केरल के 4 लाख किसानों के लिए अच्छी खबर है. विश्व बैंक (World Bank) यहां के किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती अपनाने और कृषि क्षेत्र के उद्यमियों को मूल्य-वर्धित उत्पादों (वैल्यू एडेड प्रोडक्ट्स) को बाजार में उतारने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए नए प्रोग्राम चलाने जा रहा है, जिसे पिछले महीने की आखिरी तारीख को विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने मंजूरी दी है. इस प्रोग्राम के तहत कृषि-खाद्य लघु और मध्यम उद्यमों (एसएमई), खासकर महिलाओं के लिए कम से कम 9 मिलियन डॉलर की पूंजी जुटेगी.
भारत के कुल कृषि-खाद्य निर्यात का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा केरल से जाता है. इनमें इलायची, वेनिला और जायफल जैसे मसाले शामिल हैं. यह राज्य इन मसालों का प्रमुख उत्पादक है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते निर्यात की इन उपलब्धियों में बनाए रखने में समस्या सामने आ रही है. यहां के किसान परिवार बाढ़ और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं, बड़े बाजारों तक पहुंचने की चुनौतियों से प्रभावित हो रहे हैं.
केरल क्लाइमेट रेज़िलिएंट एग्री-वैल्यू चेन मॉडर्नाइज़ेशन (KERA) की 200 मिलियन डॉलर की परियोजना (Project) से राज्य के कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में मदद मिलेगी. 400,000 किसानों को जलवायु-अनुकूल पद्धतियों को लेकर बेहतर समझ और कृषि समाधानों से लाभ होगा. KERA के प्रोजेक्ट के तहत कॉफ़ी, इलायची और रबर की जलवायु-अनुकूल किस्मों की पुनः रोपाई और केरल के फ़ूड पार्कों को ग्रामीण इलाकों में बढ़ावा देने और फैलाने का काम किया जाएगा.
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इन फूड पार्कों में फूड प्रोसेसिंग और मूल्य-वर्धित उत्पाद (value Added Products) के लिए एग्री बिजनेस को सहयोग करने के लिए पानी, बिजली और अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management) जैसे जरूरी बुनियादी ढांचे उपलब्ध कराए जाएंगे. भारत के लिए विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर ऑगस्टे तानो कौमे ने कहा, "यह प्रोजेक्ट प्राइवेट सेक्टर के निवेश को और बढ़ाएगा और किसानों और एसएमई को फायदा पहुंचाने के लिए कृषि मूल्य श्रृंखलाओं को जोड़ेगी."
वहीं, प्रोजेक्ट के टास्क टीम लीडर क्रिस जैक्सन, अजेब मेकोनेन और अमादौ डेम ने कहा, "यह प्रोजेक्ट चावल जैसी मुख्य खाद्य फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेगा और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करेगा."
किसान समूहों और एग्री-बिजनेस के बीच उत्पादक गठबंधन बनाना भी इस प्रोजेक्ट का एक प्रमुख उद्देश्य है. इस गठबंधन से उत्पादकों और खरीदारों के बीच संबंध मजबूत करने में मदद मिलेगी, जिसमें पब्लिक सेक्टर एक सहायक भूमिका निभाएगा और साथ ही एग्री-टेक स्टार्टअप्स को भी बढ़ावा देगा.