प्राचीन भारत में शासन और प्रशासन की व्यवस्था अत्यंत विकसित और व्यवस्थित थी. ईसा पूर्व 321-297 में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में प्रशासनिक ढांचे का विस्तार और केंद्र से गांवों तक की प्रशासनिक सुव्यवस्था देखने को मिलती है. यूनानी लेखक मेगस्थानीज़ और स्त्रावो के अनुसार, इस काल में अग्रोनोमोई नामक अधिकारी कृषि और जल प्रबंधन से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों का निरीक्षण करते थे. इन अधिकारियों को भारत के पहले कृषि अधिकारी के रूप में माना जा सकता है.
प्रचीन भारत के बारे में जानकारी देने वाली किताब `इंडिका ` के रचनाकार और चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी दूत मेगस्थनीज के अनुसार, अग्रोनोमोई जनपद या जिले के अधिकारी होते थे. इनका काम विभिन्न विभागों के माध्यम से जिले का शासन चलाना था. इन विभागों में भूमि तथा सिंचाई, कृषि, वन, काष्ठ-उद्योग, धातु शालाएं, खानें और सड़कों का निर्माण और प्रबंधन शामिल था. उनकी मदद के लिए अलग-अलग पदाधिकारी हुआ करते थे.
मौर्य प्रशासन संरचना में राजधानी पाटलीपुत्र में विभिन्न विभाग होते थे. जिनके अध्यक्ष मंत्रियों या महामात्यों के निरीक्षण में काम करते थे. केंद्रीय महामात्य और अध्यक्षों के अधीन निम्न स्तर के कर्मचारी होते थे, जिन्हें 'युक्त' और 'उपयुक्त' कहा जाता था, जो केंद्र और स्थानीय शासन के बीच संपर्क बनाए रखते थे.
राज्य प्रांतों में विभाजित था. प्रांत या प्रदेश विषयपति के अधीन थे. जबकि प्रांत के नीचे स्थानिक इकाई होती थी. स्थानिक को आज के जिले जैसा माना जा सकता है. इसका प्रशासक स्थानिक होता था जिसे आधुनिक कलेक्टर के सामान माना जा सकता है. इसके आधीन गोप होते थे, जो दस गांवों पर शासन करते थे.
मौर्यकालीन इस व्यवस्था में में अग्रोनोमोई के कार्यों में केंद्र और स्थानीय शासन के बीच संपर्क बनाए रखना प्रमुख था. आइए, विस्तार से जानते हैं 2300 ईसा पूर्व के इस पहले कृषि अधिकारी के कार्यों, उसकी प्रशासनिक व्यवस्था में भूमिका और उसके महत्व के बारे में...
अग्रोनोमोई चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में कृषि और जल प्रबंधन से जुड़े अधिकारी थे. यूनानी लेखकों के अनुसार, इन अधिकारियों का मुख्य कार्य नदियों, जलाशयों, नहरों और भूमि की देखभाल करना था, ताकि लोगों को पानी की उचित आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। इन अधिकारियों की पहचान कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित 'अध्यक्ष' और अशोक के कई शिलालेखों में उल्लेखित 'राजुक' नाम के पद से की जाती है.
अग्रोनोमोई शिकारियों पर नियंत्रण रखते थे और यह सुनिश्चित करते थे कि वन्यजीवों का अत्यधिक शोषण न किया जा सके. वे शिकार के नियमों का पालन करवाते थे और उल्लंघन करने वालों को दंडित करते थे.
अग्रोनोमोई सार्वजनिक सड़कों के निर्माण और रखरखाव का निरीक्षण करते थे. वे दस-दस स्टेडिया (लगभग 1.8 किलोमीटर) की दूरी पर स्तम्भ या पिलर्स लगवाते थे, जो यात्रियों के लिए दूरी का संकेत देते थे.
'अग्रोनोमोई को लोगों को पुरस्कृत और दंडित करने का अधिकार था.वे किसानों और श्रमिकों को उनके अच्छे कार्यों के लिए पुरस्कृत करते थे, जबकि नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंड देते थे.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र और अशोक के शिलालेखों में इनके बारे में चर्चा है. अग्रोनोमोई की भूमिका को कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित 'अध्यक्ष' और अशोक के शिलालेखों में उल्लेखित 'राजुक' से जोड़ा जाता है. इन दोनों अधिकारियों के कार्य इस प्रकार हैं.
अध्यक्ष: कौटिल्य के अनुसार, अध्यक्ष विभिन्न विभागों के प्रमुख होते थे और उनका कार्य प्रशासनिक निरीक्षण करना था.
राजुक: अशोक के शिलालेखों में राजुक का उल्लेख है, जो स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी थे और जनता की समस्याओं का समाधान करते थे.
अग्रोनोमोई तत्कालीन प्रशासनिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण अधिकारी था
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय के अग्रोनोमोई भारत के पहले कृषि अधिकारी थे, जिन्होंने कृषि, जल प्रबंधन और सार्वजनिक अवसंरचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी भूमिका न केवल कृषि उत्पादन को बढ़ाने में सहायक थी, बल्कि जनकल्याण और पर्यावरण संरक्षण में भी उनका योगदान उल्लेखनीय था. आधुनिक कृषि और प्रशासनिक व्यवस्था में अग्रोनोमोई के सिद्धांतों से प्रेरणा ली जा सकती है.
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में अग्रोनोमोई की भूमिका यह दर्शाती है कि प्राचीन भारत में प्रशासनिक व्यवस्था कितनी विकसित और लोक कल्याणकारी थी. कृषि और जल प्रबंधन के क्षेत्र में सही नीतियों और प्रशासनिक नियंत्रण से समृद्धि और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में इस अधिकारी का बहुत महत्व था.