धान की फसल में बालियां और दाने बनने लगे हैं. वहीं, कई राज्यों में धान की कटाई में अभी समय है. इसमें एक राज्य बिहार भी है जहां धान की फसल बढ़वार पर है. यहां के किसानों के लिए इस बीच एक समस्या खड़ी हो गई है. दरअसल बिहार के कई क्षेत्रों में धान की फसल में कई प्रकार के कीट और रोगों का प्रकोप देखा जा रहा है. इस कीट के आक्रमण को देखते हुए बिहार सरकार ने किसानों के लिए चेतावनी जारी की है. वहीं, इसके लिए बिहार कृषि विभाग किसानों की मदद कर रहा है. सरकार के कृषि विभाग ने धान की फसल में लगने वाले रोग से बचने के लिए एडवाइजरी जारी की है. इसमें बताया गया है कि धान में लगने वाले रोग से उसे कैसे बचाया जा सकता है.
शीथ ब्लाईट: यह रोग मृदा जनित है, जो खेतों में अत्यधिक जल जमाव के कारण धान की फसल में लगते हैं. अधिक प्रकोप की स्थिति में रोग सबसे ऊपर की पत्ती (फ्लैग लीफ) तक पहुंच जाता है. रोग ग्रस्त पौधे की बालियों में दाने पूरी तरह नहीं भरते हैं. वहीं, इस रोग के लक्षण शुरू में मेंड़ों के आसपास और खेतों में उन जगहों पर पाए जाते हैं, जहां खरपतवार के साथ जलजमाव की स्थिति होती है.
प्रबंधनः शीथ ब्लाईट रोग लगने पर खेत में जल निकासी का उत्तम प्रबंध करें. वहीं, इस रोग के लगने पर फसल में कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत, घुलनशील चूर्ण का 1 ग्राम या वैलिड माइसीन 3 प्रतिशत या प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें.
शीथ रॉट: शीथ रॉट रोग लगने पर पत्ते में भूरे-भूरे या लाल-भूरे रंग के धब्बे दिखने शुरू हो जाते हैं. धब्बे धीरे-धीरे बड़े होते हैं जिससे फसल काफी प्रभावित होता है और सड़ना शुरू हो जाता है. इसके अलावा ये रोग दाने के अंकुरण को धीमा कर देता है. वहीं, अनाज की उपज को कम करता है.
प्रबंधनः इस रोग के लगने पर खेत में जल निकासी का बेहतर प्रबंध करें. साथ ही धान की फसल में कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण प्रति 5 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें. इससे आपकी फसल को नुकसान नहीं होगा.
पत्र लपेटक कीट: भारी बारिश की वजह से धान की फसल में पत्र लपेटक कीट लगने लगे हैं. ये कीट पत्तियों का बचा-खुचा रस चूस जाते हैं और फसल को बर्बाद कर देते हैं.
प्रबंधन: धान की फसल में पत्र लपेटक कीट लगने पर फसल की सिंचाई न करें. इसके अलावा इस कीट के लगने पर कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी दानेदार 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिड़काव करें.
तना छेदक कीट: यह कीट हल्के-भूरे रंग का होता है, जिसका जीवन चक्र 20 से 25 दिनों तक का होता है. यह कीट पौधों के तने के भाग पर बैठकर रस चूसता है. अधिक रस निकलने की वजह से धान के पौधे पीले पड़ जाते हैं. इस कीट का आक्रमण मौसम के उतार–चढ़ाव विशेषकर देर से हुई बारिश के कारण भूमि में नमी और किसानों द्वारा यूरिया के अधिक मात्रा में उपयोग और पोटाश के कम उपयोग के कारण होता है.
प्रबंधन: इस समय यह कीट धान की खड़ी फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है, जिसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ता है और किसानों को काफी आर्थिक नुकसान होता है. इस कीट से बचाव के लिए धान में बाली निकलते समय खेत में ज़्यादा जल-जमाव नहीं करना चाहिए. साथ ही फसल में कीटनाशक का छिड़काव करें.