जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले 3-4 सालों से एक नई समस्या देखने को मिल रही है. फरवरी और मार्च के महीने में ही गर्मी बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है, जिसका गेहूं की फसल पर बहुत बुरा असर पड़ता है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जब जनवरी-फरवरी में तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री ज़्यादा हो जाता है, तो गेहूं के पौधे का फुटाव और कल्ले बनना कम हो जाता है. फुटाव कम होने से पौधे पर बालियां भी कम लगती हैं. अगर बालिया बन भी जाएं, तो मार्च की तेज गर्मी के कारण दाना ठीक से भर नहीं पाता और पतला या हल्का रह जाता है. इसी वजह से प्रति एकड़ गेहूं की पैदावार घट जाती है. भारत के मैदानी इलाकों में इस चुनौती से निपटने के लिए अब वैज्ञानिक ऐसी नई किस्में बना रहे हैं जो बढ़ती गर्मी को झेल सकें.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान IARI, पूसा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजवीर यादव ने बताया कि एच.डी. 3385 गेहूं की एक नई किस्म है जिसे खास तौर पर भारत के किसानों के लिए तैयार किया गया है. यह किस्म बदलते मौसम की चुनौतियों, जैसे कि ज़्यादा गर्मी और बीमारियों का सामना करने में बहुत कारगर है. इसे पूरे भारत में बोया जा सकता है. यह किस्म बहुत अच्छी उपज देती है. कई जगहों पर किसानों ने इससे प्रति हेक्टेयर 7 टन लगभग 28 क्विंटल प्रति एकड़) से भी ज़्यादा पैदावार हासिल की है. यह पुरानी किस्मों जैसे एच.डी. 2967 और एच.डी. 3086 के मुकाबले 10-15 फीसद ज़्यादा उपज देती है.
यह किस्म पूरी तरह से स्वदेशी प्रयासों से (यानी भारत में ही) पुरानी किस्मों को मिलाकर तैयार की गई है. इस किस्म को 'पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम' (PPVFRA) के तहत पंजीकृत भी किया गया है ताकि किसानों के अधिकारों की रक्षा हो सके.
इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है कि यह फसल पकने के समय होने वाली तेज गर्मी को भी आसानी से झेल जाती है. इससे दाना सिकुड़ता नहीं है और पैदावार अच्छी होती है. यह किस्म गेहूं में लगने वाले तीनों तरह के रतुआ रोग (पीला, भूरा और काला रस्ट) के प्रति बहुत मजबूत है. इससे फफूंदनाशक दवाओं पर होने वाला खर्च कम हो जाता है. इसका पौधा लगभग 98 सेंटीमीटर का होता है और तना काफी मजबूत होता है. इस वजह से तेज हवा या सिंचाई के समय फसल गिरती नहीं है.
किसान समय से पहले यानी अगेती बिजाई करते हैं, उनके लिए यह किस्म सबसे अच्छी है. अगेती बिजाई से इसकी पैदावार और भी बढ़ जाती है. इसे किसान अक्टूबर में बोआई कर सकते हैं.
डॉ. राजवीर ने बताया कि पिछले साल के नतीजों ने दिखाया है कि यह किस्म पूरे भारत में सफल है, खासकर मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के किसानों ने इसके बहुत अच्छे नतीजे बताए हैं. जहां पर जाड़े में तापमान उत्तर भारत की तुलना में अधिक होता है. इस नई किस्म की बुवाई का समय सामान्य गेहूं से अलग है. इसे मध्य अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच बोना सबसे अच्छा रहता है, यानी सामान्य बुवाई से करीब 15 दिन पहले.
अगेती बुवाई का दोहरा फायदा है. एक तो यह फसल को बाद में पड़ने वाली तेज गर्मी से बचाती है और दूसरा, इससे पैदावार भी बढ़ती है. यह किस्म पकने में लगभग 130 -160 दिन का समय लेती है और इसकी पैदावार क्षमता बहुत शानदार है, जो प्रति हेक्टेयर लगभग 75 क्विंटल तक पहुंच सकती है. अगर नवंबर में बोआई करते हैं तो तब भी इसकी पैदावार 70 क्विंटल तक मिल जाती है.