Sulphur Coated Urea: सल्फर कोटेड यूर‍िया से क‍िसानों को क्या होगा फायदा? 

Sulphur Coated Urea: सल्फर कोटेड यूर‍िया से क‍िसानों को क्या होगा फायदा? 

इस समय जमीन में सल्फर की 42 फीसदी की कमी है. कृष‍ि वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि सल्फर कोटेड यूर‍िया से ग्राउंड वाटर पाल्यूशन कम होगा और त‍िलहन फसलों में तेल की मात्रा बढ़ जाएगी. आने वाले द‍िनों में ज‍िंक और बोरॉन कोटेड यूर‍िया भी आएगी. इसका ट्रॉयल पूरा हो चुका है. 

क्यों की गई सल्फर कोटेड यूर‍िया की शुरुआत (Photo-Kisan Tak).  क्यों की गई सल्फर कोटेड यूर‍िया की शुरुआत (Photo-Kisan Tak).
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jul 27, 2023,
  • Updated Jul 27, 2023, 12:49 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पत‍िवार को राजस्थान के सीकर में आयोज‍ित एक कार्यक्रम के जर‍िए सल्फर कोटेड यूर‍िया की शुरुआत कर दी है. यह यूर‍िया जमीन में पोषक तत्वों की क्षमता को बढ़ाएगी. इसल‍िए इसे यूर‍िया गोल्ड का नाम द‍िया गया है. सल्फर कोटेड यूर‍िया के साथ ही सरकार ने यह संदेश दे द‍िया है क‍ि वो अब जमीन की सेहत को लेकर काफी सतर्क है. सवाल यह है क‍ि सल्फर कोटेड यूर‍िया की जरूरत क्यों पड़ी और इसका क‍िसानों को कैसे फायदा पहुंचेगा? इस यूर‍िया को लेकर काम करने वाले पूसा के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि सल्फर की कोट‍िंग से ग्राउंड वाटर पाल्यूशन कम होगा और त‍िलहन फसलों में तेल की मात्रा बढ़ जाएगी.

इस वक्त भारत की 42 फीसदी जमीन में सल्फर की कमी है. इसल‍िए इसकी जरूरत पड़ी. पूसा के प्र‍िंस‍िपल साइंट‍िस्ट डॉ. वाईएस श‍िवे का कहना है क‍ि अभी नाइट्रोजन की एफिशिएंसी 30 से 40 फीसदी के बीच है. बाकी यूर‍िया अमोन‍िया गैस बनकर उड़ जाती है और जमीन में जाकर नाइट्रेट हो जाती है. जबक‍ि सल्फर कोटेड से इसकी एफिशिएंसी बढ़कर 48 फीसदी तक हो जाएगी और सल्फर की कमी भी पूरी होगी. 

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वैज्ञान‍िकों ने फरवरी में ही द‍िया था प्रजेंटेशन

भारतीय कृष‍ि अनुसंधान संस्थान, पूसा के वैज्ञान‍िकों ने फरवरी में ही सरकार को इसके बारे में प्रजेंटेशन द‍िया था और जुलाई में इसकी शुरुआत कर दी गई. सरकार को बताया गया था क‍ि सल्फर कोट‍िंग खेती के ल‍िए क्यों जरूरी है. यहां एक तथ्य बताना जरूरी है. नीम कोटेड यूर‍िया पर पूसा का र‍िसर्च पेपर 1971 में ही आ चुका था. लेक‍िन, उसकी शुरुआत 2015 में की गई थी. लेक‍िन सल्फर कोट‍िंग को लेकर सरकार ने संजीदगी द‍िखाई और इसे बहुत जल्दी शुरू क‍िया, ताक‍ि धरती की सेहत को ठीक रखा जा सके. आने वाले द‍िनों में ज‍िंक और बोरोन कोटेड यूर‍िया भी लाई जाएगी, क्योंक‍ि इन दोनों तत्वों की भी जमीन में भारी कमी है.  

अब ज‍िंक और बोरॉन कोट‍िंग की बारी

पूसा के वैज्ञान‍िकों ने न स‍िर्फ सल्फर कोट‍िंग बल्क‍ि यूर‍िया में ज‍िंक और बोरॉन कोट‍िंग का भी सफल ट्रॉयल क‍िया है. दरअसल,स‍िर्फ नाइट्रोजन और फास्फोरस का अंधाधुंध इस्तेमाल करने से स्वायल हेल्थ खराब हो गई है. जमीन में ज‍िंक की 39 फीसदी और बोरॉन की 23 फीसदी कमी बताई गई है. वैज्ञान‍िकों के अनुसार पोषक तत्वों की कमी की वजह से पौधों में कई तरह के रोग लग जाते हैं जिससे फसल खराब हो जाती है. ज्यादातर क‍िसान खेत में हर काम के ल‍िए यूर‍िया का इस्तेमाल करते हैं. इसल‍िए सरकार ने तय क‍िया क‍ि अब यूर‍िया के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन में हो रही पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के ल‍िए यूर‍िया का ही सहारा ल‍िया जाए. सल्फर, ज‍िंक और बोरॉन की कोट‍िंग इसी द‍िशा में हो रहा काम है. 

खेती में ज‍िंक की भारी कमी

पूसा के सीन‍ियर साइंट‍िस्ट डॉ. आरएस बाना का कहना है क‍ि यूर‍िया में 5 से 7 फीसदी सल्फर की कोट‍िंग होगी. अगर कोई क‍िसान सौ क‍िलो यूर‍िया डाल रहा है तो उसके खेत में पांच से सात क‍िलो सल्फर पहुंच जाएगा. व‍िशेषज्ञों का कहना है क‍ि इस समय देश में सालाना 12 से 13 लाख टन ज‍िंक की आवश्यकता है जबक‍ि 2 लाख टन का ही इस्तेमाल हो रहा है. इसकी जगह पर नाइट्रोजन का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है. 

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