अनाज और चीनी भरने के लिए जूट बैग के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. इसके साथ ही सरकार जूट बैग की क्वालिटी, कीमतों में सुधार का निर्णय ले सकती है. इससे 4 करोड़ से अधिक किसान, मजदूर और मिल कर्मचारियों को लाभ मिलेगा. दरअसल, जूट बैग की घटती मांग की चिंताओं और क्वालिटी में सुधार के लिए जूट मिल्स एसोसिएशन की बैठक में कई मुद्दों पर सरकार से सिफारिशें की गई हैं. एसोसिएशन को उम्मीद है कि सरकार इस पर जल्द फैसला लेगी. बता दें कि सरकार चावल, गेहूं और चीनी की पैकिंग के लिए हर साल लगभग 9,000 करोड़ रुपये का जूट सैकिंग बैग खरीदती है.
एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन ने नई दिल्ली में 32वीं स्थायी सलाहकार समिति (SAC) की बैठक की. इसमें कई अहम मुद्दों पर चर्चा की गई है. कहा गया कि जूट बैग की घटती मांग के चलते इस सेक्टर के सामने आने वाली चुनौतियां गंभीर हैं. बैठक में चीनी और प्लास्टिक इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों और स्टेकहोल्डर्स शामिल हुए. बैठक में जूट पैकेजिंग सामग्री के इस्तेमाल को जरूरी करने और खाद्यान्न समेत चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की पैकेजिंग पर केंद्र सरकार से सिफारिशें की हैं.
जूट मिल्स एसोसिएशन के अधिकारियों ने कहा कि जूट आयुक्त कार्यालय (JCO) ने जूट इंडस्ट्री को समर्थन देने की आवश्यकता पर जोर दिया है. कहा गया कि करीब 4 करोड़ किसान और 3.5 लाख जूट मिल कर्मचारी इंडस्ट्री पर निर्भर हैं. चीनी उद्योग निकायों के प्रतिनिधियों ने जूट बैग की कीमत और क्वालिटी के बारे में चिंता जताई और सरकार से चीनी जूट बैग के लिए कीमत तय करने की मांग की है.
जूट मिल्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रिशव कजारिया ने कहा कि जूट इंडस्ट्री 55 फीसदी क्षमता पर काम कर रहा है, जिससे 50,000 से अधिक कर्मचारी प्रभावित हो रहे हैं. 2024-25 तक जूट बैग की मांग घटकर 30 लाख गांठ रह जाने का अनुमान है. 2023 के आंकड़ों के अनुसार सरकार हर साल खाद्यान्न की पैकिंग के लिए लगभग 9,000 करोड़ रुपये का जूट सैकिंग बैग खरीदती है. इस संख्या में बढ़ोत्तरी करने की मांग की गई है.
जूट मिल्स एसोसिएशन की ओर से कहा गया कि जूट उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था में 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान देता है, लेकिन कच्चे जूट की कीमतें एमएसपी स्तर से नीचे गिरने के चलते चुनौतियों का सामना कर रहा है. पर्यावरण संबंधी लाभों के बावजूद कुछ पेय पदार्थ फर्म जूट बैग का इस्तेमाल करने पर रुचि नहीं दिखा रहे हैं, जो सरकारी निर्देशों को न मानने के समान है. 2024-25 में खाद्यान्न और चीनी पैकेजिंग में 100 फीसदी रिजर्व मानदंडों को लागू करने में तत्काल सरकारी हस्तक्षेप का भी आग्रह किया. इसके अलावा जूट बोरियों के इस्तेमाल पर नीति में बदलाव की जरूरत के साथ श्रम कानूनों और मजदूरी समझौतों का पालन जरूरी है.