
हाल के महीने में जब पूरे देश में प्याज की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हेडलाइन बन रही थी, तब महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में दो किसान प्याज की नई वैरायटी बनाने में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे थे. ये दो किसान हैं बाबासाहेब एन. पिसोरे और संदीप वी घोले. इनकी बनाई दो वैरायटी सोना 40 और संदीप प्याज न सिर्फ ज्यादा पैदावार वाली और बीमारी से बचाने वाली हैं, बल्कि इनमें अधिक शेल्फ लाइफ और स्टोरेज के लिए क्वालिटी भी है.
इन वैरायटी को उनकी खासियतों के लिए नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) ने शॉर्टलिस्ट किया है, पहचाना है और इनक्यूबेट किया है, जो डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी का एक ऑटोनॉमस इंस्टिट्यूट है.
इन वैरायटी को एक बड़े एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट (डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ, महाराष्ट्र) में मान्यता मिली है और ये दूसरी चेक की गई वैरायटी (एग्रीफाउंड लाइट रेड और फुले समर्थ) से पैदावार और उनकी रखने की क्वालिटी या स्टोरेज लाइफ के मामले में काफी बेहतर पाई गईं. इन्हें 13 राज्यों के 40 से अधिक गांवों में भेजा गया है और किसानों से पॉजिटिव फीडबैक मिला है.
संदीप प्याज अपनी पैदावार (38 टन/हेक्टेयर) और उत्पादन बढ़ाने में मदद करने वाली दूसरी खासियतों जैसे औसत बल्ब का वजन (100-150g), हर बल्ब में रिंग्स की संख्या (8-10), रिंग का साइज, कम से कम फटने वगैरह के लिए दूसरी किस्मों से बेहतर पाया गया. रखने की क्वालिटी (40-45 दिन), बल्ब का मजबूत होना, और बाहरी छिलके का बने रहना भी दूसरी किस्मों से ज्यादा पाया गया.
इसी तरह, सोना-40 प्याज भी औसत बल्ब के वजन (80-90g), हर बल्ब में रिंग्स की संख्या (7-9), रिंग का साइज, रखने की क्वालिटी, और पर्पल ब्लॉच बीमारी के कम असर के मामले में दूसरी जांची गई किस्मों (एग्रीफाउंड लाइट रेड और फुले समर्थ) से बेहतर पाया गया. इस किस्म ने दोनों जगहों पर जांची गई किस्मों के मुकाबले बल्ब की पैदावार (34 टन/हेक्टेयर) भी काफी ज्यादा दी.
सालों के फील्ड एक्सपीरियंस और टेक्निकल जानकारी वाले किसानों ने लोकल किस्मों की पारंपरिक ब्रीडिंग तरीकों (सिलेक्शन मेथड) से ये नई किस्में बनाई हैं. NIF ने जमीनी स्तर के किसानों के हुनर और नए तरीकों को पहचाना और जाना. साथ ही खेती में बदलाव लाने वाले इन नए तरीकों के जरिए समाधान देने में वैल्यू ऐड किया और असरदार तरीके से योगदान दिया.
किसान ज्यादातर ऐसी किस्में उगा रहे हैं जो एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं और जेनेटिकली ज्यादा अलग-अलग नहीं हैं. इसलिए, मजबूती और क्लाइमेट चेंज के हिसाब से ढलने के लिए लंबे समय तक चलने वाली नई किस्में बनाने पर जोर दिया जा रहा है. महाराष्ट्र के इन दोनों किसानों ने वैज्ञानिकों के नए तरीकों को पहचानना और उस पर काम किया. फिर प्याज की दो ऐसी किस्म बनाई जो क्लाइमेट के हिसाब से मजबूत, इलाके के हिसाब से अनुकूल, ज्यादा पैदावार वाली, ज्यादा स्टोरेज लाइफ या रखने की क्वालिटी वाली और अच्छी न्यूट्रिशनल वैल्यू वाली है.