कपास में रस चूसक कीट का अटैक हो जाए तो क्या करें? किन दवाओं का करें इस्तेमाल?

कपास में रस चूसक कीट का अटैक हो जाए तो क्या करें? किन दवाओं का करें इस्तेमाल?

कपास पर आक्रमण करने वाले कीटों को दो श्रेणियों में बांटा गया है, रस चूसने वाले और थ्रिप्स बोरर. कपास की फसल पर मुख्य रूप से रस चूसने वाले कीट जैसे हरा एफिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, एफिड तथा मिली बग और टिंडा बोरर कीट जैसे तम्बाकू सुंडी, चित्तीदार सुंडी, हरी सुंडी और गुलाबी सुंडी का प्रकोप होता है. जैसे-जैसे बीटी कपास का उत्पादन बढ़ा, टिंडा बोरर कीटों का प्रकोप कम होने लगा.

कपास की फसल पर कीट का खतराकपास की फसल पर कीट का खतरा
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 08, 2024,
  • Updated Aug 08, 2024, 12:40 PM IST

बरसात के मौसम के दौरान कपास की फसल को सफेद मक्खी, थ्रिप्स और हरा तेला वगैरह रस चूसक कीट काफी नुकसान पहूंचाते हैं. रस चूसक कीटों की रोकथाम के लिए ये बड़ा जरूरी है कि इनकी पहचान की जाए और सही निवारण किया जाए. कपास में लगने वाले कीट और रोग न केवल इसकी पैदावार को कम करते हैं, बल्कि इसकी गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं. इस फसल में लगने वाले कीटों और रोगों का समय रहते पता लगाकर उनका निदान कर किसान अधिक व गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. इसलिए किसानों को कपास के प्रमुख कीटों व रोगों व उनके प्रबंधन की जानकारी होना बहुत जरूरी है. ऐसे में आइए जानते हैं कपास में लगने वाले रस चूसक कीट के बारे में और किन दवाओं का इस्तेमाल कर किसान इसे बढ़ने से रोक सकते हैं.

कपास पर आक्रमण करने वाले कीटों को दो श्रेणियों में बांटा गया है, रस चूसने वाले और थ्रिप्स बोरर. कपास की फसल पर मुख्य रूप से रस चूसने वाले कीट जैसे हरा एफिड, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, एफिड तथा मिली बग और टिंडा बोरर कीट जैसे तम्बाकू सुंडी, चित्तीदार सुंडी, हरी सुंडी और गुलाबी सुंडी का प्रकोप होता है. जैसे-जैसे बीटी कपास का उत्पादन बढ़ा, टिंडा बोरर कीटों का प्रकोप कम होने लगा. लेकिन इसके उलट सफेद मक्खी और थ्रिप्स जैसे रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप बढ़ने लगा. वर्तमान में सफेद मक्खी को इस फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले कीट के रूप में देखा गया है. इस कीट का उचित समय पर प्रबंधन न करने पर फसल को लगभग 30-35 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है.

सफेद मक्खी को रोकें

फसल किस्म और संकर बीटी किस्म का करें चयन- देसी कपास सफेद मक्खी और पत्ती मरोड़ रोग के प्रति प्रतिरोधी है. मौजूदा स्थिति में इससे निपटने के लिए देसी कपास की किस्मों जैसे आरजी-8, आरजी-542 और एचडी-123 की बुवाई करें.

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संकर किस्मों का करें इस्तेमाल

846-2 बीजी-ii, 841-2 बीजी ii, जेडसीएच-1101 (सिंघम), जेडसीएच-1102 (जुहारी मिल्खा), 6317-2 बीजी-ii, 6488-2 बीजी ii, बायो-2510 बीजी. ii, BIO-2113-2 BG- ii, Z,CH-904 (सिल्वर), NCS-858 BG-ii, RCH-650 BG-ii, M. RC-4744 BG ii, VCH-1532, SWCH-4744, ABCH--243, ABCH-243, सुपर-971, VCH-1518, PRCH--302, SWCH-4707, SRCH--666, RCH--776, RCH-314, N. CCH--0316, NCS--855, PRCH--7799, SWCH--4704, RCH--773, NCS--9002, PCH--9604, BIO--6539-2 समय पर इसकी बुवाई करके सफेद मक्खी और पत्ती मरोड़ रोग को काफी हद तक रोका जा सकता है. 

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खेती का सही तरीका अपनाएं

  • रबी की फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी में मौजूद कीट और पोषक पौधे नष्ट हो जाएं और कपास की फसल को अच्छा पोषण, ताकत और विकास में मदद मिले.
  • फसल की बुवाई अप्रैल से 20 मई के बीच पूरी कर लें, ताकि सफेद मक्खी और पत्ती मोड़ रोग का प्रकोप कम हो. इस अवधि के बाद बोई गई कपास की फसल में सफेद मक्खी का प्रकोप अधिक होगा और इसका उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
  • फसल के आसपास पाए जाने वाले खरपतवारों (तंदला, इट्साइट, पीली बूटी, कंधी बूटी और पूठ कंधा) को समय-समय पर हाथ से उखाड़कर या खरपतवारनाशक का छिड़काव करके नष्ट करें.
  • कपास की फसल के चारों ओर अवरोध फसल के रूप में ज्वार, बाजरा और मक्का की दो कतारें लगाना लाभदायक होता है.
  • उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें. कपास की फसल में नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अधिक प्रयोग न करें, ताकि सफेद मक्खी और पत्ती मोड़ रोग का प्रकोप कम हो सके.
  • बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम पोटेशियम युक्त उर्वरक का प्रयोग करें और कलियां आने पर 20 प्रतिशत पोटेशियम नाइट्रेट का 15 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें.
  • आवश्यकतानुसार फसल की सिंचाई करें. आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर रस चूसने वाले कीटों और रोगों का प्रकोप बढ़ने की सम्भावना रहती है. यदि सम्भव हो तो टपक सिंचाई पद्धति का प्रयोग करें.

प्रभावी तरीके का करें उपयोग

  • फरवरी माह से ही मेजबान पौधों जैसे सब्जियों, फूल वाले पौधों और खरपतवारों पर सफेद मक्खी की जांच और प्रबंधन करते रहें.
  • सफेद मक्खी के शुरुआती संक्रमण को रोकने के लिए, बुवाई से पहले एक किलोग्राम कपास के बीज को 4.0 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस या 5.0 ग्राम थायमेथोक्सम 70 डब्ल्यूएस से उपचारित किया जाना चाहिए. इससे सफेद मक्खी और पत्ती कर्ल रोग का संक्रमण कम हो सकता है.
  • बुवाई से 60 दिनों तक सफेद मक्खी के शुरुआती संक्रमण की रोकथाम के लिए नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग करें.
  • किसानों को बुवाई के 30 दिनों के बाद से फसल में कम से कम दो बार प्रति सप्ताह सफेद मक्खी की जांच करते रहना चाहिए और जब इस कीट की संख्या 8-12 वयस्क या 16-20 किशोर प्रति पत्ती के आर्थिक नुकसान स्तर (ईटीएल) तक पहुंच जाए, तो कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए.

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