ऊंट को राजस्थान खासकर रेगिस्तानी इलाकों की लाइफ लाइन कहा जाता है. हालांकि समय के साथ इनकी उपयोगिता काफी कम हुई है. इसीलिए यह जानवर अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई भी लड़ रहा है. आज से कुछ साल पहले तक पश्चिमी राजस्थान में आम तौर दिखने वाले ऊंट अब कम दिखने लगे हैं. जैसे-जैसे इनकी संख्या कम हो रही है, ऊंट की विशेषताओं के बारे में वैज्ञानिकों के साथ-साथ आम लोगों को भी ज्यादा पता चल रहा है. खासकर ऊंटनी के दूध से बने उत्पादों और उसके दूध का तमाम बीमारियों में फायदेमंद होने की बात अब आम लोगों के बीच पहुंच रही है. कई वैज्ञानिक शोध ये पुष्टि कर चुके हैं ऊंटनी का दूध से ऑटिज्म, शुगर, अस्थमा, पेट की बीमारी, पेशाब संबंधी परेशानी, हेपेटाइटिस, पीलिया और टीबी जैसी बीमारियों में फायदेमंद साबित हो रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं कि टीबी की बीमारी में ऊंटनी के दूध टीबी में कारगर है.
टीबी बीमारी में ऊंटनी का दूध उपयोग में लेने के बारे में अब डॉक्टर भी कहने लगे हैं. क्योंकि कई मेडिकल रिसर्च में यह साबित हुआ है कि टीबी को ठीक करने में ऊंटनी का दूध फायदेमंद है. बीकानेर स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन केमल (भारतीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, एनआरसीसी) के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. योगेश कुमार से किसान तक ने इस संबंध में बात की.
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वे कहते हैं कि ऊंटनी के दूध की मेडिसिन उपयोगिता कुछ सालों से बढ़ रही है. ऑटिज्म, डाइबिटीज, अस्थमा और कैंसर जैसी बीमारियों में तो यह सिद्ध हो चुका है कि ऊंटनी का दूध इन बीमारियों में दवाई का काम करता है. वहीं बीते कुछ समय पूर्व ही टीबी बीमारी में कई रिसर्स सामने आईं है. उन्होंने कहा कि टीबी के मरीजों की दूध को लेकर मांग भी हमारे पास आ रही है, लेकिन एनआरसीसी ने अपनी किसी रिसर्च में ऊंटनी के दूध से टीबी ठीक होने का दावा अभी तक नहीं किया है. हालांकि दुनियाभर में हुई कई मेडिकल रिसर्च में यह साबित हुआ है कि टीबी बीमारी में ऊंटनी का दूध उपयोग लेने से मरीज को आराम मिलता है.
सितंबर 2017 में पब्लिश हुए राघवेन्द्र सिंह, गोरखमल, देवेन्द्र कुमार, एनवी पाटिल और केएमएल पाठक के एक रिसर्च ‘केमल मिल्कः एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक सहायक’ में एक चैप्टर टीबी मरीजों पर ऊंटनी के दूध के फायदों के बारे में भी दिया है.
इस रिसर्च पेपर में बताया गया कि ऊंटनी का दूध सभी तरह की टीबी यानी एम्पीईम, फ्रेश, क्रॉनिक पल्मनरी और मल्टीपल ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) में काम में लिया जाता है. ऊंटनी के दूध का टीबी में फायदा देखने के लिए टीबी से पीड़ित पुरुषों को ऊंटनी का दूध उपयोग में लेने वाले और नहीं लेने वाले समूहों में विभाजित किया. इसके कुछ दिनों बाद ऊंटनी का दूध उपयोग में लेने वाले रोगी पुरुषों में खांसी, कफ, सांस फूलना, हेमोप्टाइसिस और बुखार नहीं पाया गया.
इसके उलट, जिस समूह ने ऊंटनी नहीं लिया उनमें खांसी और सांस फूलने के संकेत लगातार मिले. ऊंटनी का दूध लेने वाले रोगियों में हीमेटोलॉजिकल और रेडियोलॉजिकल अवलोकनों में तुलनात्मक रूप से अधिक सुधार पाया गया. साथ ही टीबी रोगियों के जिस समूह ने ऊंटनी का दूध उपयोग में लिया उनके शरीर के वजन में 6.48 से 20.68% बढ़ोतरी हुई. वहीं, दूसरे समूह में यह 3.38 से 4.70% के बीच रही.
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इसी तरह एमडीआर टीबी रोगियों में अध्ययन किए गए इम्युनोग्लोबुलिन की स्थिति ने संकेत दिया कि ऊंटनी का दूध लेने वाले रोगियों में आईजीजी और आईजीए संक्रमण का स्तर, दूसरे समूह की तुलना में कम हो गया. रिसर्च में दावा किया गया कि आईजीएम एंटीबॉडी स्थिति में, ऊंटनी का दूध लेने वाले समूह के 62.50% रोगी नेगेटिव पाए गए. वहीं, परीक्षण के अंत में दूसरे समूह के रोगी टीबी पॉजिटिब पाए गए.
इस रिसर्च के निष्कर्ष में कहा गया कि ‘ऊंटनी का कच्चा दूध सामान्य चिकित्सा के साथ टीबी में तेजी से रिकवरी में मदद करता है और ऊंटनी का दूध तपेदिक के रोगियों में सहायक पोषण पूरक के रूप में कार्य कर सकता है. क्योंकि क्लिनिकल, बैक्टीरियोलॉजिकल और रेडियोलॉजिकल विशेषताओं से संबंधित परिणामों ने नियंत्रण समूह की तुलना में ऊंटनी का दूध इस्तेमाल करने वाले रोगी समूह में सुधार के संकेत दूसरे समूह की तुलना में ज्यादा थे.
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टीबी इंडिया-2022 की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में भारत में टीबी के कुल एक्टिव केस 19.33 लाख हैं. यह साल 2020 से 19 फीसदी ज्यादा हैं. 2020 में देश में 16.28 लाख टीबी मरीज थे. भारत सरकार की कोशिश है कि साल 2025 तक देश से टीबी को पूरी तरह खत्म किया जाए,लेकिन देश में टीबी मरीजों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है.
वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल टीबी रिपोर्ट-2022 के मुताबिक देश में टीबी के कुल मरीज 29.50 लाख हैं. यानी प्रति एक लाख में से 210 मरीज टीबी के हैं. 2021 में कुल 21.16 लाख टीबी केस नोटिफाइ किए गए हैं.