गुड़ (पीडीएम) से निकलने वाले पोटेशियम अब 50 किलो के बैग में भी बिकेगा. अगर चीनी मिलें चाहें, तो टन के हिसाब से भी पोटेशियम बेच सकती हैं. दरअसल, केंद्र सरकार ने गुड़ से निकलने वाले पोटेशियम की खुदरा कीमत 4,263 रुपये प्रति टन करने का फैसला किया है. सरकार ने इसके अलावा 50 किलो के बैग में भी पोटेशियम बेचने की मंजूरी दे दी है, जिसकी कीमत 213.5 रुपये होगी. खास बात यह है कि ये दरें चीनी मिलों के लिए तय की गई है. यानी चीनी मिलें अब पोटाश उर्वरक बनाने और बाजार में बेचने के लिए फर्टिलाइजर कंपनियों को इसी दर से प्रमुख कच्चा माल बेचेंगे. यह दर चालू चीनी सीजन के लिए 30 सितंबर तक वैध रहेगी.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में म्यूरेट ऑफ पोटाश का 50 किलोग्राम का बैग किसानों को लगभग 1,655 रुपये में बेचा जाता है, जिसमें 60 प्रतिशत पोटाश होता है. इसमें सरकार की सब्सिडी 2.38 रुपये प्रति किलो है. हालांकि, सरकार द्वारा निर्धारित पीडीएम की कीमतों के बाद अब उर्वरक कंपनियां किसानों को 50 किलो का बैग 350 रुपये और 400 रुपये के बीच उपलब्ध कराने में सक्षम होंगी.
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केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने कहा कि पीडीएम की पारस्परिक रूप से सहमत दर खाद्य और उर्वरक मंत्रालयों द्वारा सुविधाजनक बनाई गई थी. उन्होंने कहा कि चालू रबी सीज़न (अक्टूबर 2023-मार्च 2024) में, पोटाश पर सब्सिडी 2.3 रुपये प्रति किलो तय की गई है, जिसे अगले खरीफ सीजन के लिए कम संशोधित किया जा सकता है, क्योंकि वैश्विक एमओपी में गिरावट आ सकती है.
केंद्रीय खाद्य सचिव ने कहा कि भारत (100 प्रतिशत) पोटाश के आयात पर निर्भर है. इससे देश में पोटाश की उपलब्धता बढ़ेगी और सभी हितधारकों को फायदा होगा. उन्होंने कहा कि अब चीनी मिलें और उर्वरक कंपनियां दोनों पीडीएम पर दीर्घकालिक मार्केटिंग समझौते में प्रवेश करने के तौर-तरीकों पर चर्चा कर रही हैं. जबकि कुछ उर्वरक निर्माताओं के पास अपनी चीनी इकाइयां हैं, जिन्हें इस निर्णय से लाभ होगा.
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पीडीएम चीनी आधारित इथेनॉल संयंत्रों का उप-उत्पाद है और डिस्टिलरी में राख से प्राप्त होता है. एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इथेनॉल भट्टियों से हर साल लगभग 5 लाख टन (लीटर में) पोटाश राख उत्पन्न होती है, जबकि क्षमता 10-12 लाख टन तक उत्पादन करने की है. पीडीएम का मैन्युफैक्चरिंग और बिक्री चीनी मिलों के लिए अपने नकदी प्रवाह को बढ़ाने और किसानों को तुरंत भुगतान करने के लिए एक और राजस्व स्रोत बनने जा रही है. इसमें कहा गया है कि उर्वरक क्षेत्र में आयात निर्भरता कम करने के लिए यह केंद्र सरकार की एक और पहल है.