Seed Festival: क्‍या आपने सुना है राजस्‍थान, गुजरात और एमपी के ‘बीज उत्सव’ के बारे में 

Seed Festival: क्‍या आपने सुना है राजस्‍थान, गुजरात और एमपी के ‘बीज उत्सव’ के बारे में 

Seed Festival: महोत्सव के दौरान प्रदर्शित किए गए अनाज, दालों, सब्जियों और फलों के देशी बीजों में कुछ दुर्लभ और भूली हुई किस्में भी शामिल थीं. पारंपरिक फलों के बीजों में जंगली आम, आकोल और टिमरू शामिल थे, जबकि पारंपरिक अनाजों में दूध मोगर (देशी मक्का) और काली कामोद और धीमरी जैसी धान की किस्में शामिल थीं.  

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क‍िसान तक
  • Jun 25, 2025,
  • Updated Jun 25, 2025, 2:36 PM IST

इस महीने की शुरुआत में राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के ट्राइ-जंक्‍शन पर एक ऐसा आयोजन हुआ, जो खेती को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया. ट्राइ-जंक्‍शन पर स्थित आदिवासी क्षेत्र में चार दिनों तक चलने वाले ‘बीज उत्सव’ (बीज महोत्सव) का आयोजन किया गया. इस उत्‍सव में कृषि स्थिरता में देशी बीजों के रोल को भी सबके सामने रखा गया. आदिवासी किसानों ने समुदाय-नेतृत्व वाली बीज प्रणालियों को फिर से जिंदा करने का संकल्प लिया है. 

9 हजार से ज्‍यादा लोग हुए शामिल 

इस महोत्सव के दौरान आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने वाले आदिवासी समुदायों के 9,400 से अधिक सदस्यों, जिनमें महिलाए और बच्चे भी शामिल थे, ने कई फसल मौसमों में उपयोग के लिए देशी बीजों को संरक्षित करने की तकनीक सीखी. उन्हें बीज विरासत, बायो-डायवर्सिटी और जलवायु चेतना के महत्व के बारे में बताया गया. यह उत्सव तीनों राज्यों में फैली 60 से ज्‍यादा ग्राम पंचायतों में एक साथ आयोजित किया गया था. इस दौरान ‘बीज संवाद’, जैव विविधता मेले, ‘बीज बॉल’ बनाना और वृक्षारोपण अभियान जैसी गतिविधियां शामिल थीं. बीज संरक्षण करने वाले किसानों को ‘बीज मित्र’ और ‘बीज माता’ जैसे सामुदायिक सम्मान से सम्मानित किया गया. 

कौन-कौन से बीज हुए पेश 

महोत्सव के दौरान प्रदर्शित किए गए अनाज, दालों, सब्जियों और फलों के देशी बीजों में कुछ दुर्लभ और भूली हुई किस्में भी शामिल थीं. पारंपरिक फलों के बीजों में जंगली आम, आकोल और टिमरू शामिल थे, जबकि पारंपरिक अनाजों में दूध मोगर (देशी मक्का) और काली कामोद और धीमरी जैसी धान की किस्में शामिल थीं. देशी सब्जियों में करिंगडा (जंगली तरबूज), छोटा करेला और नारी भाजी (पानी वाला पालक) ने प्रतिभागियों को आकर्षित किया, जिन्होंने कहा कि वे इनका उपयोग घरेलू खपत के लिए कर रहे हैं. 

आदिवासी परंपरा का हिस्‍सा 

कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन, ग्राम स्वराज समूह, सक्षम समूह और बाल स्वराज समूह सहित समुदाय के नेतृत्व वाले संस्थानों ने उत्सव के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.  उन्हें बांसवाड़ा स्थित स्वैच्छिक समूह वाग्धारा द्वारा समर्थन दिया गया, जो आदिवासी आजीविका के मुद्दों पर काम करता है. वाग्धारा सचिव जयेश जोशी ने अखबार द हिंदू से कहा कि बीजों को सिर्फ खेती की नींव नहीं माना जाना चाहिए. बल्कि आदिवासी परंपराओं में उन्हें पहचान, जीवन, पोषण, संस्कृति और जलवायु लचीलेपन का प्रतीक माना जाता है. उनका कहना था कि जब करीब 70 फीसदी छोटे किसान हाइब्रिड बीजों पर निर्भर हैं तो 'बीज उत्सव' एक ताकतवर आयोजन बन जाता है. 

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