
भारतीय कृषि में छोटे किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मजदूरों की कमी और बढ़ती लागत है. कर्नाटक के गदग जिले के नरसापुर गांव के रहने वाले किसान, सुरेश मल्लप्पा कोंडिकोप्पा ने इस समस्या को न केवल समझा, बल्कि इसका एक स्थायी समाधान भी निकाला. केवल 10वीं कक्षा तक शिक्षित होने के बावजूद, सुरेश के पास खेती का 28 वर्षों का गहरा अनुभव है. उन्होंने देखा कि पारंपरिक खेती में निराई और कीटनाशक छिड़काव में बहुत अधिक समय और पैसा खर्च होता है. छोटे खेतों में बड़े ट्रैक्टर चलाना मुश्किल होता है और मजदूर समय पर मिलते नहीं हैं. इसी चुनौती ने उन्हें कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक मल्टी-फंक्शनल एग्री-व्हीकल यानी बहुउद्देशीय कृषि मशीन का निर्माण किया जो आज आसपास के कई इलाको में चर्चा का विषय बनी हुई है.
'सुरेश द्वारा बनाई गई यह मशीन एक तीन पहियों वाला डीजल चालित वाहन है. इसे विशेष रूप से जुताई, निराई और छिड़काव जैसे कार्यों को आसानी से करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इस मशीन की सबसे बड़ी खासियत इसमें अलग-अलग अटैचमेंट लगाए जा सकते हैं, जिससे एक ही मशीन कई काम कर सकती है. छिड़काव के लिए इसमें 50 लीटर का टैंक लगा है और साथ में 5 मीटर लंबा स्प्रे बूम है, जो एक बार में बड़े क्षेत्र को कवर करता है. यह मशीन स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामानों से तैयार की गई है, जिसे हम 'जुगाड़' से ऊपर उठकर एक 'सटीक इंजीनियरिंग' कह सकते हैं. यह मशीन छोटे और संकरे रास्तों वाले खेतों में भी आसानी से घूम सकती है, जहां बड़े ट्रैक्टर नहीं जा सकते.
इस नवाचार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह खेती की लागत को भारी मात्रा में कम कर देता है. सुरेश की यह मशीन 70 फीसदी से 85 फीसदी तक लेबर बचाती है. जहां पहले निराई और छिड़काव के लिए कई मजदूरों को कई दिनों तक काम करना पड़ता था, वहीं यह मशीन कुछ ही घंटों में वह काम पूरा कर देती है.आर्थिक नजरिए से देखें तो यह मशीन बहुत किफायती है. मशीन की लागत इतनी कम और कार्यक्षमता इतनी अधिक है कि किसान डेढ़ साल के भीतर अपनी निवेश की गई पूरी राशि वापस पा सकता है. यह मशीन उन छोटे किसानों के लिए एक वरदान है जो महंगे उपकरण नहीं खरीद सकते और न ही महंगी मजदूरी का बोझ उठा सकते हैं.
हालांकि यह मशीन पहले से ही बहुत सफल है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें और भी सुधार किए जा सकते हैं. वर्तमान में मशीन को बनाने में लोहे और स्टील का अधिक प्रयोग हुआ है, जिससे इसका वजन थोड़ा ज्यादा हो सकता है. वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार, अगर भविष्य में स्टील की जगह रीइन्फोर्स्ड फाइबर या हल्के मजबूत मटीरियल का उपयोग किया जाए तो इसकी दक्षता और बढ़ जाएगी और ईंधन की खपत और कम होगी. यह डिजाइन पेटेंट कराने योग्य है और कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इसे सरकारी सब्सिडी के दायरे में लाया जा सकता है, ताकि इसे बड़े पैमाने पर अन्य किसानों तक पहुँचाया जा सके.
सुरेश मल्लप्पा ने साबित कर दिया है कि इनोवेशन के लिए बड़ी डिग्रियों की नहीं, बल्कि दृष्टि और अनुभव की जरूरत होती है. आज उनकी यह मशीन न केवल कर्नाटक बल्कि अन्य राज्यों में भी अपनाई जा रही है. यह 'फार्म मशीनरी-आधारित इनोवेशन का एक बेहतर उदाहरण है. जिस तरह से सुरेश ने स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके एक जटिल समस्या का समाधान निकाला, वह देश के लाखों किसानों के लिए प्रेरणा है. अगर सरकार और निजी क्षेत्र इस तरह के आविष्कारों को थोड़ा और समर्थन दें, तो भारत के छोटे किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और खेती को मुनाफे का सौदा बनाने का सपना जल्द ही साकार हो सकता है.
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