राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ (BKS) ने विवादों में घिरे खरपतवारनाशक ग्लाइफोसेट की बिक्री पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग की है. बीकेएस का कहना है कि इस केमिकल की लगातार बिक्री "मुफ्त में कैंसर परोसने" के जैसा है और लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है.
बीकेएस ने एक बयान में कहा कि भले ही कृषि क्षेत्र में ग्लाइफोसेट के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है, लेकिन इसके इस्तेमाल में कोई कमी नहीं आई है. इसका असर अब किसानों और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर दिखने लगा है. बयान में यह भी कहा गया है कि ग्लाइफोसेट के इस्तेमाल से कैंसर, दिल का रोग, स्किन एलर्जी और गंभीर पाचन रोगों के मामले बढ़ रहे हैं.
बीकेएस के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर ग्लाइफोसेट के दुष्प्रभावों का जिक्र किया है. वैज्ञानिकों ने इस रसायन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की जरूरतों पर बल दिया है. इस बारे में बीकेएस ने भारतीय कृषि मंत्रालय से इस मामले की गंभीरता से जांच करने की अपील की है.
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बीकेएस महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अक्टूबर 2022 में ग्लाइफोसेट पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इस प्रतिबंध के बावजूद यह खरपतवारनाशक किसानों को बेचा जा रहा है. उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध है तो इसे कैसे बेचा जा रहा है और इसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है. कृषि मंत्रालय के आदेश के अनुसार अब ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल केवल पेस्ट कंट्रोल ऑपरेटरों के जरिए ही किया जा सकता है.
बीकेएस ने कहा कि ग्लाइफोसेट न केवल इंसानों के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है. यह रसायन पानी, मिट्टी और हवा को जहरीला बना सकता है और जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचा सकता है. संगठन ने आरोप लगाया कि जब यह रसायन किसानों को बेचा जाता है तो इसके खतरनाक प्रभावों के लिए उन्हें दोषी ठहराना गलत है.
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भारत में ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल अभी भी कई इलाकों में जारी है, हालांकि इसे सिर्फ चाय बागानों और चाय बागानों से सटे गैर-बागान इलाकों में ही इस्तेमाल करने की अनुमति है. 2020 में केंद्र सरकार ने इस केमिकल पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन दो साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी इस पर प्रतिबंध लागू नहीं हो पाया है. वहीं, केरल और तेलंगाना जैसे राज्य पहले ही इस केमिकल पर प्रतिबंध लगा चुके हैं.
दुनिया भर के 35 देशों ने ग्लाइफोसेट के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि भारत में इसका इस्तेमाल जारी है. इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, ताकि इससे किसानों और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को और अधिक खतरा न हो.