Success story: महिला किसान का स्मार्ट जुगाड़, जमीन के अंदर बनाई 'मशरूम लैब', कम लागत में बंपर पैदावार

Success story: महिला किसान का स्मार्ट जुगाड़, जमीन के अंदर बनाई 'मशरूम लैब', कम लागत में बंपर पैदावार

कर्नाटक की प्रगतिशील महिला किसान श्रीमती पद्मिनी गौड़ा ने खेती की दुनिया में अपनी अनोखी सोच से क्रांति ला दी है. उन्होंने जमीन के 13.5 फीट नीचे एक विशेष 'सनकन चैंबर' तैयार किया है, जो बिना किसी महंगी मशीन के मशरूम के लिए जरूरी नमी और तापमान को प्राकृतिक रूप से बनाए रखता है .

Mushroom Farming UndergroundMushroom Farming Underground
जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Dec 31, 2025,
  • Updated Dec 31, 2025, 7:38 PM IST

यह कहानी है कर्नाटक की एक साहसी और प्रगतिशील महिला किसान, पद्मिनी गौड़ा की, जिन्होंने अपनी मेहनत और नई सोच से मशरूम की खेती की दुनिया में एक मिसाल कायम की है. 52 साल की पद्मिनी जी ने पारंपरिक खेती से हटकर कुछ नया करने की ठानी और आज वे 'मिल्की मशरूम' के उत्पादन में एक सफल उद्यमी के रूप में जानी जाती हैं. उन्होंने एक ऐसा सस्ता और अनोखा 'पॉली टनल' सिस्टम तैयार किया है, जो कम लागत में किसानों को बंपर मुनाफा दे रहा है. पद्मिनी गौड़ा कर्नाटक के डोड्डाबल्लापुर तहसील के एक छोटे से गांव केंजीगानाहल्ली की रहने वाली हैं. महज 10वीं तक पढ़ी होने के बावजूद, उनके पास खेती का 6 साल का खेती का अनुभव है.

उन्होंने देखा कि मशरूम उगाने के लिए महंगे कंक्रीट के कमरों और तापमान कंट्रोल करने वाली भारी मशीनों की जरूरत होती है, जो छोटे किसानों के बस की बात नहीं है. इस समस्या को हल करने के लिए उन्होंने 'सनकन चैंबर यानी जमीन के अंदर बना कक्ष तकनीक विकसित की यह तकनीक न केवल सस्ती है, बल्कि मशरूम के लिए जरूरी नमी और तापमान को प्राकृतिक तरीके से बनाए रखती है.

नया देसी मॉडल ,अब जमीन के नीचे उगेगा मशरूम

इस तकनीक की सबसे खास बात इसकी बनावट है. पद्मिनी गौड़ा ने जमीन को 13.5 फीट गहरा खोदकर 72 फीट लंबा और 16 फीट चौड़ा एक बड़ा हॉल तैयार किया. इसकी दीवारों को कंक्रीट से मजबूत किया गया, ताकि जमीन की नमी अंदर बनी रहे और बाहर का पानी अंदर न आए. इसके ऊपर लोहे के पाइप (GI pipes) का इस्तेमाल करके एक त्रिकोणीय छत बनाई गई, जिसे नीले रंग की पारदर्शी पॉलिथीन शीट से ढका गया है. यह खास डिजाइन दिन के समय पर्याप्त रोशनी अंदर आने देता है और बिजली के बिना ही नमी को लॉक कर देता है, जिससे मशरूम तेजी से बढ़ते हैं.

कम खर्च में होगी बंपर पैदावार

पारंपरिक मशरूम हाउस बनाने में लाखों का खर्च आता है, लेकिन पद्मिनी का यह 'पॉली टनल' सिस्टम बहुत ही कम खर्चे में तैयार हो जाता है. इस एक चैंबर में करीब 4,800 मशरूम बैग्स रखे जा सकते हैं. जहां सामान्य कमरों में बिजली का बिल बहुत ज्यादा आता है, वहीं इस मॉडल में ऊर्जा की खपत लगभग शून्य के बराबर है. आंकड़ों की बात करें तो इस छोटे से सेटअप से वे हर साल लगभग 12,000 किलो मिल्की मशरूम पैदा कर रही हैं. यह मॉडल दिखाता है कि अगर तकनीक सही हो, तो सीमित संसाधनों में भी बड़ा उत्पादन संभव है.

देसी मॉडल हुआ सुपरहिट, अब लाखों की कमाई

खेती में सफलता का असली पैमाना मुनाफा होता है. पद्मिनी जी के इस मॉडल का B:C रेश्यो यानी लागत और मुनाफे का अनुपात) 2.5 है. इसका सीधा मतलब है कि अगर कोई किसान इसमें 1 रुपया लगाता है, तो उसे ढाई रुपये वापस मिलते हैं. यह मुनाफा किसी भी आम फसल के मुकाबले कहीं ज्यादा है. छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जिनके पास जमीन कम है, यह मॉडल किसी वरदान से कम नहीं है, क्योंकि यह बहुत कम जगह घेरता है और घर के पिछवाड़े में भी शुरू किया जा सकता है.

मशरूम की खेती में लेडी लीड़र

पद्मिनी गौड़ा की यह कहानी केवल खेती की नहीं, बल्कि 'महिला सशक्तिकरण' की भी है. उन्होंने साबित कर दिया कि उम्र और डिग्री मायने नहीं रखती, अगर आपके पास सीखने की इच्छा और नवाचार करने का जज्बा हो. आज उनके इस मॉडल को बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है ताकि गाँव के युवा और महिलाएं खुद का व्यवसाय शुरू कर सकें.

उनका यह सस्ता चैंबर न केवल मिल्की मशरूम के लिए बेहतरीन है, बल्कि एग्री-प्योरशिप (खेती से जुड़े व्यापार) को बढ़ावा देने के लिए एक सफल मॉडल है. पद्मिनी जी का यह सफल प्रयोग साबित करता है कि अगर सही तकनीक और जज्बा हो, तो छोटे किसान भी बहुत कम निवेश में लाखों का मुनाफा कमाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं.

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