देशभर में आम की 1500 किस्में मौजूद हैं. हर आम का अपना एक विशेष स्वाद और आकार होता है. आम की इन्हीं किस्मों में बनारसी लंगड़ा भी शामिल है, जिसका अलग स्वाद और अंडाकार आकार होता है. वैसे तो लंगड़ा आम का इतिहास 300 साल से भी पुराना है, लेकिन इसकी शुरुआत की बात करें तो पूरे देश में इस किस्म के आम की शुरुआत बनारस से मानी जाती है. इसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है. कहा जाता है कि लंगड़े साधु के द्वारा विकसित किए गए इस आम को लंगड़ा आम कहा गया और फिर यहीं से इस किस्म का विस्तार हुआ. आज भी बनारस के कंपनी बाग में स्थित लंगड़े का मदर ट्री (Mother tree of langra) आज भी मौजूद है. यह मदर ट्रीब विरासत वृक्ष की श्रेणी में है.
बनारसी लंगड़ा आम पूरे विश्व में मशहूर है. इस आम को अब जीआई टैग भी मिल चुका है. वाराणसी के कचहरी स्थित कंपनी बाग में बनारसी लंगड़े आम का मदर ट्री भी मौजूद है. जिला उद्यान निरीक्षक ज्योति कुमार सिंह ने किसान तक को बताया की बनारसी लंगड़े आम का विस्तार इसी विरासत वृक्ष के द्वारा हुआ है. इस पेड़ की उम्र काफी ज्यादा है. 110 साल पुराने इस पेड़ को विरासत वृक्ष में शामिल किया गया है. इस वृक्ष के द्वार यह हॉर्टिकल्चर विशेषज्ञों के सहयोग से 500 से ज्यादा पौधे तैयार किए हैं. आज भी इस वृक्ष से आम की पैदावार जारी है. इस पेड़ की आम का स्वाद दूसरे आम से काफी अलग है.
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देश में मौजूद सभी आम की किस्मों के अपने अलग नाम है. वहीं लंगड़े आम के पीछे भी एक कहानी है. कहा जाता है कि 300 साल पहले वाराणसी के कचहरी के पास आम का एक बगीचा था. इस बगीचे की रखवाली एक साधु करते थे. वहां पर आम कभी एक पेड़ था. साधु पैर से दिव्यांग थे. काशी नरेश ने साधु से आम की कलम देने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया फिर बाद में साधु ने काशी नरेश को आम की कलम भेंट की. जिसके बाद इस आम की किस्म का विस्तार पूरे देश में हुआ. लंगड़े साधु के नाम पर ही इस आम का नाम पड़ा.
वाराणसी में उद्यान निरीक्षक ज्योति कुमार सिंह ने बताया लंगड़ा आम का प्रसार मातृ वृक्ष से हो रहा है. लंगड़ा आम की ऊपरी परत है काफी पतली होती है और इसमें हल्के रन्ध्र पाए जाते हैं, जिसमें सफेदपन होता है, जिसके चलते इसे दूधिया लंगड़ा भी कहा जाता है. इस आम की मिठास दूसरे आमों से काफी अलग होती है. पकने के बाद भी यह आम पूरा पीला नहीं होता है बल्कि हरे रंग का ही दिखता है.