केरल का एक गांव है कांथालूर. ये बात लिखना और पढ़ना जितना सिंपल लग रहा है बात उतनी सिंपल है नहीं. बात बहुत खास है क्योंकि ये गांव बहुत खास है. कहीं नदी, कहीं झरने, कहीं पहाड़, कहीं बाग हर तरफ प्रकृति को साक्षी मान जैसे ये गांव आपको अपनी तरफ बुलाता है और कहता हूं मैं रहता सिंपल हूं मगर हूं बहुत खास. य़हां लोगों की जिंदगी और उनका रहन-सहन बेहद सादा ही है, लेकिन इस गांव की खूबसूरती एकदम अलग और अनोखी है. यही वजह है कि इस गांव को बेस्ट टूरिज्म विलेज का गोल्ड अवॉर्ड भी मिल चुका है. अब इस उपलब्धि के साथ ही इस गांव की कहानी एक नया मोड़ ले रही है क्योंकि इस गांव के किसान उगा रहे हैं मिलेट्स. जानिए क्या है ये कहानी-
जिन मिलेट्स की देश ही नहीं दुनिया भर में चर्चा है, वो मिलेट्स इस गांव में खूब होते थे. बताया जाता है कि किसी जमाने में अकेले इस गांव में 18 तरह के मिलेट्स उगाए जाते थे. फिर धीरे-धीरे सब रुक गया. लोगों को जानकारी नहीं मिली, फायदा नहीं हुआ, वक्त और मांग बदलती गईं और मिलेट्स कहीं विलुप्त हो गए. यहां बीते दशकों में किसान सिर्फ रागी ही उगा रहे थे. मगर अब जो शुरुआत हुई है उसके तहत मिलेट्स की 6 वैरायटीज उगाई जाने लगी हैं. जानें कैसे हुई ये शुरुआत -
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जब कहीं मिलेट्स नहीं थे, तब कैसे मिलेट्स आ गए? इस सवाल का जवाब मिलता है एक अभियान से जिसकी शुरुआत टेक कंपनी लेनोवो ने की. अपने साथ कुछ एनजीओ और संस्थाओं को जोड़ा और किसानों को प्रोत्साहित किया मिलेट्स उगाने ेके लिए. लेनोवो ने अपने प्रोजेक्ट Lenovo Work for Humankind के तहत केरल के IRHD कॉलेज में एक टेक सेंटर बनाया है जहां किसानों को लैपटॉप और मोबाइल के जरिए खेती किसानी और प्रोसेसिंग-मार्केटिंग से जुड़ी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं. लेनोवो ने किसानों को फोन उपलब्ध कराएं हैं जिसके जरिए वह अपनी फसल से जुड़ी सारी जानकारी, सरकारी योजनाओं और मौसम इत्यादि के बारे में पता कर सकते हैं. लेनोवो से जुड़े लोग वॉलंटियर के तौर पर किसानों से जुड़कर उनकी समस्याएं सुलझाने में भी मदद कर रहे हैं.
यहां के किसान अब रागी के साथ ही बार्नयार्ड, लिटिल बाजरा, फॉक्सटेल, प्रोसो और कोदो जैसे मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं. मई में खेती की शुरुआत हुई थी. अक्टूबर से यहां फसल आना शुरू हो गई है. इस प्रोजेक्ट में शुरुआत में 25 किसानों को शामिल किया गया है. इन 25 किसानों में 16 महिलाएं हैं. ये सभी किसान मिलकर 15 एकड़ में मिलेट्स की छह वैरायटीज उगा रहे हैं. सिर्फ अक्टूबर महीने में ही यहां 6 मोटे अनाजों की 2000 किलो फसल प्रोसेसिंग के लिए आ चुकी है.
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इस प्रोजेक्ट की प्रमुख प्रतिमा हरिते का कहना है कि तकनीक यहां के किसानों के लिए मददगार साबित हो रही है. अब वह मिलेट्स उगाने के साथ ही उसकी प्रोसेसिंग और मार्केटिंग से जुड़ी चीजें भी सीख रहे हैं. इस बारे में जब इस प्रोजेक्ट से जुड़े किसानों से बात की गई तो उनमें से एक ईश्वरी का कहना था, 'हम आदिवासी लोग हैं. पहले सिर्फ रागी उगाते थे. अब कंपनी वालों ने अच्छे बीज दिए हैं और जानकारी दी है तो रागी के साथ दूसरे मोटे अनाज भी उगा रहे हैं. उम्मीद है इससे हमें आगे जाकर मुनाफा भी होगा.'