Bihar flood: बाढ़ के बाद फसल और बागवानी में कैसे कम करें नुकसान? कृषि विशेषज्ञ ने सुझाए प्रभावी उपाय

Bihar flood: बाढ़ के बाद फसल और बागवानी में कैसे कम करें नुकसान? कृषि विशेषज्ञ ने सुझाए प्रभावी उपाय

बिहार में इस साल बाढ़ के कारण किसानों को धान, गन्ना और फल बागवानी में गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, यदि किसान सही उपाय अपनाते हैं, तो इस नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है. कृषि विशेषज्ञ ने कुछ प्रभावी उपाय सुझाए हैं जो बाढ़ के बाद इन उपायों को अपनाकर बिहार के किसान अपने धान, गन्ना और फल बागवानी में फसलों के नुकसान को कम कर सकते हैं.

बिहार में बाढ़ के बाद धान,की फसल को भारी नुकसानबिहार में बाढ़ के बाद धान,की फसल को भारी नुकसान
जेपी स‍िंह
  • New Delhi,
  • Oct 04, 2024,
  • Updated Oct 04, 2024, 12:31 PM IST

बिहार में इस साल आई बाढ़ ने 19 जिलों की 1.5 से लेकर 3 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि फसलों को नुकसान पहुंचाया है, जिससे हजारों किसान प्रभावित हुए हैं. अब जबकि जलस्तर घटने लगा है, मुख्य रूप से धान, गन्ना, मक्का और सब्जियों की फसलों को काफी नुकसान हुआ है. किसानों को फसलों और पौधों को हुए नुकसान को कम करने के लिए उचित जल निकासी और अन्य प्रबंधन उपाय अपनाना बेहद जरूरी है. सबसे अधिक नुकसान धान की फसल को होने का अनुमान है. विशेष रूप से धान की फसल सबसे अधिक प्रभावित हुई है. वहीं, नेपाल की सीमा से सटे पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण जिलों में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है, जो बाढ़ के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुई है. कृषि विज्ञान केंद्र, पश्चिमी चंपारण-II के प्रमुख डॉ. आर. पी. सिंह ने बताया कि जलभराव से पौधे ऑक्सीजन की कमी से तनाव में आ जाते हैं, जिससे उनकी चयापचय क्रियाएं जैसे वाष्पोत्सर्जन, प्रकाश संश्लेषण और श्वसन धीमी हो जाती है. अगर 7 से 10 दिन तक फसलें पानी में डूबी रहती हैं, तो पौधे मरने लगते हैं. अगर बाढ़ के बाद फसल बच जाती है तो कुछ उपाय अपनाकर नुकसान को कम किया जा सकता है.

बाढ़ के बाद धान, गन्ने की फसल में ये उपाय अपनाएं

केवीके पश्चिमी चंपारण-II के प्रमुख डॉ.आर. पी. सिंह के अनुसार, धान की फसल बाली बनने की अवस्था में जलमग्न हो जाए तो इसका नुकसान ज्यादा होता है. अगर धान 7 दिनों से कम समय तक पानी में रहता है, तो बचने की संभावना रहती है, परंतु अधिक दिनों तक जलमग्न रहने से फसल खराब हो जाती है. उन्होंने सुझाव दिया कि जैसे ही पानी का स्तर घटने लगे, जल निकासी के लिए पंप और नालों का उपयोग करें. अगर फसल पक गई हो, तो कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग दलदली परिस्थितियों में फसल कटाई के लिए किया जा सकता है. इसलिए कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग कर कटाई करें. धान की अत्यधिक गीलापन वाली फसल को नमक के साथ धूप में सुखाया जा सकता है. इससे धान की गुणवत्ता खराब नहीं होती है. जल निकासी के बाद, पौधों की पोषण आपूर्ति के लिए 2% यूरिया, 2% डीएपी और 1% पोटाश का पर्णीय छिड़काव किया जा सकता है.

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धान की फसल में रिकवरी के लिए 500 पीपीएम साइकोसेल और 100 पीपीएम सैलिसिलिक एसिड का छिड़काव करने की सलाह दी गई है. गन्ने की फसल में जलभराव होने पर पानी जल्द से जल्द निकालें और उसके बाद प्रति हेक्टेयर 25 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो पोटाश और 25 किलो सल्फर की खुराक डालें. इसके अलावा, 15 दिन के अंतराल पर 200 लीटर पानी में 3-4 किलो यूरिया और एनपीके 00:52:34 का प्रयोग करें. फंगल रोगों से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियानम का उपयोग करें और 15 दिन के अंतराल पर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन + डिफेनोकोनाज़ोल का छिड़काव करें. अगर धान और दूसरी फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हैं, तो पानी निकलने के बाद मक्का, मसूर, सरसों, टमाटर, खीरा और गोभी जैसी फसलों की बुवाई की जा सकती है. खराब जल निकासी वाले क्षेत्रों की पहचान कर सुधार के उपाय किए जाने चाहिए.

गन्ने की फसल में बाढ़ के पानी के कारण पीलेपन और सूखने की समस्या

केले और पपीते की बागवानी में ये काम जरूरी

फलदार पेड़ जलभराव वाली मिट्टी के प्रति सहिष्णु होते हैं, लेकिन लंबे समय तक जलभराव से ऑक्सीजन की कमी पौधों की मृत्यु का कारण बन सकती है. फलों के पेड़ों में फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए ये उपाय सहायक हो सकते हैं. पपीते की जड़ें जलभराव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं, इसलिए पपीते के खेत से जल्द पानी निकासी करें. केले के खेतों में, मिट्टी सूखते ही तुरंत जुताई करें और सूखी या रोगग्रस्त पत्तियों की कटाई करें. इसके बाद प्रति पौधा 200 ग्राम यूरिया और 150 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश को एक रिंग बनाकर डालें. इससे पौधे स्वस्थ हो जाएंगे और भविष्य में अच्छी पैदावार हो सकेगी जबकि आम, लीची और अमरूद के पेड़ जलभराव के प्रति कम संवेदनशील होते हैं. इन पेड़ों के बागों में, पानी 10-15 दिनों के भीतर निकल जाना चाहिए और मिट्टी को जल्द से जल्द सुखाना चाहिए. आंवले के पेड़ जलभराव सहने की क्षमता रखते हैं.

फल बाग में अपनाएं ये प्रभावी उपाय

बाढ़ का पानी कम होने के बाद, कुछ फलों के पेड़ों में फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न का खतरा बढ़ सकता है. बाढ़ के तुरंत बाद, मिट्टी और वायु के बीच गैसों का आदान-प्रदान बाधित हो जाता है. इसके अलावा, पानी और मिट्टी में सूक्ष्मजीवों द्वारा ऑक्सीजन की अधिक खपत के कारण मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जो पौधों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. इसके कारण पत्तियों का झुकना, पत्तियों का पीला पड़ना और नई जड़ों का न बन पाना शामिल है. बाढ़ के बाद, फलों के पेड़ों के भूमिगत हिस्सों पर सफेद और स्पंजी ऊतक उभरने लगते हैं.
•   पानी जल्दी निकालने के लिए नए जल निकासी चैनल बनाएं या पंप की सहायता लें.
•   मिट्टी की सतह से जमा मलबे को हटाकर मिट्टी को उसके मूल स्तर पर लाएं.
•   जुताई योग्य होते ही मिट्टी की जुताई करें और पेड़ों की उम्र के अनुसार खाद और उर्वरक का प्रयोग करें.
•   फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न से बचाव के लिए "रोको एम" (थायोफानेट मिथाइल) का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर उपयोग करें.
•  इन उपायों से बाढ़ के बाद धान, गन्ना और फल बागवानी को हुए नुकसान को कम किया जा सकता है.

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