बरसात के मौसम के दौरान कपास की फसल को सफेद मक्खी, थ्रिप्स और हरा तेला वगैरह रस चूसक कीट काफी नुकसान पहूंचाते हैं. रस चूसक कीटों की रोकथाम के लिए ये बड़ा जरूरी है कि इनकी पहचान की जाए और सही निवारण किया जाए. कपास में लगने वाले कीट और रोग न केवल इसकी पैदावार को कम करते हैं, बल्कि इसकी गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं. इस फसल में लगने वाले कीटों और रोगों का समय रहते पता लगाकर उनका निदान कर किसान अधिक व गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. इसलिए किसानों को कपास के प्रमुख कीटों व रोगों व उनके प्रबंधन की जानकारी होना बहुत जरूरी है. ऐसे में आइए जानते हैं कपास में लगने वाले रस चूसक कीट के बारे में और किन दवाओं का इस्तेमाल कर किसान इसे बढ़ने से रोक सकते हैं.
कपास पर आक्रमण करने वाले कीटों को दो श्रेणियों में बांटा गया है, रस चूसने वाले और थ्रिप्स बोरर. कपास की फसल पर मुख्य रूप से रस चूसने वाले कीट जैसे हरा एफिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, एफिड तथा मिली बग और टिंडा बोरर कीट जैसे तम्बाकू सुंडी, चित्तीदार सुंडी, हरी सुंडी और गुलाबी सुंडी का प्रकोप होता है. जैसे-जैसे बीटी कपास का उत्पादन बढ़ा, टिंडा बोरर कीटों का प्रकोप कम होने लगा. लेकिन इसके उलट सफेद मक्खी और थ्रिप्स जैसे रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप बढ़ने लगा. वर्तमान में सफेद मक्खी को इस फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले कीट के रूप में देखा गया है. इस कीट का उचित समय पर प्रबंधन न करने पर फसल को लगभग 30-35 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है.
फसल किस्म और संकर बीटी किस्म का करें चयन- देसी कपास सफेद मक्खी और पत्ती मरोड़ रोग के प्रति प्रतिरोधी है. मौजूदा स्थिति में इससे निपटने के लिए देसी कपास की किस्मों जैसे आरजी-8, आरजी-542 और एचडी-123 की बुवाई करें.
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846-2 बीजी-ii, 841-2 बीजी ii, जेडसीएच-1101 (सिंघम), जेडसीएच-1102 (जुहारी मिल्खा), 6317-2 बीजी-ii, 6488-2 बीजी ii, बायो-2510 बीजी. ii, BIO-2113-2 BG- ii, Z,CH-904 (सिल्वर), NCS-858 BG-ii, RCH-650 BG-ii, M. RC-4744 BG ii, VCH-1532, SWCH-4744, ABCH--243, ABCH-243, सुपर-971, VCH-1518, PRCH--302, SWCH-4707, SRCH--666, RCH--776, RCH-314, N. CCH--0316, NCS--855, PRCH--7799, SWCH--4704, RCH--773, NCS--9002, PCH--9604, BIO--6539-2 समय पर इसकी बुवाई करके सफेद मक्खी और पत्ती मरोड़ रोग को काफी हद तक रोका जा सकता है.
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