सरसों भारत की एक प्रमुख तिलहनी फसल है जो खासकर रबी के सीजन में बड़े पैमाने पर बोई जाती है. देश में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. देशी तिलहन सरसों की फसल खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. विशेषज्ञों की मानें तो अगर तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करनी है तो फिर सरसों का रकबा बढ़ाने की जरूरत है. इसके लिए ज्यादा उपज देने वाली बीज किस्मों के प्रयोग और उपज के साथ ही उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है. इस मकसद से किसानों को तय कीमत देने की भी जरूरत है.
ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत का ‘रेपसीड’ और सरसों का उत्पादन 2024-25 फसल वर्ष (जुलाई-जून) में 86.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल और 1,461 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर औसत उपज के साथ 126.06 लाख टन रहा. वित्त वर्ष 2023-24 से सरसों के क्षेत्रफल और इसके उत्पादन में गिरावट आ रही है. 2023-24 में रकबा 91.83 लाख हेक्टेयर था जबकि उत्पादन 132.59 लाख टन था. पुरी ऑयल मिल्स लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर विवेक पुरी के अनुसार सरसों तेल खाद्य तेल की मांग-आपूर्ति के अंतर को खत्म करने और आयात निर्भरता को कम करना काफी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सरसों की खेती के विस्तार के साथ-साथ प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि करके सरसों तेल का उत्पादन बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है.
जहां उद्योग के जानकार सरसों का उत्पादन बढ़ाने की अपील की रहे हैं तो वहीं बदलता मौसम और कीटों की वजह से किसानों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करने को मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसे में आखिर सरसों की उत्पादकता कैसे बढ़ाई जाए. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका जवाब सरसों के बीजों में ही छिपा हुआ है. सरसों की बेहतर पैदावार का पहला और सबसे अहम चरण है, सही बीज का चुनाव. खराब क्वालिटी वाले या परंपरागत बीजों से न सिर्फ उत्पादन घटता है, बल्कि फसल रोगों की चपेट में भी जल्दी आ जाती है. वहीं उच्च गुणवत्ता वाले और वैज्ञानिक रूप से विकसित बीज न सिर्फ उत्पादन बढ़ाते हैं, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी उपज देते हैं.
सरसों की कई उन्नत किस्में कृषि अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा विकसित की गई हैं. इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता, तेल की मात्रा, छोटी लाइफ साइकिल और सूखा झेलने की शक्ति जैसे कई गुण शामिल हैं. सरसों की कुछ उन्नत किस्में हैं. इन किस्मों के प्रयोग से किसान न सिर्फ उत्पादन बढ़ा सकते हैं, बल्कि बाजार में बेहतर कीमत भी हासिल कर सकते हैं. ये किस्में हैं-
पूसा बोल्ड- ये किस्म तेल की ज्यादा मात्रा और बड़ी फलियों के लिए मशहूर है.
रोहिणी- यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देती है.
NRCDR-2-सरसों की यह किस्म सफेद रतुआ और झुलसा रोग के प्रति सहनशील है.
Giriraj और Pusa Mustard 30- ये दोनों किस्में न सिर्फ ज्यादा उत्पादन वाली हैं बल्कि बाजार में भी इन्हें ज्यादा कीमतें मिलती हैं.
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