा से ज्यादा प्रीमियम का बोझ केंद्र और राज्य सरकारें बराबर साझा करती हैं.
कृषि मंत्रालय के अनुसार, देशभर के किसान हाथी, जंगली सूअर, नीलगाय, हिरण और बंदरों के हमलों से नुकसान झेल रहे हैं. ये हमले उन इलाकों में ज्यादा हैं जो जंगलों के पास, वाइल्डलाइफ कॉरिडोर और पहाड़ी क्षेत्रों में हैं. मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, ' बदले स्वरूप के तहत अब जंगली जानवरों के हमले से होने वाले फसल नुकसान को ‘स्थानीय जोखिम’ श्रेणी में पांचवें ऐड-ऑन कवर के तौर पर मान्यता दी जाएगी.'
राज्यों को उन जंगली जानवरों की लिस्ट नोटिफाइ करनी होगी जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर संवेदनशील जिलों या बीमा इकाइयों की पहचान भी करनी होगी. किसानों को फसल नुकसान की रिपोर्ट 72 घंटे के भीतर क्रॉप इंश्योरेंस ऐप के माध्यम से जियोटैग्ड फोटो अपलोड करके करनी होगी.
विशेषज्ञों ने इस कम समयसीमा को अव्यावहारिक बताया है, खासकर उन दूरदराज क्षेत्रों में जहां नेटवर्क कनेक्टिविटी कमजोर है. साथ ही किसान दूसरे कामों में भी लगे हुए होते हैं. एक विशेषज्ञ ने सवाल उठाया, 'अगर 72 घंटे के भीतर रिपोर्ट नहीं की गई तो क्या बीमा कंपनियां दावों को खारिज कर देंगी?' उन्होंने यह भी कहा कि नुकसान कब हुआ, इसे साबित करना कई बार मुश्किल हो जाता है. मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि यह प्रक्रिया PMFBY दिशानिर्देशों के अनुरूप है और पूरे देश में एक वैज्ञानिक, पारदर्शी और व्यावहारिक ढांचा प्रदान करती है.
सरकार की तरफ से यह भी बताया गया है कि पहले जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान को फसल बीमा में शामिल नहीं किया गया था, जिसके कारण किसानों को अक्सर कोई मुआवजा नहीं मिलता था. इसी तरह, बाढ़ संवेदनशील इलाके और तटीय राज्यों में धान के किसान भारी बारिश और जलमार्गों के उफान के कारण बार-बार जलभराव से नुकसान झेलते रहे हैं. फसल बीमा योजना में जलभराव को शामिल करने से किसानों को मुआवजे का दावा करने में मदद मिलेगी.
सरकार के अनुसार साल 2018 में धान का जलभराव स्थानीय आपदा श्रेणी से हटा दिया गया था, क्योंकि इसमें नैतिक जोखिम (moral hazard) और मूल्यांकन से जुड़ी चुनौतियां थीं. इसके बाहर होने से बाढ़ वाले जिलों के किसानों को सुरक्षा कवरेज में बड़ी कमी का सामना करना पड़ा. सूत्रों ने बताया कि तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ज्यादा क्लेम भुगतान के कारण बीमा कंपनियां जलभराव को कवर करने से हिचकिचा रही थीं.
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