
टमाटरवर्गीय सब्जियां हमारे देश में खेती की प्रमुख सब्जी फसलें हैं. इसे देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए फसल सलाह जारी की है. इसमें बताया गया है कि किसान उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में टमाटर की बसंत ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए नर्सरी में बीज की बुवाई कर दें और दिसंबर से जनवरी में तैयार पौध की रोपाई करें. इसके लिए उपयुक्त उन्नत या संकर किस्में जैसे-पूसा हाइब्रिड-1, पूसा उपहार, पूसा-120, पूसा शीतल, पूसा सदाबहार प्रमुख हैं.
इन किस्मों की खेती कर किसान बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं. अभी टमाटर के बढ़ते रेट को देखते हुए पूसा की ये किस्में शानदार हैं. किसान अधिक उपज देने वाली इन किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट या दोमट भूमि जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश उपलब्ध हो, टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त होती है. इसके लिए जल निकास की उचित व्यवस्था का होना जरूरी है.
टमाटर की उन्नत किस्मों के लिए 350-400 ग्राम और संकर किस्मों के लिए 200-250 ग्राम बीज एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए पर्याप्त है. सीमित बढ़वार वाली प्रजातियों की रोपाई 60X60 सें.मी. और असीमित बढ़वार वाली किस्मों की रोपाई 75-90X60 सें.मी. की दूरी पर बनी पंक्तियों में शाम के समय करें.
रोपाई के एक माह पहले गोबर या कंपोस्ट की अच्छी सड़ी खाद 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में अच्छी तरह मिला लें. टमाटर की उन्नत किस्मों में 75:100:50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और संकर असीमित बढ़वार वाली किस्मों में 50:250:100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम बेसल डोज के रूप में डालें.
इन किस्मों में क्रमशः 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 55-60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की प्रथम टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 20-25 दिनों बाद और इतनी ही मात्रा की दूसरी टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 45-50 दिनों बाद करनी चाहिए.
अच्छी पैदावार पाने के लिए हल्की निराई-गुड़ाई करें और पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा दें. टमाटर की असीमित बढ़वार वाली प्रजातियों में सहारा नहीं देने से पौधों की वृद्धि और उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इससे मिट्टी के संपर्क में आने से फल अलग-अलग रोगों के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं. इससे फसल का बचाव करना जरूरी है.
खेतों में खरपतवार नियंत्रण करते समय खुर्पी या कुदाल से गुड़ाई कर देने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है. सूखे घास-फूस की पलवार अथवा पुआल (मल्च) पौधों के नीचे बिछाने से अच्छी बढ़वार के साथ-साथ खरपतवार का नियंत्रण भी हो जाता है.
झुलसा रोग की रोकथाम के लिए स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें. फसलचक्र में, गैर सोलनेसी कुल के पौधों का उपयोग करें. फफूंदनाशक रसायन जैसे मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर, जिनेब 2 ग्राम प्रति लीटर, साइमोक्सानिल+मैंकोजेब 1.5-2 ग्राम या एजोक्सीस्ट्रॉबिन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव जरूर करें.