Basmati चावल पर भारत की उम्‍मीदों को झटका! न्‍यूजीलैंड और केन्‍या की अदालत ने APEDA की याचिका खारिज की

Basmati चावल पर भारत की उम्‍मीदों को झटका! न्‍यूजीलैंड और केन्‍या की अदालत ने APEDA की याचिका खारिज की

APEDA's Basmati Exclusive Rights Plea Rejected: न्‍यूजीलैंड और केन्‍या की अदालतों ने बासमती चावल पर भारत की विशेष मार्केटिंग अधिकार की मांग खारिज कर दी. इससे APEDA की अंतरराष्‍ट्रीय दावेदारी को बड़ा झटका लगा. जानिए दोनों देशों की कोर्ट ने याचिका पर क्‍या कहा...

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Nov 21, 2025,
  • Updated Nov 21, 2025, 2:17 PM IST

न्यूजीलैंड और केन्या की अदालतों ने भारत के उस प्रयास को झटका दिया है, जिसमें उसने बासमती चावल को लेकर अपने विशिष्ट विपणन अधिकार (एक्‍सक्‍लूसिव मार्केटिंग राइट्स) सुरक्षित करने के लिए विश्‍व व्‍यापार संगठन (WTO) के TRIPS (ट्रेड रिलेटेड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) समझौते का सहारा लिया था. दोनों देशों ने APEDA की याचिका खारिज कर दी. पिछले महीने दिए गए अलग-अलग फैसलों में दोनों देशों की अदालतों ने साफ कर दिया कि ट्रिप्स (TRIPS) के तहत किसी भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग को तभी मान्यता मिल सकती है, जब वह संबंधित देश के घरेलू कानूनों की कसौटियों पर खरा उतरे.

'बिजनेसलाइन' की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूजीलैंड हाई कोर्ट और केन्या की कोर्ट ऑफ अपील ने एपीडा की ओरसे दायर उन अपीलों को खारिज कर दिया, जिनमें उसने अपने बासमती चावल के लिए ट्रेडमार्क मान्यता मांगी थी. भारत की ओर से दलील दी गई थी कि बासमती चावल को जीआई टैग प्राप्त है और इसलिए उसे इन देशों में भी विशेष संरक्षण मिलना चाहिए.

APEDA ने दोनों देशाें के कोर्ट में की थी ये अपील

न्यूजीलैंड में एपीडा ने बासमती शब्द को ट्रेड मार्क्स एक्ट के तहत रजिस्‍टर कराने की कोशिश की थी. वहीं, केन्या में उसने उन छह चावल किस्मों को ट्रेडमार्क दिए जाने का विरोध किया था, जिनमें बासमती शब्द शामिल था. एपीडा का तर्क था कि TRIPS समझौते के अनुच्छेद 22 के तहत सदस्य देशों पर यह दायित्व है कि वे जीआई के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी उपाय उपलब्ध कराएं. 

न्‍यूजीलैंड हाई कोर्ट ने दिया ये बयान

वहीं, न्यूजीलैंड में एपीडा ने कहा कि बासमती मार्क का पंजीकरण ही भारतीय घरेलू कानून में मौजूद जीआई की रक्षा का एकमात्र व्यावहारिक तरीका है. लेकिन, न्यूजीलैंड हाई कोर्ट के जस्टिस जॉन बोल्ट ने कहा कि ट्रिप्स समझौता विदेशों में पंजीकृत जीआई को मान्यता देने के लिए सदस्य देशों पर कोई बाध्यता नहीं डालता, अगर वे घरेलू कानून की जरूरतों को पूरा नहीं करते.

सरकारी पक्ष की ओर से यह तर्क भी दिया गया कि न्यूजीलैंड का फेयर ट्रेडिंग एक्ट पहले ही उपभोक्ताओं को उत्पादों की भौगोलिक उत्पत्ति को लेकर गुमराह करने वाले दावों से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है. अदालत ने माना कि घरेलू कानून उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त है और इसलिए बासमती ट्रेडमार्क का पंजीकरण अनिवार्य नहीं माना जा सकता.

केन्‍या की अदालत ने नहीं स्‍वीकारी मांग  

केन्या की कोर्ट ऑफ अपील में भी स्थिति कुछ ऐसी ही रही. एपीडा ने ए‍क कमोडिटी ट्रेडिंग फर्म द्वारा बासमती शब्द वाले ट्रेडमार्क के आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि एक डब्ल्यूटीओ सदस्य के रूप में केन्या ट्रिप्स समझौते के दायित्वों के प्रति बाध्य है. उसकी दलील थी कि ट्रिप्स के प्रावधान केन्या के संविधान के अनुच्छेद 2(5) और 2(6) के तहत घरेलू कानून का हिस्सा हैं. लेकिन, जजों ने साफ किया कि ट्रिप्स एक ‘सेल्फ-एक्जि‍क्यूटिंग’ संधि नहीं है और उसे लागू करने के लिए राष्ट्रीय कानूनों की प्रक्रिया से गुजरना ही होगा.

अदालत ने कहा कि केन्या का ट्रेड मार्क्स एक्ट ट्रिप्स के दायित्वों को लागू करता है और जीआई की सुरक्षा के लिए सामूहिक या प्रमाणन चिह्न के रूप में पंजीकरण का रास्ता प्रदान करता है. जजों ने यह भी कहा कि ट्रिप्स किसी एक मॉडल को अनिवार्य नहीं बनाता और अलग-अलग देशों में जीआई के संरक्षण के लिए अलग तरीके अपनाए गए हैं. जस्टिस बोल्ट ने न्यूजीलैंड के फैसले में यह सवाल भी उठाया कि अगर एपीडा पाकिस्तान को बासमती शब्द के इस्‍तेमाल से नहीं रोकना चाहता तो फिर ट्रेडमार्क पंजीकरण से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा.

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