DDW 55D: मध्य और उत्तर भारत के लिए बढ़‍िया है कठि‍या गेहूं की 'करन मंजरी' किस्‍म, जानें पूरी डिटेल

DDW 55D: मध्य और उत्तर भारत के लिए बढ़‍िया है कठि‍या गेहूं की 'करन मंजरी' किस्‍म, जानें पूरी डिटेल

मध्य और उत्तर भारत के किसानों अक्‍टूबर से नवंबर के बीच उच्च उपज वाली गेहूं की किस्म डीडीडब्ल्यू 55 (डी) – करन मंजरी की बुवाई कर सकते हैं. सीमित सिंचाई और समय पर बुआई में इससे उच्च उत्पादन हासिल किया जा सकता है. यह रोग प्रतिरोधी, प्रोटीन समृद्ध है.

DDW 55 D karan manjari wheat varietyDDW 55 D karan manjari wheat variety
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Oct 09, 2025,
  • Updated Oct 09, 2025, 2:30 PM IST

देशभर में इस साल मॉनसून में सामान्‍य से ज्‍यादा बारिश के बाद मिट्टी में अच्‍छी नमी बनी हुई है. किसान रबी सीजन में गेहूं की बुवाई की तैयार‍ियों में जुटे हैं. ऐसे में वे 20 अक्‍टूबर से 5 नवंबर के बीच कठिया गेहूं की उन्‍नत किस्म डीडीडब्ल्यू 55 (डी) करन मंजरी की बुवाई कर सकते हैं. कृषि वैज्ञानिकों ने मध्य और उत्तर भारत के किसानों के लिए यह उच्च उपज और बेहतर रोग प्रतिरोध क्षमता वाली गेहूं की किस्म बनाई है. यह किस्म विशेष रूप से मध्य मैदानी क्षेत्र में समय पर बुआई और प्रतिबंधित सिंचाई की परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है, जिसमें मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान के कोटा और उदयपुर संभाग तथा उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग शामिल हैं.

प्रति हेक्‍टेयर बुवाई पर 1 क्विंटल बीज जरूरी

किसानों को अधिक उत्पादन के लिए इस किस्म के लिए एक विशेष कृषि तकनीक पैकेज सुझाया गया है. बुआई से पहले बीज का टेबुकोनाजोल 2% डीएस @ 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करना चाहिए. बुआई का समय 20 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच होना उपयुक्त माना गया है. बुवाई के लिए बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर निर्धारित की गई है.

उर्वरक में सीमित सिंचाई की स्थिति में 90:60:40 किलोग्राम एनपीके/हेक्टेयर देना चाहिए, जिसमें आधा नाइट्रोजन और पूरा फास्फोरस एवं पोटैशियम बुआई के समय डालें और शेष नाइट्रोजन प्रथम नोड (45–50 दिन बाद) अवस्था में देना चाहिए. सिंचाई के लिए बुआई से पहले और 45-50 दिन बाद दो बार पानी देने की सलाह दी गई है.

अन्‍य किस्‍मों के मुकाबले ज्‍यादा पैदावार

गेहूं की पैदावार के मामले में हुए प्रयोगों में डीडीडब्ल्यू 55 (डी) ने अन्य प्रमुख किस्मों जैसे एचडब्ल्यू 8623, डीडीडब्ल्यू 47 और एचडब्ल्यू 8823 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है. सामान्य परिस्थितियों में यह 35.6 क्विंटल/हेक्टेयर तक की उपज देती है, जबकि समय पर बुआई और सीमित सिंचाई के दौरान यह उपज 56.5 क्विंटल/हेक्टेयर तक पहुंच सकती है.

इन रोगों से लड़ने में है सक्षम

डीडीडब्ल्यू 55 (डी) की जीवित रोग प्रतिरोध क्षमता भी उल्लेखनीय है. यह तीलिया और कंडुआ रोगों के प्रति मजबूत प्रतिरोध दिखाती है. भारी पैदावार की स्थिति में पाई गई प्रतिक्रिया में रस्ट्स 7%, तीलिया 3.0 और कंडुआ 11.1 स्कोर दर्ज किया गया है. इसके साथ ही पीली रस्ट और स्ट्रीक रोगों के प्रति भी यह किस्म प्रतिरोधी है.

पोषण के मामले में भी यह गेहूं किस्म उच्च गुणवत्ता प्रदान करती है. डीडीडब्ल्यू 55 (डी) के दानों में प्रोटीन की मात्रा अधिक है और हजार दानों का औसत वजन 52 ग्राम है, जो इसकी गुणवत्ता और सूखा सहनशीलता का प्रमाण है.

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि डीडीडब्ल्यू 55 (डी) – करन मंजरी किस्म से मध्य और उत्तर भारत के किसानों की पैदावार और आय में वृद्धि संभव है. विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां सिंचाई की सुविधा सीमित है, यह किस्म किसानों के लिए नई उम्मीद जगाती है.

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