बरसात में पशुओं की जान ले सकती हैं ये तीन बीमारियां, जान लें बचाव का आसान उपाय

बरसात में पशुओं की जान ले सकती हैं ये तीन बीमारियां, जान लें बचाव का आसान उपाय

बरसात का मौसम पशुओं के लिए ठीक नहीं होता. खासकर दुधारू पशुओं के लिए. बरसात में पशुओं में संक्रमण फैलने का अधिक डर होता है. बरसात में तीन बीमारियां ऐसी हैं जिनका खतरा सबसे अधिक होता है-खुरपका मुंहपका, गलाघोंटू और लंगड़ी. किसानों को इन बीमारियों के लक्षण और बचाव के उपाय जरूर जान लेने चाहिए.

खुरपका मुंहपका बीमारी खुरपका मुंहपका बीमारी
क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 12, 2025,
  • Updated May 12, 2025, 5:46 PM IST

डेयरी पालकों के सामने कई तरह की मुश्किलें आती हैं. लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत पशुओं को होने वाली ऐसी बीमारियां हैं, जो कई बार इलाज का वक्त भी नहीं देतीं, और पशु असमय काल के गाल में समा जाते हैं. पशुपालकों को भारी अर्थिक नुक़सान उठाना पड़ता है. बरसात के मौसम दूधारू पशुओं कई रोग बीमारी के चपेट में आ जाते हैं. टीकाकरण से पशुओं बचाया जा सकता है. आइए जानते हैं दूधारू पशुओं में लगने वाले रोग और उनके लक्षणों की पहचान और टीकाकरण के बारे में.

टीकाकरण है जरूरी 

कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनका उपचार तो संभव है, लेकिन इलाज के दरम्यान दुधारु पशुओं के दूध उत्पादन में भारी गिरावट होती है. या दूसरे काम में आने वाले पशु की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाती है. इन सबसे पशुमालिकों को आर्थिक नुक़सान होता है. लेकिन इनसे बचने का उपाय अलग-अलग बीमारियों का वैक्सीनेशन है जिससे आपके पशु ऐसी बीमारियों की चपेट आएंगे ही नहीं. किन पशुओं को टीका लगवाएं? इस बात को लेकर आपमें कोई भ्रम भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि सभी उम्र के पशुओं का टीकाकरण ज़रूरी है. 

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दरअसल टीकाकरण से पशुओं में उस बीमारी से लड़ने की रोग प्रधिरोधक क्षमता बढ़ती है जिससे पशु जल्दी बीमार नहीं पड़ते. इससे पशुओं में बीमारी जानलेवा साबित नहीं होती. इसमें अलग-अलग बीमारियों के, सीज़न के हिसाब से 6 महीने या साल भर पर टीका लगवाना जरूरी होता है. जैसे सबसे गंभीर रोग गलाघोंटू की बात करें, तो ये ज्यादातर बारिश में होता है. इस बीमारी में पशुओं को संभलने तक का मौक़ा नहीं मिलता. गले के पास सूजन होती है और गला चॉक कर जाता है. गलाघोंटू का टीका साल में एक बार लगता है. गलाघोंटू बीमारी का कोई उपचार नहीं है बल्कि टीकाकरण ही रास्ता है. इसलिए गलाघोंटू का टीका लगवा लेना चाहिए. 

खुरपका-मुंहपका से बचाव 

खुरपका-मुंहपका रोग वाइरस जनित  रोग है. इस बीमारी में पशुओं के खुर पक जाते हैं, जीभ में छाले पड़ जाते हैं और मुंह पक जाता है. पशु कुछ खा नहीं पाता, बुखार और कमजोरी से धीरे-धीरे मरणासन्न हो जाता है. इसमें इलाज तो संभव है, पर पशुओं का दूध और उनके काम करने की क्षमता बहुत कम हो जाती है. इसलिए वैक्सीनेशन से आप उनका बचाव कर सकते हैं. ये रोग पशुओं का सबसे ज्यादा संक्रामक और घातक रोग है, रोग किसी भी उम्र की गाय और उसके बच्चों में हो सकता है. ये किसी भी मौसम में हो सकता है, इसलिए रोग होने से पहले ही उसके टीके लगवा लेना फायदेमंद रहता है. अगर दूधारू पशु यह बीमारी के लक्षण दिखाई दे तो सबसे पहले इसको दूसरे पशुओ से अलग कर दें. इसके बाद पशु को जीवाणुनाशक घोल से ज़ख्म धोएं, नरम घास-चारा पशुओं को दें.

गलघोंटू रोग से बचने के उपाय

ये  रोग अधिकत्तर बरसात के मौसम में गाय और भैंसों में फैलता है. इस रोग में पशु को तेज बुखार आ जाता है, गले में सूजन और सांस लेते समय घर्र-घर्र की आवाज आती है. इस रोग से पशु को बचाने के लिए एन्टीबायोटिक और एन्टीबैक्टीरियल टीके लगाए जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पहला टीका तीन माह की आयु में और उसके बाद हर साल टीका लगवाना चाहिए. पशुओं में गलघोंटू बीमारी बैक्टीरिया से फैलता है. जैसा नाम से प्रतित होता है, गलाघोंटू में पशुओं के शरीर का तापमान 106-107 डिग्री हो जाता है. गले वाले रीजन में दवाव पड़ता है जिससे गला घोंटने के कारण पशु मर जाते हैं. इसके बचाव के लिए साल में टीकाकरण करवाना चाहिए.

लंगड़ी में टीकाकरण ही इलाज 

पशुओं की बीमारी में 'लंगड़ी' की गंभीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बैक्टीरिया  से फैलने वाले इस रोग में पशु के किसी एक अंग में सूजन आती है, लेकिन वो तेज़ी से फैलती है, और पशुओं की जान तक ले लेती है. ये रोग गाय और भैंसों दोनों में देखा जाता है, लेकिन गो पशुओं में इसका प्रकोप अधिक होता है. पशु के पिछली और अगली टांगों के ऊपरी भाग में सूजन आ जाती है जिससे पशु लंगड़ा कर चलने लगता है, सूजन वाले स्थान को दबाने पर कड़-कड़ की आवाज़ आती है. इसलिए पशु का उपचार शीघ्र करवाना चाहिए,  क्योंकि इस बीमारी के जीवाणुओं के कारण शरीर में ज़हर फ़ैल जाने से पशु जल्दी ही मर जाता है. इस बीमारी के रोग निरोधक टीके बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें लगाकर पशुपालक अपने पशुओं को बचा सकता है. वर्षा ऋतु से पहले ये टीका लगाया जाता है. पहला टीका पशु को 6 माह की आयु पर लगवाना चाहिए, उसके बाद हर साल टीका लगाया जाता है.

4 महीने में 1 बार डीवर्मिंग जरूरी 

इनके अलावा कुछ बीमारियां कीड़ों से होती हैं, चाहे वो अंत: परजीवी हों, यानी पेट के कीड़े, सूत्रकृमि वगैरह. या बाह्य परजीवी जैसे जू, किलनी, चीचड़ी. इन सबसे पशु बेहद परेशान रहते हैं. इसलिए वैसे कृमि जिनके अंडे पेट में पलते हैं और आंतों से पशुओं का खून चूस कर उन्हें कमज़ोर कर देते हैं. उनसे बचाव के लिए 4 महीने में एक बार कीड़े की दवा जरूर खिलाएं. इस प्रक्रिया को डीवर्मिंग कहा जाता है.  

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ये आसान उपाय बीमारियों से बचाएगा

बीमारियों से बचाव के क्रम में वैक्सीनेशन के अलावा कुछ ऐसे भी उपाय हैं, जिन्हें आजमा कर आप कई बीमारियों से पशुओं का बचाव कर सकते हैं. जैसे थनैला बीमारी जो सिर्फ दुधारू पशुओं को ही होती है. इससे बचने के लिए साफ सफाई तो जरूरी है ही. इसके अलावा अगर दूध निकालने के बाद उन्हें 1 घंटा तक बैठने ना दिया जाए तो आप इस बीमारी से दुधारू पशुओं का बहुत हद तक बचाव कर लेंगे. इस तरह कई बीमारियों के अलग-अलग टीके समय पर लगवा कर, आप अपने पशुओं को जहां कई गंभीर बीमारियों से बचा सकते हैं, वहीं ख़ुद को होने वाले आर्थिक नुक़सान से बचा सकते हैं.

 

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