भारत के कृषि क्षेत्र ने हरित क्रांति के समय जो प्रगति देखी, उसका श्रेय काफी हद तक पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को जाता है. इन क्षेत्रों ने चावल और गेहूं जैसी मुख्य खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धि ने देश को खाद्यान्न सुरक्षा प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई . लेकिन इन क्षेत्रों में अधिक पानी फसलों धान और गेहूं की ओर अधिक झुकाव और गांवों में घर-घर लगे सबमर्सिबल पंपों के कारण भूजल का बहुत अधिक दोहन हो रहा है, जिससे भूजल स्तर लगातार गिर रहा है. इसके नतीजन भूजल स्तर लगातार घटता जा रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए जल का संकट गंभीर हो सकता है. इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन, भूजल के बहुत अधिक इस्तेमाल और, पारंपरिक सिंचाई विधियों और नीतिगत खामियों के चलते जल संकट को भयावह बना दिया है. आज हालात यह हैं कि कई इलाकों में भूजल स्तर इतना गिर चुका है कि खेती करना कठिन और महंगा होता जा रहा है.
अलीगढ़, यूपी के गांव बनूपुरा में बैठे बुजर्ग गजराज सिंह (भैया जी), चौधरी मिश्री सिंह और किशन लाल मास्टर कहते हैं कि आज से पचास साल पहले गांव में 11 कुंए थे जिनमें साल भर पानी उपलब्ध रहता था. अब गांव के सभी कुंए सूख गए, 5 पोखरें थीं अब एक भी पोखर नहीं बची है और तो और गांव के पास बहती ‘नीम नदी’ भी सूख चुकी है. पहले बोरवेल 60 फीट पर पानी देता था, अब 180 फीट तक जाना पड़ रहा है. डीजल और मोटर की लागत भी बढ़ गई है, पर पानी फिर भी कम मिलता है.
हरियाणा के कुरुक्षेत्र के किसान जयपाल सिंह बताते हैं- हमारे गांव में धान बोने से पहले 10-12 घंटे मोटर चलानी पड़ती है. जो पानी पहले 100 फुट में मिलता था, अब 250 फुट से भी नीचे चला गया है. इस तरह पानी पानी पाताल में पहुंच चुका है. पंजाब के लुधियाना जिले के किसान हरप्रीत सिंह बताते हैं-अब खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है. पानी खींचने के लिए नई मोटर लगानी पड़ी और पानी फिर भी कम मिल रहा है.
पंजाब, जो कभी "भारत का अनाज गोदाम" कहलाता था, अब जल संकट की चपेट में है. यहां के भूजल स्तर में निरंतर गिरावट हो रही है, खासकर जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक सिंचाई के कारण. केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब राज्य के कुल 141 ब्लॉकों में से 117 ब्लॉक "अत्यधिक जल दोहन" श्रेणी में आ चुके हैं.
हरियाणा में भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. राष्ट्रीय जल नीति के अनुसार, हरियाणा में भूजल स्तर लगभग 1 मीटर प्रति वर्ष की दर से घट रहा है. हरियाणा ग्राउंडवाटर मैनेजमेंट एंड एनवायरनमेंट डिपार्टमेंट, 2020 के अनुसार यहां के अधिकांश किसान समरसेबल पंप का उपयोग करके 80 फीसदी पानी निकालते हैं, जो जल स्तर में गिरावट का मुख्य कारण है. केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा राज्य के 88 में से 76 ब्लॉक में भूजल स्तर बहुत नीचे जा चुका है. जो बेहद खतरनाक स्थिति पैदा हो गई है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी जल संकट विकराल रूप ले चुका है. मेरठ, बागपत और मुजफ्फरनगर जैसे जिलों में भूजल स्तर में भारी गिरावट देखी जा रही है. 2019 में किए गए उत्तर प्रदेश जल संसाधन विभाग के एक अध्ययन के अनुसार, इन जिलों में भूजल स्तर औसतन 20-30 फीट नीचे जा चुका है. 2023 में केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, अलीगढ़ जैसे जिलों में भूजल की गहराई 15 से 25 मीटर के बीच पहुंच चुकी है.
केंद्रीय भूजल बोर्ड साल 2023 और नीति आयोग साल 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 21 बड़े शहरों में वर्ष 2030 तक भूजल पूरी तरह समाप्त होने का खतरा है. यह परिदृश्य विशेषकर उन छोटे और सीमांत किसानों के लिए चिंता का विषय है, जो पूरी तरह से भूजल पर निर्भर हैं और जिनके पास वैकल्पिक सिंचाई के साधन नहीं हैं.
अधिक जलमांग वाली फसलों की खेती जैसे धान एक किलोग्राम उत्पादन में 3000-5000 लीटर पानी लेता है. पंजाब जैसे राज्य, जहां बारिश कम होती है, वहां धान की खेती भारी मात्रा में भूजल पर निर्भर है.
1- मुफ्त/सब्सिडी वाली बिजली- किसानों को मुफ्त बिजली मिलने से वे दिन-रात सबमर्सिबल पंप चलाकर भूजल निकालते हैं. इससे एक असंतुलन पैदा होता है-खपत ज्यादा, पुनर्भरण कम.
2- MSP नीति और फसल विविधीकरण की कमी -चावल और गेहूं की सरकारी खरीद ने किसानों को वैकल्पिक फसलों से दूर कर दिया है. कम पानी वाली फसलें जैसे बाजरा, मक्का या दालें अधिक लाभकारी हो सकती हैं, पर MSP की गैर-उपलब्धता उन्हें आकर्षक नहीं बनाती.
3-सबमर्सिबल पंप- खेती के अतिरिक्त घर-घर सबमर्सिबल पंप लग रहे हैं जिनसे स्नान करने, कपड़े धोने, और वाहन धोने जैसे काम किए जाते हैं. साथ ही अनावश्यक अतिरिक्त जल नालियों में बहता रहता है.
4-भूजल पुनर्भरण की उपेक्षा-वर्षा जल संचयन, तालाबों का संरक्षण, और पारंपरिक जल संरचनाओं की अनदेखी के कारण जमीन में पानी की भरपाई नहीं हो पा रही. भूजल स्तर में गिरावट के परिणामस्वरूप कृषि लागत बढ़ती जा रही है, क्योंकि अधिक गहराई से पानी खींचना महंगा पड़ता है. छोटे किसान कर्ज में डूब रहे हैं क्योंकि सिंचाई के लिए जरूरी संसाधन जुटाना उनके लिए कठिन होता जा रहा है और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है. इससे ज़मीन की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है, और जलवायु परिवर्तन के असर तेज हो रहे हैं.
लेखक: डॉ. रणवीर सिंह (ग्रामीण विकास, पशुपालन और नीति निर्माण प्रबंधन में चार दशकों का अनुभव)