भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा खेती पर निर्भर करता है. किसान अच्छी फसल की उम्मीद में सालभर मेहनत करता है लेकिन कई बार सारी मेहनत के बावजूद उसे मनचाहा उत्पादन नहीं मिल पाता. इसका एक बड़ा कारण है मिट्टी की स्थिति और उसमें मौजूद पोषक तत्वों की सही जानकारी न होना. यही वजह है कि मिट्टी की टेस्टिंग या सॉइल टेस्टिंग या सॉइल टेस्टिंग आज के दौर में किसानों के लिए बेहद जरूरी हो गई है.
मिट्टी की टेस्टिंग केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं बल्कि किसानों के लिए खेती का मार्गदर्शन है. यह उन्हें बताती है कि उनकी जमीन की स्थिति क्या है और उसमें क्या सुधार की जरूरत है. अगर हर किसान नियमित रूप से मिट्टी की जांच करवाए और उसी आधार पर खेती करे, तो उत्पादन बढ़ेगा, लागत घटेगी और मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहेगी.
मिट्टी ही फसल का आधार है. उसमें कितनी उर्वरता है, कौन-कौन से पोषक तत्व हैं और कौन-से तत्वों की कमी है, यह जानना जरूरी है. मिट्टी की टेस्टिंग करवाकर किसान को यह सटीक जानकारी मिल जाती है. जैसे, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक, सल्फर और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा. अगर मिट्टी में इनकी कमी हो तो समय रहते किसान उर्वरक डालकर उसे संतुलित कर सकता है.
आज खेती में सबसे बड़ी समस्या है असंतुलित खाद और उर्वरक का इस्तेमाल. कई बार किसान जरूरत से ज्यादा यूरिया या अन्य रासायनिक खाद का प्रयोग कर लेते हैं. इससे न केवल लागत बढ़ती है बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी धीरे-धीरे खराब होती जाती है. मिट्टी की जांच से किसान को यह पता चल जाता है कि किस फसल के लिए कौन-सा और कितना खाद डालना है. इस तरह उर्वरक की बर्बादी भी नहीं होती और मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है.
सही जानकारी के आधार पर की गई खेती से किसान अपनी लागत को कम कर सकता है. मिट्टी की टेस्टिंग से जब पता चलता है कि जमीन में पहले से ही कुछ पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं, तो अतिरिक्त खाद पर खर्च करने की जरूरत नहीं रहती. इससे इनपुट कॉस्ट घटती है और उत्पादन बढ़ने पर मुनाफा भी ज्यादा होता है.
किसान का भविष्य तभी सुरक्षित है जब उसकी जमीन स्वस्थ और उपजाऊ रहे. बार-बार एक ही तरह के उर्वरक डालने से मिट्टी कठोर हो जाती है और उसकी प्राकृतिक क्षमता कम हो जाती है. नियमित मिट्टी की जांच से किसान यह तय कर सकता है कि उसे फसल चक्र अपनाना चाहिए या जैविक खाद का उपयोग बढ़ाना चाहिए. इससे मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है.
सरकार ने किसानों की मदद के लिए सॉइल हेल्थ कार्ड योजना शुरू की है. इसके तहत किसानों को उनकी जमीन की मिट्टी की जांच कर मुफ्त रिपोर्ट दी जाती है. इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया जाता है कि उनकी जमीन किस प्रकार की है और उसमें किस फसल के लिए कौन-सा खाद और कितनी मात्रा में डालना सही रहेगा. इसका फायदा यह है कि किसान वैज्ञानिक तरीके से खेती कर सकते हैं. जब फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी गुणवत्ता की होती है, तो उसका बाजार मूल्य भी ज्यादा मिलता है. जैसे, दालों में प्रोटीन की मात्रा या गेहूं-चावल की गुणवत्ता बेहतर होगी तो किसान को दाम भी अच्छे मिलेंगे.
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