चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग और खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर ने किसानों के लिए जागरूकता सप्ताह मनाया. इस जागरूकता सप्ताह में 16 से 22 अगस्त तक किसानों को गाजर घास से होने वाले नुकसान के बारे में बताया गया यह जानकारी देते हुए अनुसंधान निदेशक डॉ राजबीर गर्ग ने बताया कि प्रकृति में अत्यंत महत्वपूर्ण वनस्पतियों के अलावा कुछ वनस्पतियां ऐसी भी है जो धीरे-धीरे एक अभिशाप का रूप लेती जा रही हैं.
डॉ. राजबीर गर्ग ने कहा कि बरसात का मौसम शुरू होते ही गाजर की तरह की पत्तियों वाली एक वनस्पति काफी तेजी से बढ़ने और फैलने लगती है. इसे गाजर घास, या चटक चांदनी आदि के नाम से जाना जाता है. गाजर घास को सभी के लिए गंभीर समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरे वर्ष भर खाली जगह और अनुपयोगी भूमि पर उगता और फलता फूलता रहता है, जो किसानों के लिए हानिकारक है.
सस्य विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार यादव ने गाजर घास के प्रवेश से लेकर इसकी विकरालता और इससे कृषि, मनुष्य और पशुओं पर होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि लगातार इस घास के संपर्क में आने से मनुष्यों में डर्मेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा जैसी अनेक गंभीर बीमारियां हो रही हैं. इसके अलावा गाजर घास फसलों और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है. उन्होंने कहा कि इस घास की वजह से खेत में मिट्टी की पोषक तत्व तेजी से घट रहे हैं, जिससे फसल उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ रहा है.
अखिल भारतीय खरपतवार अनुसंधान परियोजना हिसार केंद्र के मुख्य अन्वेषक डॉ. टोडरमल पूनिया ने गाजर घास को नष्ट करने में उपयोग में लाए जाने वाले रसायनों के बारे में जानकारी दी. डॉ. पारस कम्बोज ने जैविक कीट नियंत्रण द्वारा गाजर घास की रोकथाम पर विस्तार से प्रकाश डाला. वहीं, सस्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ. एस. के. ठकराल, डॉ. वीरेंद्र हुड्डा, डॉ. आर.एस. दादरवाल, डॉ. कौटिल्य, डॉ. भगत सिंह, डॉ. सुशील कुमार, डॉ. रामधन, डॉ. नीलम, डॉ. रितांबरा, डॉ. सतपाल, डॉ. श्वेता, डॉ. मूली देवी, डॉ. कविता, डॉ. सत्यनारायण सहित अन्य कर्मचारी और विद्यार्थी भी कार्यक्रम में मौजूद रहे.