कपास भारत की प्रमुख नकदी फसलों में आती है. किसानों को इसका अच्छा दाम मिलता है. कृषि क्षेत्र में कपास की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. अपने देश में दुनिया का 22 फीसदी कॉटन पैदा होता है. महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना भारत में इसके बड़े उत्पादक प्रदेश हैं. देशी कपास के लिए रेतीली दोमट से चिकनी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है. जिन खेतों में पानी का भराव रहता है, उनमें देशी कपास नहीं लेनी चाहिए. क्षारीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं रहती है. अच्छे उत्पादन के लिए कपास की बिजाई, उर्वरक और रोगों के निदान के साथ-साथ सिंचाई पर भी ध्यान देने की जरूरत है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कपास में पलेवा के अतिरिक्त 4-5 सिंचाईयां देनी चाहिए. इससे उत्पादन अच्छा होगा और फायदा मिलेगा.
वैज्ञानिकों के अनुसार पहली सिंचाई बोने के 35-40 दिन बाद करनी चाहिए और इसके बाद सिंचाईयां 25-30 दिन के अन्तर पर जून, जुलाई, अगस्त एवं सितंबर में करनी चाहिए. आखिरी सिंचाई सितंबर के दूसरे पखवाड़े के बाद ही करें. देसी कपास (आर जी-8) में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से सिफारिश किए गए नाइट्रोजन की 75 प्रतिशत मात्रा (67.5 किग्रा / हेक्टेयर) छह बराबर भागों में 15 दिन के अंतराल से देने पर सतही सिंचाई की तुलना में पैदावार में वृद्धि तथा सिंचाई जल की बचत होती है.
बुवाई का उपयुक्त समय अप्रेल के प्रथम सप्ताह से मई के प्रथम सप्ताह तक होता है. इसके बाद बोने पर पैदावार में कमी आ जाती है. 12 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बोना उपयुक्त है. इससे खेत में पौधों की वांछित संख्या उपलब्ध हो जाती है.
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गुलाबी लट की रोकथाम के लिए साढ़े तीन से चालीस किलोग्राम तक बीज को 3 ग्राम एल्यूमिनियम फास्फाईड से धूमित (फ्यूमिगेट) करें तथा बीज को 24 घण्टे तक धूमित अवस्था में रखें. यदि घुमित करना सम्भव न हो तो बीज की पतली तह बनाकर तेज धूप में तपायें. जड़गलन की समस्या वाले खेतों में बुवाई से पूर्व 24 किलोग्राम व्यापारिक जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी डालकर मिला दें.
जिन खेतों में जड़ गलन के रोग का प्रकोप अधिक है उन खेतों के लिए बुवाई के पूर्व 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम को 200 किलो आर्द्रता युक्त गोबर की खाद (एफ.वाई.एम) में अच्छी तरह मिलाकर 10-15 दिनों के लिए छाया में रख दें. इस मिश्रण को बुवाई के समय एक हेक्टेयर में पलेवा करते समय मिट्टी में मिला दें. साथ में ट्राइकोडरमा जैव से बीज उपचार करें.
किसान को गोबर की खाद अधिक मात्रा में फसल चक्र में डालनी चाहिए. इसके अतिरिक्त कपास के लिए 90 किलोग्राम नत्रजन एवं 20 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर देना चाहिए. इसके लिए 45 किलो नाइट्रोजन एवं 20 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर बुवाई से पहले खेत की तैयारी के समय ड्रिल करें. यदि किसी कारणवश बुवाई के समय नत्रजन की उपरोक्त मात्रा न दी जा सके तो पहली सिंचाई के समय तो अवश्य देंवे. शेष बची हुई नाइट्रोजन खड़ी फसल में अगस्त के प्रथम पखवाड़े में टॉप ड्रेसिंग विधि से देकर सिंचाई करें. नाइट्रोजन की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर घटाई-बढ़ाई जा सकती है.
कपास के खेत में खरपतवार न पनपने दें. इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई के बाद कसिये से करें, इसके बाद एक और निराई-गुड़ाई त्रिफाली से करें. रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डामेथलीन (30 ई.सी.) 5 ली प्रति हैक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर फ्लेटफेन नोजल से बिजाई से पूर्व या बिजाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें. प्रथम सिंचाई के बाद एक बार गुड़ाई करना अधिक लाभदायक रहता है.
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