
सोयाबीन और मक्के के बाद अब कपास का नंबर है. देश में कपास की कीमतें लगातार गिर रही हैं. सरकारी डेटा बताता है कि किसानों को एमएसपी से 700-800 रुपये तक कम रेट मिल रहे हैं. मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) की बात करें तो केंद्र सरकार ने मध्यम रेशे वाले कपास के लिए 7710 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे रेशे वाले कपास के लिए 8110 रुपये रेट तय किया है. मंडियों में अभी अधिक आवक मध्यम रेशे वाले कपास की है, जिसका रेट 6988 रुपये चल रहा है, जबकि एमएसपी 7710 रुपये है. रेट की यह जानकारी सरकारी एजेंसी एगमार्कनेट ने दी है.
कीमतों में यह गिरावट ऐसे समय में देखी जा रही है जब केंद्र सरकार ने कपास की इंपोर्ट ड्यूटी जीरो कर रखी है. रेट की गिरावट से साफ है कि सरकार के इस फैसले का फायदा व्यापारियों और मिल मालिकों को मिल रहा है जबकि किसान एमएसपी के लिए भी जूझ रहे हैं. मतलब साफ है कि इंपोर्ट ड्यूटी जीरो करने के बाद किसानों पर बड़ी आर्थिक चोट पड़ी है. अगर यही हाल रहा तो किसान कपास की खेती को और कम कर देंगे.
सरकार का एक आंकड़ा बताता है कि जिस तेजी से कपास की एमएसपी में वृद्धि हुई है, उसके ठीक उलट किसानों को मिलने वाले मॉडल प्राइस में गिरावट आई है. चौंकाने वाली बात ये है कि मंडियों में कपास की आवक समय के साथ गिरी है. ट्रेड का एक सामान्य नियम है कि जब आवक गिरती है, सप्लाई घटती है तो प्रोडक्ट का दाम बढ़ता है. लेकिन कपास के मामले में ऐसा नहीं हुआ. इसके दाम बढ़ने के बजाय गिर गए और इसकी सबसे बड़ी वजह है जीरो इंपोर्ट ड्यूटी.
भारत में कपास पर जीरो इंपोर्ट ड्यूटी है. इसका मतलब हुआ कि देश का कोई भी व्यापारी या मिलर जीरो आयात शुल्क के साथ कपास का आयात कर सकता है. सरकार ने इसे 31 दिसंबर तक के लिए जारी रखा है. सरकार का तर्क है कि जीरो इंपोर्ट ड्यूटी होने से देश के कपड़ा उद्योग की लागत स्थिर होगी जिससे कपड़ा कंपनियों को मदद मिलेगी और किसानों के कपास की खरीद बढ़ेगी.
सरकार का यह तर्क नियम के अनुरूप है, मगर धरातल पर इसका कोई फायदा नहीं दिख रहा है. धरातल पर हालात यह हैं कि किसानों को नुकसान हो रहा है. अगर फायदा होता तो किसानों को कपास की अच्छी कीमतें मिलतीं. हालत तो ये है कि किसान कपास की एमएसपी भी नहीं ले पा रहे हैं. दूसरी ओर कपड़ा कंपनियां और मिल मालिक फायदा उठा रहे हैं.
इस ट्रेंड के बारे में कपास के एक्सपर्ट विजय जावंघिया कहते हैं, इंपोर्ट ड्यूटी जीरो होने से कपड़े का दाम 2से 2.5 रुपये तक कम होगा जिसका सीधा फायदा मिलों और व्यापारियों को मिलेगा. एक अनुमान के मुताबिक, इपोर्ट ड्यूटी के इस फैसले से कपड़ा इंडस्ट्री को 15,000 करोड़ रुपये का फायदा होगा जबकि किसानों की पूरी खेती तहस-नहस हो जाएगी. इसका प्रभाव भी दिखने लगा है क्योंकि किसान अब कपास के ध्यान हटाकर दलहन और तिलहन पर टिका रहे हैं. इसका सीधा-सीधा कारण कपास की गिरती कीमतें और जीरो इंपोर्ट ड्यूटी है.
खेती और ट्रेड का एक सीधा फंडा है कि जब कोई माल बाहर से आना शुरू होता है तो लोकल स्तर पर उसका प्रोडक्शन घटने लगता है. यह नियम सरकार को भी पता है, उसके बावजूद दिसंबर तक कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी जीरो करना सोच से परे है क्योंकि कपास का सीजन अक्तूबर से शुरू होता है और कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) खरीद शुरू करता है. कपास का आयात देखें तो इसमें लगातार वृद्धि जारी है.
सरकार का आंकड़ा बताता है कि 2023-24 में जहां 1550312 बेल्स (एक बेल में 170 किलो) का आयात हुआ, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 4139941 बेल्स हो गया. जिस दौरान कपास का आयात बढ़ता गया, उस दौरान देश में कपास की खेती सिकुड़ती गई. इसके बावजूद किसानों को अच्छे दाम नहीं मिले. वजह है, विदेश से कपास की खरीद. जब मिलों और व्यापारियों को विदेशी माल आसानी से और कम रेट पर मिल जाएगा तो वे देश के किसानों से कपास क्यों खरीदेंगे? इससे किसानों में हताशा है और वे कपास की जगह किसी और फसल की ओर रुख कर रहे हैं.
रेट की इस हालत के पीछे ग्लोबल ट्रेंड को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है. यानी पूरी दुनिया में कपास की खरीद सुस्त है, इसलिए भारत के कपास की मांग गिर गई है. एक्सपर्ट बताते हैं कि कमजोर डिमांड के बीच ग्लोबल प्राइस ट्रेंड की वजह से कीमतें MSP से नीचे बनी हुई हैं, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि सीसीआई यानी कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया MSP पर खरीद करके किसानों को राहत देगा. लेकिन यह राहत तब काम आएगी जब किसानों को एमएसपी वाला दाम मिलेगा.
सीसीआई की खरीद से ही पता चलता है कि प्राइवेट ट्रेड में कच्चे कॉटन (कपास) की कीमतें 6,500 रुपये और 7,500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच चल रही हैं, जो 8,100 रुपये के MSP से कम है.
जाहिर सी बात है कि जब सरकारी एजेंसी भी किसानों को एमएसपी रेट नहीं दे रही है तो किसान व्यापारियों से क्या उम्मीद कर सकते हैं. कुल मिलाकर, किसानों के लिए एमएसपी दूर की कौड़ी बन गई है जिसके बारे में वे सुनते जरूर हैं, मगर वह रेट उनके हाथ नहीं आता. अब किसानों की पूरी उम्मीद सरकार पर टिकी है कि वह बाजार में किसी तरह से दखल दे और कपास की एमएसपी दिलवाए.