बाजरा अनुसंधान केंद्र में बढ़ेगी बाजरे की उम्र, बनेंगे 20 से ज्यादा प्रोडक्ट, क्लिक कर पढ़ें सारी डिटेल्स

बाजरा अनुसंधान केंद्र में बढ़ेगी बाजरे की उम्र, बनेंगे 20 से ज्यादा प्रोडक्ट, क्लिक कर पढ़ें सारी डिटेल्स

इस रिपोर्ट में आपको बता रहे हैं कि आखिर इस बाजरा रिसर्च सेंटर में क्या होने वाला है? बाजरे को लेकर किस तरह के रिसर्च होंगे और किस तरह आम लोगों को पोषणयुक्त बाजरा पहुंचाया जा सके?

बाजरा अनुसंधान केन्द्र में बढ़ेगी बाजरे की उम्र, बनेंगे 20 से ज्यादा प्रोडक्ट बाजरा अनुसंधान केन्द्र में बढ़ेगी बाजरे की उम्र, बनेंगे 20 से ज्यादा प्रोडक्ट
माधव शर्मा
  • Jaipur,
  • Sep 27, 2023,
  • Updated Sep 27, 2023, 1:45 PM IST

आज राजस्थान के बाड़मेर में उपराष्ट्रपति बाजरा अनुसंधान केन्द्र का उद्घाटन कर रहे हैं. जिले के गुडामालानी केवीके कैंपस में संस्थान खोलने की घोषणा केंद्र सरकार ने 2021 में की थी. तब से अब तक राज्य और केन्द्र सरकार के बीच जमीन अलॉटमेंट को लेकर खींचतान चल रही थी. आखिरकार कुछ महीने पहले केन्द्र के लिए राज्य सरकार ने 40 एकड़ जमीन दे दी. आज बुधवार दोपहर करीब दो बजे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ रिसर्च सेंटर की नींव रखेंगे. उद्घाटन कार्यक्रम करीब एक घंटा चलेगा. धनकड़ किसान सभा को भी संबोधित करेंगे. इसके लिए गुड़ामालानी में डोम तैयार किया है. भाग लेने के लिए करीब 10 हजार से ज्यादा किसानों को बुलाया गया है. 

इस सब कार्यक्रम के साथ-साथ हम इस रिपोर्ट में आपको बता रहे हैं कि आखिर इस बाजरा रिसर्च सेंटर में क्या होने वाला है? बाजरे को लेकर किस तरह के रिसर्च होंगे और किस तरह आम लोगों को पोषणयुक्त बाजरा पहुंचाया जा सके?

रिसर्च सेंटर में होंगे ये काम

बाजरा अनुसंधान केन्द्र में होने वाले कामों को लेकर किसान तक ने गुडामालानी केवीके में एग्रीकल्चर साइंटिस्ट  डॉ. प्रदीप पगारिया से बात की. वे बताते हैं, “सबसे पहले यह जानने की जरूरत है कि आखिर इस रिसर्च सेंटर के लिए बाड़मेर को ही क्यों चुना गया. वो इसीलिए क्योंकि राजस्थान में करीब 44 लाख हेक्टेयर में बाजरा पैदा होता है. इसमें से अकेले बाड़मेर में 9 लाख हैक्टेयर में बाजरे की खेती होती है. पूरे राजस्थान में 75 लाख क्विंटल बाजरा पैदा होता है. इसमें आधे से ज्यादा यानी 40 लाख क्टिंल बाजरा बाड़मेर में होता है. इसीलिए सेंटर के लिए बाड़मेर को चुना गया है.” 

रिसर्च सेंटर में होने वाले कामों के बारे में बताते हुए डॉ पगारिया बताते हैं, “सेंटर के शुरू होने पर सबसे पहला काम बाजरे की वैरायटी पर काम करने का होगा. क्योंकि पश्चिमी राजस्थान में बारिश कम होती है. इसीलिए कम पानी में कौन-कौन सी किस्म हो सकती हैं. इसके बारे में शोध किया जाएगा. इसके अलावा बाजरे की सेल्फ लाइफ को बढ़ाने पर काम किया जाएगा. क्योंकि बाजरे का आटा एक हफ्ते में ही खट्टा हो जाता है.

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इसीलिए बाजरे के आटे को लेकर रिसर्च किया जाएगा. ताकि बाजरे का आटा गेहूं की तरह काम में लिया जा सके. इसके अलावा बाजरे में वैल्यू एडिशन कर उसके तमाम प्रोडक्ट बनाने पर काम किया जाएगा. इससे बाजरे को बाजार में स्थापित करने में मदद मिलेगी. साथ ही बाजरा कई पोषक तत्वों का खजाना होता है. इसीलिए इसे आम लोगों तक पहुंचाने की प्रक्रिया पर भी रिसर्च सेंटर में काम किया जाएगा.”

डॉ. प्रदीप कहते हैं कि बाजरे से नमकीन, बिस्किट, कुरकुरे, लड्डू जैसे करीब 20 से ज्यादा प्रोडक्ट फिलहाल बाजार में मिल रहे हैं. हमारी कोशिश होगी कि इस संख्या को बढ़ाया जाए. 

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बाजरे की नई किस्में होंगी विकसित, बीमारी से मिलेगी निजात

राजस्थान में बाजरा 85 फीसदी तक बरसात आधारित है. यह करीब 100 दिन में तैयार होती है. फिलहाल प्रदेश में दो-तीन किस्मों का बाजरा ही बोया जाता है. रिसर्च सेंटर खुलने से बाजरे की कई नई किस्में विकसित होने की उम्मीद है. जो कम समय में अच्छे उत्पादन के साथ तैयार हो सकेगी.

साथ ही फिलहाल बाजरे की किस्मों में सबसे बड़ी समस्या हरित और खंडवा रोग की है. ये कीट बाजरे के सिट्टे को खत्म कर देता है. रिसर्च सेंटर में इन रोगों की स्क्रीनिंग कर इससे निजात पाने के लिए रिसर्च किया जाएगा. ताकि किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सके. 
 

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