नीति आयोग की हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट कुछ बेहद रोचक आंकड़े साझा किए गए हैं, जो ये बताते हैं कि किस प्रकार भारत की ग्रामीण आबादी और शहरी आबादी के बीच खाद्य तेल को लेकर कितना बड़ा फर्क है. शहर और गांव के तेल का यही चुनाव इनकी खाद्य आदतें और स्वास्थ्य का भी फर्क तय करती हैं. इतना ही नहीं नीति आयोग की इस रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि कैसे शहरों की ओर भागती आबादी या यूं कह लें कि तेजी शहरीकरण के कारण भारत का तेल पर खर्चा भी बढ़ रहा है, जो उसे दूसरे देशों से इंपोर्ट करना पड़ रहा है.
इस रिपोर्ट में बताया गया कि भारत सहित विकासशील देशों में तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण खान-पान की आदतों और खास तौर पर पारंपरिक खान-पान में बदलाव आ रहा है और ये आगे और भी आने की उम्मीद है. यह बदलाव प्रोसेस्ड फूड पदार्थों की बढ़ती खपत से हो रहा है, जिनमें आमतौर पर खाद्य तेल की मात्रा ज़्यादा होती है. OECD-FAO कृषि आउटलुक (2023-2032) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दुनिया का सबसे बड़ा वनस्पति तेल आयातक भारत को अपनी बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिए तेल के आयात को बढ़ाए रखना होगा.
रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि खाद्य इस्तेमाल के लिए वनस्पति तेलों की ये खपत वैश्विक स्तर पर कुल खपत का 57% होने की उम्मीद है. इसके पीछे बढ़ती जनसंख्या और हाई इनकम के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों और उभरते बाजारों में तेल की प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि होने के अनुमान हैं. यही वजह है कि भोजन के लिए वनस्पति तेल की खपत, धनी अर्थव्यवस्थाओं के बराबर स्तर तक पहुंचने वाली है. पिछले कुछ सालों में, तेल की औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) में खासी वृद्धि हुई है, जो उच्च व्यय क्षमता और बेहतर जीवन स्तर का संकेत है.
इसका मतलब साफ है कि भारत में तेजी से शहरीकरण हो रहा है और ये सीधे तौर पर हमारी दूसरे देशों पर तेल निर्भरता बढ़ा रहा है. शहरों में प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड की खपत बहुत अधिक होती है और इस तरह के खाने के लिए सामान्य से अधिक तेल की खपत होती है. यानी कि शहरी विकास के कारण ना सिर्फ देश के खजाने पर असर पड़ रहा है बल्कि ये हमारे खान-पान की बदलती आदतों के बारे में भी बड़ा बदलाव दिखा रहा है.
नीति आयोग की ये रिपोर्ट इस ओर इशारा कर रही है कि शहरी आबादी कितनी तेजी से हमारे पारंपरिक खाने को छोड़ रही है और प्रोसेस्ड फूड की ओर बढ़ रही है, जो कि सीधे तौर पर तेल का इंपोर्ट बढ़ा रही है. दरअसल, प्रोसेस्ड और जंक फूड पारंपरिक खाने के मुकाबले ज्यादा तेल मांगते हैं. गौर करने वाली बात ये है कि सरसों का तेल रिफाइंड तेल के मुकाबले ज्यादा हेल्दी होता है. गावों में सरसों का तेल ज्यादा खाया जाता है और शहरों में रिफाइंड तेल. तेल का ये फर्क ग्रामीण लोगों के अच्छे स्वास्थ्य और शहरी लोगों के खराब स्वास्थ्य की भी झलक देता है.
नीति आयोग की इस रिपोर्ट में एक और दिलचस्प बात सामने आई है. ग्रामीण इलाकों में सरसों के तेल का बोलबाला है, जो लगभग 45% खपत के लिए ज़िम्मेदार है. वहीं इसके विपरीत, शहरी इलाकों में रिफाइंड तेलों, जैसे सूरजमुखी और सोयाबीन तेल, का चलन है, जिनकी कुल खपत में 47% हिस्सेदारी है. रिफाइंड तेलों की ओर यह बदलाव वनस्पति और मूंगफली तेल जैसे पारंपरिक विकल्पों के प्रतिस्थापन की ओर इशारा करता है.
ICAR-भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान के सर्वेक्षण से पूरे भारत में खाद्य तेल की खपत में अलग-अलग क्षेत्रीय प्राथमिकताओं का पता चला है. भारत के उत्तरी (61%) और पूर्वी (35%) क्षेत्रों में सरसों तेल का दबदबा रहा, उसके बाद सूरजमुखी तेल का स्थान रहा. पश्चिमी क्षेत्र में, सोयाबीन तेल ने सरसों (25%) और सूरजमुखी (25%) तेलों की तुलना में थोड़ी बढ़त (28%) हासिल की. हालांकि दक्षिणी क्षेत्र में तस्वीर अलग थी, जहां सूरजमुखी तेल (44%) का बोलबाला था, उसके बाद मूंगफली तेल (29%) का स्थान रहा.
भारतीय कृषि में तिलहन, रकबा और उत्पादन में दूसरा सबसे ऊंचा स्थान रखते हैं और केवल खाद्यान्न ही उनसे आगे हैं. भारत की विविध कृषि पारिस्थितिक स्थितियां 9 वार्षिक तिलहन फसलों की खेती को संभव बनाती हैं, जिनमें मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, नाइजरसीड, अरंडी और अलसी शामिल हैं. हालांकि, एक बड़ी चुनौती वर्षा आधारित कृषि में है, जहां 76% तिलहन रकबा कुल उत्पादन में 80% का योगदान देता है.
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