
केंद्र सरकार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी MGNREGA का नाम बदलने की तैयारी कर चुकी है. सरकार इस योजना का नाम विकसित भारत-रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) करने वाली है और इससे जुड़ा बिल संसद में पेश कर दिया गया है. विपक्ष इस पूरे मसले पर सरकार पर हमलावर बना हुआ है. उसका कहना है कि महात्मा गांधी का नाम हटाना सिर्फ ट्रेलर है और इससे नुकसान कहीं ज्यादा गहरा होगा. इस कदम पर सरकार के आलोचकों का कहना है कि यह बिल अधिकार-आधारित गारंटी कानून की आत्मा को खत्म कर देता है. उसकी जगह एक शर्त वाली, केंद्र की तरफ से कंट्रोल होने वाली योजना को लेकर आता है. उनकी मानें तो यह राज्यों और मजदूर वर्ग दोनों के हितों के खिलाफ है.
जहां MGNREGA के तहत, केंद्र सरकार की तरफ से मजदूरी का पूरा खर्च और योजना की सामग्री लागत का तीन-चौथाई मिलता है. यह उन लोगों के था जिनके पास कोई हुनर नहीं है लेकिन इसके साथ ही हुनरमंद और अर्ध-हुनरमंद मजदूरों को भी उनकी मजदूरी का तीन-चौथाई हिस्सा अभी तक इस योजना के तहत मिलता है. वहीं जब इसका नाम बदलकर VB-G RAM G किया जाएगा तो इसका स्वरूप भी बदल जाएगा. नए नाम के तहत इसे ज्यादातर राज्यों और विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 60:40 के योगदान में बदल दिया जाएगा. साथ ही पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर) के लिए यह 90:10 के अनुपात में होगा.
एक अनुमान के अनुसार नए स्वरूप में राज्यों को करीब 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने होंगे. अकेले केरल पर 2,000-2,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा. राज्यों पर अब ज्यादा भुगतान का बोझ पड़ जाएगा. नए बदलाव में सरकार हर ग्रामीण परिवार को, जिसके वयस्क सदस्य बिना स्किल्ड मैनुअल काम करने को तैयार हैं, हर फाइनेंशियल ईयर में 125 दिन की दिहाड़ी वाली नौकरी की गारंटी देगी. पहले यह यह कम से कम 100 दिन था. सरकार के अनुसार यह बिल खुद को 'विकसित भारत 2047 के राष्ट्रीय विजन के साथ जुड़े एक बड़े ग्रामीण विकास ढांचे' के हिस्से के रूप में पेश करता है.
MGNREGA का लक्ष्य 'आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना' था और कार्यक्रम को इसी के लिए तैयार किया गया था. जबकि नए बिल का मकसद 'समृद्ध और लचीले ग्रामीण भारत के लिए सशक्तिकरण, विकास, तालमेल और संतृप्ति' को बढ़ावा देना है, और 'सार्वजनिक कार्यों के माध्यम से सशक्तिकरण, विकास, तालमेल और संतृप्ति पर जोर देता है, जो मिलकर विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक बनाते हैं'. नई व्यवस्था के तहत आवंटन एक तय बजट के अंदर सीमित होंगे. इसे केंद्र सरकार कुछ पैरामीटर्स के आधार पर तय करेगी. हालांकि अभी तक इन पैरामीटर्स को तय नहीं किया जा सका है. अभी तक केंद्र सरकार ने यह तय नहीं किया है कि वो पैरामीटर्स कौन से होंगे जो बजट आवंटन के लिए जरूरी होंगे. वहीं रोजगार सिर्फ उन्हीं ग्रामीण इलाकों में मिलेगा जिन्हें केंद्र की तरफ से नोटिफाई किया जाएगा.
कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सदन में इसके लक्ष्यों और कारणों के बयान में कहा कि पिछले 20 सालों में ग्रामीण परिवारों को पक्का रोजगार देने में MGNREGA की भूमिका को स्वीकार किया. वहीं नया कानून ग्रामीण रोजगार नीति को फिर से सोचने का संकेत देता है. उन्होंने कहा कि सरकार हक-आधारित सुरक्षा जाल से हटकर एक ऐसे मिशन की ओर बढ़ना चाहती है जिसे वह भविष्य-उन्मुख विकास मिशन बताती है.
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इस योजना का नाम बदलने के पीछे सरकार की मंशा पर सवाल उठाया. उन्होंने पूछा कि क्या इस तरह का कदम उठाना जरूरी था. संसद के बाहर मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'महात्मा गांधी का नाम क्यों हटाया जा रहा है? महात्मा गांधी को न सिर्फ देश में बल्कि दुनिया में भी सबसे बड़ा नेता माना जाता है, इसलिए उनका नाम हटाना, मुझे सच में समझ नहीं आ रहा है. इसका मकसद क्या है? उनकी मंशा क्या है?' उन्होंने आगे कहा, 'जब भी किसी योजना का नाम बदला जाता है, तो दफ्तरों, स्टेशनरी में बहुत सारे बदलाव करने पड़ते हैं, जिस पर पैसा खर्च होता है. तो, इसका क्या फायदा है? यह क्यों किया जा रहा है?' शशि थरूर ने भी इस फैसले को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताया है. उन्होंने कहा, 'महात्मा गांधी का ग्रामीण गरीबों के बारे में बहुत स्पष्ट विजन था जिनकी वह परवाह करते थे.'
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