दलहनी फसलों में कम पानी में बेहतर उत्पादन देने वाली नकदी फसलों की सूची में ग्वार का नाम आता हैं. इसे कम लागत वाली फसल भी मानी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी खेती के लिये अलग से खाद-पानी की जरूरत नहीं होती गै. ये कम पानी और असिंचित इलाकों में भी उतनी ही अच्छी उपज देती है. इसकी जड़ें काफी जल्द पानी सोख लेती हैं, जिसके चलते इसके सूखा रोधी दलहनी फसल भी कहते हैं. भारत में इसकी खेती पशु चारे के उद्देश्य से भी की जाती है. वहीं, किसान इसकी खेती कर बेहतर मुनाफा भी कमा सकते हैं. अगर आप भी ग्वार की खेती करना चाहते हैं और उसकी उन्नत वैरायटी कोहिनूर 51 का बीज मंगवाना चाहते हैं तो आप नीचे दी गई जानकारी की सहायता से बीज ऑनलाइन अपने घर पर मंगवा सकते हैं.
ग्वार की कोहिनूर 51 किस्म का फल हरे रंग का होता है. इसके फल अन्य किस्मों से लंबे होते हैं. इस ग्वार की बीज को लगाने के 50-60 दिनों के अंदर पहली तुड़ाई शुरु हो जाती है. वहीं ये किस्म 90 से 100 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती है. इस किस्म की खेती किसान तीनों सीजन यानी रबी, खरीफ और जायद में कर सकते हैं. ये किस्म स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है.
राष्ट्रीय बीज निगम (National Seeds Corporation) किसानों की सुविधा के लिए ऑनलाइन ग्वार की उन्नत किस्म कोहिनूर 51 का बीज बेच रहा है. इस बीज को आप ओएनडीसी के ऑनलाइन स्टोर से खरीद सकते हैं. यहां किसानों को कई अन्य प्रकार की फसलों के बीज भी आसानी से मिल जाएंगे. किसान इसे ऑनलाइन ऑर्डर करके अपने घर पर डिलीवरी करवा सकते हैं.
अगर आप भी ग्वार की कोहिनूर 51 किस्म की खेती करना चाहते हैं तो इस किस्म के बीज का 500 ग्राम का पैकेट फिलहाल 42 फीसदी की छूट के साथ 550 रुपये में राष्ट्रीय बीज निगम की वेबसाइट पर मिल जाएगा. इसे खरीद कर आप आसानी से ग्वार की खेती कर सकते हैं.
ग्वार की खेती किसी भी मौसम में का जा सकती है. ऐसे में एक हेक्टेयर खेत में ग्वार की बुवाई के लिए कम से कम 15-20 किलोग्राम बीज लेकर बीजोपचार का काम कर लें. फिर खेत की तैयारी करने के बाद ग्वार की बुवाई कतारों में करें. हर लाइन के बीच 30 सेमी. की दूरी और हर पौधे के बीच 10 सेंमी. का फासला रखें. बुवाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाई का कर दें, जिससे फसल को अंकुरण में मदद मिल सके. यह एक कम अवधि की फसल होती है. यह बुवाई के 70-80 दिनों के अंदर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इस प्रोटीन से भरपूर होता है. देश में इसे पशुओं को चारे के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. इससे पशुओं को बहुत सारे पोषक तत्व मिलते हैं.