लखनऊ, मलिहाबाद, जो अपने दशहरी आमों के लिए प्रसिद्ध है, इस साल एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है. आम किसान और ठेकेदार लगातार गिरते फार्म गेट कीमतों से जूझ रहे हैं, जिससे उनकी लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है. इस साल न केवल आम की पैदावार अच्छी है, बल्कि कटाई के नजरिये में भी अप्रत्याशित रूप में बदलाव आ गया है, जिसने स्थिति को और गंभीर बना दिया है. जलवायु परिवर्तन और अनियमित वर्षा को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है, जिसने तुड़ाई की अवधि को तीन सप्ताह तक सीमित कर दिया है. आमदनी गिरी है और किसानों की उम्मीदें टूट गई हैं, जिससे वे भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
केंद्रीय उपोष्ण कटिबंधीय बागवानी संस्थान सीआइएसएच लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एच. एस सिंह ने कहा कि बागानों में जमीनी हकीकत भयावह है. आम की अच्छी फसल के बावजूद, स्थानीय व्यापारी माल उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. यहां तक कि वे लोग भी, जो आमतौर पर आम लेने के लिए उत्सुक रहते हैं, इस बार नदारद हैं. आम तौर पर यह चर्चा रहती है कि बाजार में माल अधिक आ गया है, जिससे कीमतें बुरी तरह दब गई हैं. लेकिन इस बार की ये वजह नहीं है.
डॉ सिंह ने कहा कि परंपरागत रूप से, मलिहाबाद में 'नौरोज़' - लगभग नौ दिनों की अवधि, जो आमतौर पर 20 जून के बाद शुरू होती है दशहरी आम की कटाई का चरम समय माना जाता है. हालांकि, इस साल नौरोज़ से पहले ही अधिकांश बागानों में कटाई चरम पर पहुंच गई है और 20 जून तक इसके पूरी तरह समाप्त हो जाने की संभावना है. यह बदलाव स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आम की परिपक्वता और तुड़ाई इस साल समय से पहले हो रही है. आमतौर पर 30-40 दिनों की तुड़ाई अवधि इस बार केवल तीन सप्ताह में सिमट गई है.
डॉ सिंह ने बताया कि दशहरी आम की पिछले कुछ सालो कटाई अवधि के कुछ उदाहरण:
• 2015: 10 जून – 15 जुलाई
• 2018: 2 जून – 12 जुलाई
• 2019: 7 जून – 14 जुलाई
• 2024: अंतिम कटाई 8 जुलाई
• 2025: कटाई मई के अंतिम सप्ताह से शुरू, 20 जून तक समाप्त होने की संभावना है.
इस साल की जल्दी और तीव्र पकने की प्रक्रिया, संभवतः उच्च तापमान और असमान वर्षा जैसे जलवायु कारकों से प्रेरित है, जिसने तुड़ाई की अवधि को तेजी से घटा दिया है. किसान, पकते हुए फलों और अनिश्चित बाजार को देखकर जल्दबाजी में माल निकाल रहे हैं, जिससे कुछ ही हफ्तों में पूरा बाजार भर गया है.
डॉ सिंह ने लखनऊ और सीतापुर के लगभग 10 किसानों से बातचीत में जो मुख्य बातें सामने आईं, वे स्थिति की गंभीरता को दर्शाती हैं. आम की खराब गुणवत्ता के दाम 18 से 30 रुपये प्रति किलो के बीच हैं, जो गुणवत्ता पर निर्भर है. मई के अंतिम सप्ताह से जून के पहले सप्ताह तक कटाई करने वाले किसानों को 29-32 रुपये/किलो तक के भाव मिले – वे खुद को "भाग्यशाली" मानते हैं. वही जिन बागों में सिंचाई जल्दी बंद कर दी गई, वहां आम जमीन पर गिरने लगे हैं – गूदा ढीला और बिकाऊ नहीं है.
मोहान क्षेत्र में आम सड़क किनारे फेंक दिए गए. जो बाग अब भी सिंचित हैं, वहां आम पेड़ पर ही पक रहे हैं और उनके गूदे की कठोरता बेहतर है, जिससे बाजार में कुछ बेहतर दाम मिल रहे हैं. कई किसान घबराए हुए हैं, नुकसान के डर से जल्दबाजी में माल निकाल रहे हैं. कुछ किसान दक्षिण और पश्चिम भारत के व्यापारियों से जुड़े हैं, जो 40-50 रुपये/किलो दे रहे हैं – खासकर बेहतर क्वालिटी के लिए. सबसे अच्छा रिटर्न उन किसानों को मिल रहा है, जिन्होंने अपने फलों को बैगिंग (थैलियों में बंद) किया – मुंबई के व्यापारी 70 रुपये/किलो तक दे रहे हैं, बशर्ते डंठल लगा हो.
हालांकि समय से पहले पकना और बाजार में अधिक माल आना दो मुख्य कारण हैं, पर शायद कहानी इससे ज्यादा जटिल है. कुछ सवाल उठते हैं: क्या यह केवल एक असामान्य मौसमी घटना है, या जलवायु परिवर्तन के चलते फूलने-पकने के चक्र में स्थायी बदलाव आ रहा है? या क्या व्यापारिक नेटवर्क विफल हो रहे हैं, या कोई संगठित गिरोह जानबूझकर मूल्य गिरा रहा है? क्या झूठी सूचनाओं और अफवाहों के जरिए किसानों में घबराहट फैलाई जा रही है ताकि वे सस्ते में माल बेच दें? ये सिर्फ अटकलें नहीं हैं – ये वो सवाल हैं जो रियल-टाइम डेटा एकत्र करके ही सुलझाए जा सकते हैं.
लखनऊ के प्रगतिशील आम किसान अतुल अवस्थी का कहना है कि दशहरी आम आमतौर पर 25 मई तक बाग में पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं, जिसके बाद उनकी तुड़ाई होती है. लेकिन इस बार आम के बागों के ठेकेदारों ने 10 मई से ही आम की तुड़ाई शुरू कर दी और उन्हें आजादपुर मंडी में कृत्रिम रूप से पकाकर भेजना शुरू कर दिया. इससे आम सिकुड़ गए और खाने में भी स्वाद नहीं आया, जिसके कारण उपभोक्ताओं का दशहरी से मोहभंग हो गया और वे आम की सही कीमत नहीं दे रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि इस साल सफेदा आम में दिल्ली में कीड़े पड़ने का असर दशहरी आम के खरीदारों पर भी पड़ा, जिससे दशहरी आम की बिक्री कम हुई. अवस्थी ने कहा कि इस बार आईटीसी और मदर डेयरी जैसी कंपनियों ने मलिहाबाद से आम की खरीदारी नहीं की, जिसके कारण आम के बढ़िया रेट नहीं मिल पा रहे हैं. उन्होंने इलाहाबाद के एक आम उत्पादक किसान राजकुमार पांडेय का उदाहरण भी दिया, जिनका तीन दिन से आम तोड़कर रखा गया है लेकिन कोई खरीदार नहीं है.
इस संकट को सही ढंग से समझने के लिए जरूरी है कि निम्नलिखित पहलुओं पर दैनिक डेटा इकट्ठा किया जाए जिससे कम दाम मिलने के आंकलन पर किसान सही निर्णय ले सके. फार्म गेट और मंडी के दाम में अंतर, तुड़ाई के समय के कारण आम की मात्रा और क्वालिटी पर क्या अंतर है, सिंचित आम बनाम असिंचित आम के क्वालिटी क्या असर पड़ रहा है. इसकी जानकारी किसानों को मिलनी चाहिए. वहीं दूसरी ओर, व्यापारियों की खरीद गतिविधियों के कारण या फिर जलवायु और सिंचाई के तरीके में बदलाव के कारण आम का पकना प्रभावित हो रहा है. इन सभी मामलों के समाधान के लिए कृषि-अर्थशास्त्र को आगे आना चाहिए ताकि सिर्फ मौजूदा संकट का विश्लेषण न किया जाए, बल्कि मलिहाबाद जैसे क्षेत्रों में आम की अर्थव्यवस्था को भविष्य के लिए टिकाऊ बनाया जा सके.