Natural Farming: सिर्फ 2 साल में प्राकृतिक खेती के माहिर बने किसान, बन गए गांव के चैंपियन

Natural Farming: सिर्फ 2 साल में प्राकृतिक खेती के माहिर बने किसान, बन गए गांव के चैंपियन

किसान ने नेचुरल खेती अपनाकर कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया. देसी चावल, SRI तरीका और ऑर्गेनिक चीज़ों से मिट्टी उपजाऊ हुई और परिवार की सेहत बेहतर हुई. गांव का चैंपियन किसान बनकर, उसने दूसरों को केमिकल-फ़्री खेती का रास्ता दिखाया, जो हर किसान के लिए एक प्रेरणा है.

प्राकृतिक खेती का कमालप्राकृतिक खेती का कमाल
क‍िसान तक
  • Noida ,
  • Dec 01, 2025,
  • Updated Dec 01, 2025, 8:25 PM IST

यह एक ऐसे किसान की कहानी है जिसने धीरे-धीरे अपनी ज़मीन को पूरी तरह से नेचुरल खेती में बदल दिया. शुरुआत में, उसने सिर्फ़ 0.5 एकड़ ज़मीन पर नेचुरल खेती की. जब उसे फ़ायदे दिखने लगे, तो उसने दो साल के अंदर अपनी पूरी 2 एकड़ ज़मीन पर नेचुरल खेती शुरू कर दी. उनके पास एक जोड़ी गाय और एक भैंस है, जिनसे उन्हें आसानी से गोबर और गौ मूत्र मिल जाता है. ये चीज़ें नेचुरल खेती का मुख्य आधार बन गईं, जिससे उसकी खेती की लागत काफ़ी कम हो गई.

देसी किस्मों और SRI विधि से बीज उत्पादन

किसान ने अपने खेत में देसी धान की किस्मों को बढ़ावा दिया. उन्होंने 0.4 एकड़ क्षेत्र में SRI पद्धति से धान की खेती की. यह तरीका कम पानी में अधिक उत्पादन देने के लिए जाना जाता है. इसके परिणामस्वरूप उनके पौधे अधिक स्वस्थ और मजबूत बने. SRI पद्धति के साथ साथ उन्होंने प्राकृतिक खेती में उपयोग होने वाले सभी जैविक घोल, अर्क और मिश्रणों को अपनाया, जिससे उनकी मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता दोनों में सुधार आया.

प्राकृतिक खेती के जैविक घोल और तकनीकों का उपयोग

किसान ने खेती में कई प्रकार के प्राकृतिक घोलों और तकनीकों का उपयोग किया, जिनमें बीजामृत, घनजीवामृत, द्रवजीवामृत और पीएमडीएस (आच्छादन तकनीक) शामिल रहे. इनसे मिट्टी में लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ी और नमी लंबे समय तक बनी रही. पौधों की वृद्धि के लिए उन्होंने अंडा घोल, अमीनो एसिड घोल, सप्तधान्य अंकुर कषाय और वनस्पतिक अर्क का भी उपयोग किया. कीट प्रबंधन के लिए प्राकृतिक कषाय का उपयोग किया गया, जिससे उन्हें रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा.

समुदाय में मार्गदर्शक की भूमिका

इन किसान की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह रही कि वे अपने क्षेत्र में सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (CRP) के रूप में सक्रिय भूमिका निभाने लगे. CRP बनने के बाद उन्होंने अन्य किसानों को प्राकृतिक खेती की तकनीकों से परिचित कराया. वे नियमित रूप से खेतों का दौरा करते हैं, किसान क्षेत्र स्कूलों में प्रशिक्षण देते हैं तथा वीडियो के माध्यम से किसानों को नई जानकारी पहुँचाते हैं. महिलाओं की SHG बैठकों में भी किसानों के अनुभव साझा किए जाते हैं. यदि किसी किसान को कोई समस्या होती है, तो वह सीधे गांव स्तर के CRP से संपर्क कर सकता है. गंभीर समस्या होने पर मामला वरिष्ठ CRP के पास भेजा जाता है, जो लगभग पाँच गांवों की देखरेख करते हैं.

वैज्ञानिक तरीके से फसल कटाई और मूल्यांकन

APCNF टीम, कृषि विभाग और किसानों की उपस्थिति में फसल कटाई के वैज्ञानिक परीक्षण किए गए. इन परीक्षणों से यह साबित हुआ कि प्राकृतिक खेती में उत्पादन अच्छा मिलता है और लागत काफी कम हो जाती है. यह तरीका किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में बहुत मददगार साबित हुआ.

प्राकृतिक और पारंपरिक खेती में अंतर

तुलना में यह देखा गया कि प्राकृतिक खेती की लागत ₹42,550 आई, जबकि पारंपरिक खेती की लागत ₹55,650 हुई. उत्पादन भी प्राकृतिक खेती में अधिक रहा- 68.32 क्विंटल, जबकि पारंपरिक में यह केवल 52.27 क्विंटल था. प्राकृतिक खेती का लाभ-लागत अनुपात 1.94 रहा, जो पारंपरिक खेती के लाभ अनुपात 0.94 से कहीं बेहतर है. इससे यह स्पष्ट है कि प्राकृतिक खेती कम लागत में अधिक लाभ देती है.

प्राकृतिक खेती से मिली उपलब्धियां

प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद खेत में केंचुओं की संख्या बढ़ी, जिससे मिट्टी अधिक उपजाऊ बनी. मिट्टी की संरचना स्पंजी हुई और पानी धारण करने की क्षमता में वृद्धि हुई. आसपास के किसान भी रासायनिक उपयोग को कम करने के लिए प्रेरित हुए. किसान के परिवार के स्वास्थ्य में सुधार हुआ क्योंकि रसायनों का प्रयोग समाप्त हो गया. उनके प्रयासों और परिणामों ने उन्हें गांव का चैंपियन किसान बना दिया.

यह कहानी दिखाती है कि नेचुरल खेती न सिर्फ़ पर्यावरण के लिए अच्छी है, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फ़ायदेमंद है. कम लागत, बेहतर पैदावार और अच्छी मिट्टी ने मिलकर इस किसान की खेती को सफल बनाया. यह उदाहरण भारत के हर किसान के लिए एक प्रेरणा है: सही तकनीक अपनाने से खेती में बड़े बदलाव आ सकते हैं.

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