भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के एक प्रमुख पैनल ने बीज उप-समिति के लिए गेहूं और जौ की कुल 28 नई किस्मों को मंजूरी दे दी है, जिन पर विचार किया जाएगा. यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब गेहूं की बुवाई का मौसम शुरू होने वाला है. आईसीएआर के सहायक महानिदेशक एस.के. प्रधान की अध्यक्षता में अगस्त में आयोजित किस्म पहचान समिति (VIC) ने गेहूं और जौ की 46 नई किस्मों के मांगों की समीक्षा की थी. बैठक में ये फैसला लिया गया कि, फसल मानकों, अधिसूचना और किस्मों के विमोचन संबंधी केंद्रीय उप-समिति (CSN&RV) द्वारा अनुमोदन के लिए 28 किस्मों की पहचान की गई. इस चयन में अनुरोधित 41 में से गेहूं की 23 नई किस्में और सरकारी संस्थानों एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा प्रस्तुत जौ की सभी पांच नई किस्में शामिल हैं.
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किसानों द्वारा व्यावसायिक रूप से जारी की गई कई किस्मों को न अपनाने पर नाराजगी व्यक्त करने के बाद, इस वर्ष अनुमोदन प्रक्रिया कथित तौर पर कड़ी जांच के दायरे में है. उन्होंने कथित तौर पर उन किस्मों को व्यावसायिक रूप से जारी करने के औचित्य पर सवाल उठाया. जिन्हें किसान अंततः उगाते ही नहीं हैं.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने जिन चार गेहूं किस्मों के लिए मंजूरी मांगी थी, उनमें से केवल दो को ही मंजूरी के लिए चुना गया जिनमें पीबीडब्ल्यू 906 और पीबीडब्ल्यू 915 हैं. पीबीडब्ल्यू 915 को उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र में अपनी उपज क्षमता और गेहूं के रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोध के लिए जाना गया है. जबकि पीबीडब्ल्यू 906 मध्य क्षेत्र के लिए बेहतर है, जो उच्च उपज और रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोध भी प्रदान करता है.
पंजाब की गेहूं की किस्मों को सिलेक्ट करने के बाद, वीआईसी ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित 11 गेहूं किस्मों में से सात की पहचान की तथा भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) की छह में से केवल दो की पहचान की, जबकि आईआईडब्ल्यूबीआर की जौ की सभी तीन किस्मों को मंजूरी दे दी गई. मई में केंद्र ने व्यावसायिक खेती के लिए गेहूं की 13 नई किस्मों (पूसा की तीन, आईआईडब्ल्यूबीआर की दो और पीएयू की एक) और जौ की तीन किस्मों को आधिकारिक तौर पर शामिल किया था.
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रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद कुमार ने कहा, पिछली बार कुछ किस्मों को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु के लिए सिलेक्ट किया गया था, जहां आमतौर पर गेहूं नहीं उगाया जाता. उन्होंने आगे कहा, "यह पता लगाने के लिए एक अध्ययन होना चाहिए कि क्या वे किस्में परीक्षणों के दौरान सफल रहीं, और किसान उन्हें अपनाने में क्यों हिचकिचा रहे थे. सरकार को गेहूं के रकबे के विस्तार पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है क्योंकि खपत उत्पादन से कहीं ज़्यादा तेजी से बढ़ रही है."
फसल वर्ष 2024-25 के लिए भारत का गेहूं उत्पादन रिकॉर्ड 117.51 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जिसमें 30 मिलियन टन की आधिकारिक खरीद शामिल है. इस साल सरकार द्वारा 119 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किए जाने के साथ, विशेषज्ञों का मानना है कि समय पर अनुमोदन और उच्च उपज वाले, जलवायु-प्रतिरोधी बीजों को अपनाना महत्वपूर्ण होगा. इस शीघ्र मंजूरी से बीज कंपनियां इसी वर्ष प्रजनक बीजों की खेती शुरू कर सकेंगी.