अमेरिकी फिल्म ‘द गुड अर्थ’: चीन के किसानों और महिलाओं के संघर्षपूर्ण इतिहास को दर्ज करती भावपूर्ण कहानी

अमेरिकी फिल्म ‘द गुड अर्थ’: चीन के किसानों और महिलाओं के संघर्षपूर्ण इतिहास को दर्ज करती भावपूर्ण कहानी

उपन्यास पर आधारित थी 1937 में बनी फिल्म ‘द गुड अर्थ’. फिल्म की कहानी है वांग लुन नाम के गरीब किसान की, जो एक अमीर किसान के खेतों में काम करता है. उसका विवाह होता है, उसी किसान के घर में काम करने वाली युवा लड़की ओ लान से.

चीन के किसानों और महिलाओं के संघर्षपूर्ण इतिहास को दर्ज करती भावपूर्ण कहानीचीन के किसानों और महिलाओं के संघर्षपूर्ण इतिहास को दर्ज करती भावपूर्ण कहानी
प्रगत‍ि सक्सेना
  • Noida,
  • Dec 24, 2023,
  • Updated Dec 24, 2023, 10:00 AM IST

चीन में हुई किसान-मजदूरों की वामपंथी क्रांति से तो ज़्यादातर लोग वाकिफ़ होते हैं, लेकिन सदियों से महिलाओं और वंचितों पर होने वाले अत्याचारों और शोषण की कहानियां, अमूमन देश-दुनिया के आम लोगों तक नहीं पहुंच पाई. इसके राजनीतिक कारण रहे हैं. यही वजह है कि चीन के दो लेखकों को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलने के बावजूद हम चीनी साहित्य-समाज के बारे में कम ही जानते हैं. यह विडम्बनापूर्ण है कि दुनिया भर में चीनी समाज और संस्कृति के बारे में जानकारी देने के लिए सबसे लोकप्रिय लेखिका रही हैं अमेरिकी मूल की लेखिका पर्ल एस बॅक. पर्ल एस बॅक के बाद संभवतः वैसी लोकप्रियता मो यान को ही मिल पायी जिन्हें 2012 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था.

1937 में बनी फिल्म ‘द गुड अर्थ’

बहरहाल, पर्ल एस बॅक का शुरुआती जीवन चीन में ही बीता. वयस्क पर्ल भी चीन के अन्हुई प्रांत में कई वर्षों तक रहीं और उनके लेखन में यहीं के चीनी समुदाय का बहुत जीवंत वर्णन है. उन्होंने झेनजियांग प्रांत और उसके करीबी इलाकों के समाज, संस्कृति और इतिहास को भी सूक्ष्मता से देखा और अध्ययन किया. उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास ‘द गुड अर्थ’, चीन के समाज की गहरी समझ और अभिव्यक्ति का सशक्त उदाहरण है.

इसी उपन्यास पर आधारित थी 1937 में बनी फिल्म ‘द गुड अर्थ’. फिल्म की कहानी है वांग लुन नाम के गरीब किसान की, जो एक अमीर किसान के खेतों में काम करता है. उसका विवाह होता है, उसी किसान के घर में काम करने वाली युवा लड़की ओ लान से. दोनों बहुत मेहनत से अपना घर बसाते हैं और कुछ ज़मीन भी खरीद लेते हैं. वांग लुन और ओ लान के तीन संताने होती हैं. लेकिन जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है तो अकाल पड़ जाता है. हाड़ तोड़ मेहनत के बावजूद दो जून रोटी की भी किल्लत हो जाती है तो वांग लुन ज़मीन बेच देने का निश्चय करता है. ओ लान अड़ जाती है कि कुछ भी हो, ज़मीन नहीं बेचेंगे. तब वे फैसला करते हैं कि जब तक सूखे और अकाल जैसे हालात हैं वे गांव छोड़ कर कहीं और गुज़ारा कर लेंगे.

किसान-श्रमिकों की क्रांति की कहानी

अन्हुई प्रांत छोड़ कर वे दक्षिण चीन की तरफ निकल जाते हैं. लेकिन वहां भी कोई खास काम ना मिलने के कारण इस परिवार को भीख मांग कर गुज़ारा करना पड़ता है. ओ लान सारे कष्टों का बहुत दृढ़ता से सामना करती है और वांग लुन की हिम्मत नहीं टूटने देती.

सूखे और अकाल की स्थिति अब खत्म हो गई है. ये जान कर वांग लुन परिवार फिर वापिस आता है और अपनी ज़मीन पर खेती शुरू करता है. इसी बीच किसान-श्रमिकों की क्रांति होती है और वे अपने सामने उस अमीर घर को नष्ट होता देखते हैं जहां वे पहले काम करते थे. वांग लुन और ओ लान अपनी मेहनत से एक बार फिर खुशहाल हो जाते हैं. लेकिन समृद्धि अपने साथ कुछ बदलाव भी लेकर आती है. वांग लुन को एक युवा स्त्री से प्रेम हो जाता है और वह ओ लान से दूसरा विवाह करने की इच्छा ज़ाहिर करता है.

किसान परिवार की संवेदनशील कहानी

ओ लान जीवन के संघर्षों से थक चुकी है, लेकिन वांग लुन की बात उसका दिल तोड़ देती है. फिर भी वह ओ लान के दूसरे विवाह के लिए राज़ी हो जाती है. इसी बीच उनके इलाके में टिड्डियों का हमला हो जाता है जिससे उनकी सारी फसल नष्ट होने के कगार पर आ जाती है और एक बार फिर वांग लुन परिवार जुट जाता है अपनी फसलों को बचाने में. थकी-हारी ओ लान आखिरकार दम तोड़ देती है. उसके जाने के बाद वांग लुन को एहसास होता है कि ओ लान उसके लिए उतनी ही ज़रूरी थी जितना कि एक किसान के लिए उसकी ज़मीन.

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एक किसान परिवार की संवेदनशील कहानी के जरिये लेखक पर्ल एस बॅक ने चीन के समाज, संस्कृति, परिवार, महिलाओं की स्थिति को सशक्त रूप से हाइलाइट किया. और निर्देशक सिडनी फ़्रेंकलिन ने इसे बखूबी पर्दे पर उतारा, लेकिन विडम्बना ये कि चीन के समाज पर बनी इस फिल्म की लगभग सभी मुख्य भूमिकाएं निभाईं अमेरिकी कलाकारों ने. वांग लुन की भूमिका में थे पॉल मुनी और ओ लान का किरदार निभाया लूइज़ राइनर ने. कुछ एशिया मूल के कलाकारों ने अन्य भूमिकाएं निभाईं जो बहुत छोटी छोटी थीं. इससे हॉलीवुड में निहित रंगभेद और नस्लभेद को लेकर विवाद भी खड़ा हुआ. 

अभिनेत्री को मिला ऑस्कर पुरस्कार 

बहरहाल, इस बात ने इंकार नहीं किया जा सकता कि पॉल मुनी और जर्मन मूल की लूइज़ राइनर ने अपने किरदारों पर बहुत मेहनत की और गजब का अभिनय किया. लूइज़ राइनर को 1935 में ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर पुरस्कार मिला था. 1938 में भी उन्हे ‘द गुड अर्थ’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला.

उनके शुरुआती जर्मन लहजे को छोड़ दिया जाए तो ‘द गुड अर्थ’ में मितभाषी, दबी हुई, संवेदनशील लेकिन मेहनतकश महिला के तौर पर उन्होने उन्नीसवीं सदी की चीनी महिलाओं की स्थिति का दमदार चित्रांकन किया. लुइज़ राइनर ने बाद में एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि वे इस भूमिका के लिए राज़ी नहीं थीं, लेकिन चूंकि स्टुडियो के साथ उनका कांट्रैक्ट था इसलिए वे इस रोल से इंकार भी नहीं कर सकती थीं.

फिल्म को बनाने में लगे चार साल 

उन्हें दक्षिण एशियाई दिखाने के लिए, सोचा गया कि उन्हे एक मास्क लगाया जाए. इससे उन्होंने साफ इंकार कर दिया. लंबे बहस-मुबाहिसे के बाद यह निश्चित हुआ कि मास्क नहीं बल्कि मेकअप के जरिए ही ऐसा किया जाएगा. एक चीनी स्त्री के तौर तरीके सीखना भी लुइज़ के लिए चुनौती थी. लुइज़ ने एक दिलचस्प वाकया बताया था. जब कास्टिंग के लिए स्टुडियो में अभिनेताओं की लाइन लगी हुई थी, तो लुइज़ इस भीड़ में एक युवती से टकरा गईं और उनका पर्स नीचे गिर गया. वह चीनी लड़की जिस तरह से शर्मिंदा होते हुए पर्स उठाने के लिए नीचे झुकी, लुइज़ ने इसी से अंदाज़ा लगाया कि चीन की महिलाएं किस तरह बर्ताव करती होंगी. “वही मेरे किरदार ओ लान की प्रेरणा स्रोत थी,” लुइज़ ने कहा.

इस फिल्म को बनाने में चार साल लगे. रिलीज़ होते ही यह चर्चा का विषय बन गई. एक तो, फिल्म का बजट उस वक्त के हिसाब से बहुत ज़्यादा था, लगभग तीस लाख डॉलर. दूसरे, यह चीन पर बनी पहली गंभीर अमेरिकी फिल्म थी जिसने अमेरिकी और यूरोपीय दर्शकों के बीच चीनी समाज की मानवीय छवि बनाने का अर्थपूर्ण काम किया.

बेहतरीन फिल्म के रूप में ‘द गुड अर्थ’

यह बात गौर करने लायक है कि तमाम सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक भिन्नताएं होने के बावजूद एक किसान और कामगर स्त्री की स्थिति हर समाज में कमोबेश एक सी ही रही है. तीस के दशक में चीन ने बहुत से राजनीतिक-सामाजिक उतार-चढ़ाव झेले. पितृसत्तात्मक समाज में इन बदलावों की पीड़ा सबसे ज़्यादा झेली महिलाओं ने, जो ओ लान का चरित्र बहुत जीवंतता से दर्शाता है.

आज ‘द गुड अर्थ’ को बीसवीं सदी के शुरुआत में चीन के किसान और महिलाओं की दशा का सजीव चित्रण करने वाली बेहतरीन फिल्म के रूप में जाना जाता है.

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