बिहार की दुनिया में मशहूर ‘शाही’ लीची अब अपने अहम पड़ाव- कलर ब्रेक स्टेज-में प्रवेश कर चुकी है. यही वह नाजुक समय है जब हरे कच्चे फल धीरे-धीरे मनमोहक गुलाबी या लाल रंगत में बदलने लगते हैं, और उनकी मिठास भी बढ़ने लगती है. इस निर्णायक अवस्था में लीची उत्पादकों को विशेष सतर्कता बरतने और वैज्ञानिक तरीकों से प्रबंधन करने की जरूरत है, जिससे फलों की गुणवत्ता, मिठास और बाजार में उनकी कीमत को काफी बढ़ाया जा सके. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा विभागाध्यक्ष, पादप रोग विज्ञान और फल बागवानी विशेषज्ञ प्रोफेसर एस. के. सिंह का कहना है कि कलर ब्रेक स्टेज लीची उत्पादन का वह अहम मोड़ है, जहां थोड़ी सी वैज्ञानिक समझदारी लीची को एक साधारण फल से खास ब्रांड में बदल सकती है.
डॉ एस. के. सिंह ने बताया कि लीची कलर ब्रेक स्टेज पर इस समय खास चीजों पर अमल करने की जरूरत होती है. इस समय सप्ताह में 2-3 बार हल्की सिंचाई करें. यदि तापमान 35°C से अधिक हो, तो खेत में नमी बनाए रखना जरूरी है. ध्यान रहे, जलभराव से बचें और यदि संभव हो तो ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें. इस अवस्था में पोटाश और कैल्शियम आधारित उर्वरक फल की त्वचा को मजबूती प्रदान करने और रंग को गहरा करने में सहायक होते हैं. इसके अतिरिक्त, 0.2 फीसदी बोरॉन का फोलियर स्प्रे भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है.
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फल छेदक कीट, एन्थ्रेक्नोज और पाउडरी मिल्ड्यू जैसे हानिकारक कीटों और रोगों से बचाव के लिए नीम तेल, ट्राइकोडर्मा या अन्य जैविक एजेंटों का प्रयोग करें. यदि संक्रमण अधिक गंभीर हो, तो अंतिम रासायनिक छिड़काव फल तोड़ने से 12 से 15 दिन पहले करें. इसके लिए आप इनमें से किसी एक का उपयोग कर सकते हैं-नोवल्यूरॉन (10% EC) @ 1.5 मि.ली./लीटर या इमामेक्टिन बेन्जोएट (5% SG) @ 0.7 ग्राम/लीटर. छिड़काव करते समय स्टिकर या डिटर्जेंट जरूर मिलाएं, और यदि बारिश हो जाए तो छिड़काव को दोहराएं.
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लीची के बाग में इस अवस्था में उचित प्रबंधन करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इस चरण में अच्छी क्वालिटी के फल के लिए ध्यान केंद्रित करना चाहिए, नियमित निगरानी कर जरूरत के अनुसार उपाय करके उपज को बढ़ाया जा सकता है.