धान-गेहूं और गन्ना-गेहूं की खेती में पराली या फसल अवशेषों को जलाना एक बहुत बड़ी समस्या है. इससे न केवल कीमती पोषक तत्व नष्ट होते हैं और मिट्टी की सेहत बिगड़ती है, बल्कि पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचता है. अभी धान की फसल कटने के बाद, अगली बिजाई की जल्दी में किसानों को पराली जलाना ही सबसे तेज उपाय लगता है. मगर, इस आसान से दिखने वाले काम के पीछे छिपे बड़े नुकसानों पर उनका ध्यान नहीं जा पाता और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है.
किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए उन्हें व्यावहारिक और लाभकारी विकल्प देना बेहद जरूरी है. यह एक गंभीर समस्या है, जिसके निदान के लिए सरकार, वैज्ञानिक और किसान मिलकर निरंतर प्रयास कर रहे हैं. इन सामूहिक प्रयासों से पराली को जलाने के बजाय उसे एक मूल्यवान संसाधन में बदलने के कई प्रभावी तरीके सामने आए हैं. करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) ने एक नई मशीन विकसित की है, जिसका नाम है रोटरी डिस्क ड्रिल (RDD).
यह एक खास बेहद शक्तिशाली मशीन है जो ट्रैक्टर के PTO (पॉवर टेक-ऑफ) से चलती है और खेत में मौजूद फसल अवशेषों को जलाए बिना सीधे बुवाई कर सकती है. इसके आगे लगे तेज धार वाले रोटरी डिस्क ब्लेड घूमते हुए पराली को काटते हैं और जमीन में एक पतली सी क्यारी बनाते हैं. इसके ठीक पीछे लगे डबल डिस्क फरो ओपनर बीज और खाद को सीधे उसी क्यारी में डाल देते हैं. यह मशीन "ट्रिपल डिस्क मैकेनिज्म" पर काम करती है, जिससे जुताई और बुवाई एक साथ हो जाती है.
रोटरी डिस्क ड्रिल एक उन्नत कृषि मशीन है जो किसानों के लिए लागत कम करने और पर्यावरण की रक्षा करने में बेहद फायदेमंद साबित हो रही है. यह मशीन भारी अवशेषों, जैसे धान और गन्ने के बाद बचे अवशेष वाले खेतों में भी आसानी से सीधी बुवाई कर सकती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सुबह और शाम की नमी में भी प्रभावी ढंग से काम करती है, जहां अन्य मशीनें विफल हो जाती हैं.
इसे चलाने के लिए केवल 45 हॉर्सपावर (HP) के ट्रैक्टर की जरूरत होती है, जिससे यह छोटे किसानों के लिए भी सुलभ हो जाती है. इस मशीन से गेहूं, चावल, सोयाबीन, मटर, और चना जैसी कई फसलों की बुवाई संभव है. पारंपरिक तरीकों की तुलना में, RDD का उपयोग ₹4200 प्रति हेक्टेयर तक की बचत करता है और ईंधन की लागत में 60-65% की भारी कटौती लाता है. इसके अलावा, यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इसके इस्तेमाल से प्रति हेक्टेयर लगभग 120-130 किलोग्राम कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.
आईसीएआर का कहना है हरियाणा के करनाल और उत्तर प्रदेश के शामली जिले में किसानों के खेतों पर इस मशीन का सफल परीक्षण किया गया है. किसानों ने पाया कि इस मशीन से बुवाई करने पर पैदावार पारंपरिक तरीकों जितनी या उससे भी ज़्यादा हुई, जबकि लागत बहुत कम हो गई. यह तकनीक न केवल पराली जलाने की समस्या को खत्म करती है, बल्कि किसानों का समय, पैसा और मेहनत भी बचाती है. इससे किसान समय पर अगली फसल बो सकते हैं और गन्ने जैसी फसलों के साथ गेहूं या मूंग जैसी अतिरिक्त फसलें लेकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं.