कर्नाटक का विजयपुरा जिला बहुत नामी है. इसका नाम इसलिए है क्योंकि देश की सबसे टॉप क्वालिटी की किशमिश (सूखा अंगूर) यहीं से निकलती है. यह जिला उत्तरी कर्नाटक में है. इस जिले में उम्दा क्वालिटी की किशमिश होने के बावजूद किसान बहुत मायूस हैं. उनकी पेरशानी की वजह भी है. किसानों की शिकायत है कि उनकी उगाई और बनाई किशमिश की मांग बेहद अधिक है, क्वालिटी भी टॉप क्लास की है. लेकिन जब आमदनी की बात होती है तो किसानों की झोली में बहुत कम दाम आता है. किसान इस कमी के बारे में कहते हैं कि किशमिश के इस पूरे बेल्ट में मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की घोर कमी है जिससे किसान लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. अब जबकि कर्नाटक में चुनाव हो रहे हैं, तो किसान चाहते हैं कि अगली सरकार जिसकी भी बने, वो इस मुद्दे को जरूर सुलझाए.
कर्नाटक में 10 मई से विधानसभा चुनाव होने हैं. इसी में एक जिला है विजयपुरा जिसका नाम पहले बीजापुर था. इसका नाम 2014 में बीजापुर से विजयपुरा कर दिया गया. केंद्र में जैसे ही नरेंद्र मोदी की सरकार आई बीजापुर का नाम बदलकर विजयपुरा कर दिया गया. इसी विजयपुरा में देश की सबसे अच्छी किशमिश तैयार की जाती है.
विजयपुरा जिले में बाबलेश्वर और विजयपुरा शहर सहित आठ विधानसभा क्षेत्र हैं. मौजूदा विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस की बराबर दखल है- सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस के पास 3 विधायक हैं जबकि जेडी (एस) दो अन्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है. कुछ साल पहले तक, इस कृषि प्रधान जिले के सूखे इलाके में किसानों की मुख्य समस्या सिंचाई थी, जिस समस्या को बाबलेश्वर विधानसभा क्षेत्र से मौजूदा कांग्रेस विधायक एम बी पाटिल ने दूर किया था, जब वे 2013 में जल संसाधन मंत्री थे.
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अब जब जिले के अधिकांश कृषि भूमि में पानी पहुंच गया है, तो पिछले कुछ वर्षों में अंगूर की उत्पादकता और क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है. इसने किसानों के लिए एक नई समस्या पैदा कर दी है जिसका नाम है मार्केटिंग.
बाबलेश्वर विधानसभा क्षेत्र के तिकोटा गांव के एक अंगूर उत्पादक किसान शम्मुका मठपति PTI से कहते हैं, "इससे पहले, मैंने अपनी छह एकड़ जमीन में 1,000 फीट जितना गहरा 20 बोरवेल खोदने की कोशिश की, लेकिन पानी नहीं मिला. 2013 के बाद पास के कृष्णा बैराज से एक नहर के माध्यम से पानी की सप्लाई शुरू हुई. इससे टैंकों में पानी भरने में मदद मिली और स्टोरेज पॉइंट भी बनाए गए."
शम्मुका मठपति के मुताबिक, इस सिंचाई व्यवस्था से न केवल टैंक जल आपूर्ति पर प्रति एकड़ कम से कम एक लाख रुपये खर्च बचाने में मदद मिली है बल्कि उत्पादकता में भी सुधार हुआ है. उन्होंने कहा कि इसने अधिक किसानों को इस क्षेत्र में अंगूर की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जिससे अधिक पैदावार बढ़ी. मठपति के बेटे सचिन कहते हैं, लेकिन अब बड़ी सिरदर्दी मार्केटिंग की है. यहां बनाई गई अधिकांश किशमिश बिचौलियों की मदद से पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में बेची जाती है. महाराष्ट्र में कोल्ड स्टोरेज की अच्छी व्यवस्था है, इसलिए वहां के व्यापारी यहां के किशमिश को खरीद लेते हैं.
सचिन ने कहा कि तिकोटा में 1,000 टन क्षमता की केवल एक प्राइवेट स्टोरेज यूनिट है, जो मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि यहां से लगभग 20,000 टन की मार्केटिंग की जाती है. उसी गांव के एक अन्य किसान एस वी कोडनापुर, जिनके पास पांच एकड़ में अंगूर का बाग है, ने कहा कि उत्पादन की लागत बहुत बढ़ गई है. वे कहते हैं, "इसके ऊपर परिवहन, भंडारण और महाराष्ट्र के बाजारों में भुगतान किए जाने वाले कमीशन के लिए हमें शायद ही कोई रिटर्न मिलता है."
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कई मांगों के बाद, कुछ साल पहले विजयपुर शहर में सूखे अंगूरों के लिए एक ऑनलाइन नीलामी मंडी खोली गई थी, लेकिन किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि एक ही जगह पर सूखे अंगूर उगाए जाने के बावजूद रेट में अंतर बहुत बड़ा था. बिचौलिए किसानों से जीएसटी ले रहे हैं, जिसका उन्हें भुगतान करना होता है. इसने किसानों को हतोत्साहित किया और उन्हें महाराष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्रों में बिचौलियों के माध्यम से सूखे अंगूर बेचने के लिए मजबूर किया.
तिकोटा गांव के पास एकमात्र फूड प्रोसेसिंग यूनिट के बंद होने से निर्यात भी बंद हो गया है, अन्यथा किसानों को बेहतर दर मिलती, सचिन ने कहा, "अगर फूड प्रोसेसिंग यूनिट यहां आती है तो हम निर्यात क्वालिटी वाले सूखे अंगूर की आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं." कर्नाटक के 75,000 टन सूखे अंगूर के कुल उत्पादन में विजयपुरा जिले का योगदान 75 प्रतिशत है. देश में महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक सूखे अंगूर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. सूखे अंगूरों के लिए राज्य में कुल 25,000-28,000 टन कोल्ड स्टोरेज की सुविधा है.
टॉप क्वालिटी वाले सूखे अंगूर की दरें 250 रुपये प्रति किलोग्राम हैं, लेकिन यहां के किसानों को केवल 125-150 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहा है और फसल लागत और मजदूरी की कीमतों में वृद्धि के बीच उत्पादन लागत को कवर नहीं किया गया है. विजयपुरा में एक नीलामी केंद्र काम कर रहा है लेकिन किसानों को जीएसटी का भारी बोझ उठाना पड़ता है जो बिचौलिये उनके असल मूल्य से लेते हैं. उन्होंने कहा कि हालांकि यहां से थोड़ी मात्रा में निर्यात हो रहा है, लेकिन बाजार के बुनियादी ढांचे की कमी, खराब सड़क और एयर कनेक्टिविटी के कारण बहुत से खरीदार आने को इच्छुक नहीं हैं.