
औषधीय और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में बढ़ती मांग के कारण एलोवेरा आज किसानों के लिए एक बेहद फायदे का सौदा बन चुका है. आयुर्वेदिक दवाइयों, ब्यूटी प्रोडक्ट्स, जूस और जेल में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाला एलोवेरा ऐसी फसल है जिसकी खेती कम लागत में शुरू होकर कई साल तक लगातार मुनाफा देती है. यही वजह है कि देश के कई किसान अब पारंपरिक फसलों को छोड़कर एलोवेरा की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं.
एलोवेरा की खेती के लिए ज्यादा उपजाऊ जमीन की जरूरत नहीं होती. यह हल्की बलुई या दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगता है. जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए क्योंकि पानी भराव से पौधे खराब हो जाते हैं. गर्म और शुष्क जलवायु एलोवेरा के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. कम पानी में भी यह फसल अच्छी पैदावार देती है जिससे सिंचाई का खर्च भी कम रहता है. एलोवेरा की खेती आमतौर पर पौधों से की जाती है. एक एकड़ जमीन में करीब 6,000 से 7,000 पौधे लगाए जाते हैं. पौधों की कतार से कतार दूरी लगभग 2 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 2 फीट रखी जाती है. रोपण के 7–8 महीने बाद पहली कटाई शुरू हो जाती है.
अगर एक एकड़ में एलोवेरा की खेती की जाए तो शुरुआती लागत करीब 50 हजार प्रति एकड़ तक होती है. जो बात सबसे अच्छी है, वह यह है कि एलोवेरा एक पूरे साल उगने वाली फसल है यानी एक बार लगाने के बाद 4–5 साल तक दोबारा बुआई का खर्च नहीं करना पड़ता. एक एकड़ में सालाना औसतन 40 से 50 टन एलोवेरा की पत्तियां मिलती हैं. बाजार में एलोवेरा की पत्तियों का भाव ₹3 से ₹6 प्रति किलो तक मिलता है, जो इलाके और मांग पर निर्भर करता है. अगर औसतन 4 रुपये प्रति किलो भी कीमत मिले तो करीब डेढ़ लाख रुपये तक कमाए जा सकते हैं.
खर्च निकालने के बाद किसान को 1 लाख रुपये से 1.10 लाख रुपये प्रति एकड़ का नेट प्रॉफिट आसानी से हो सकता है. अगर किसान एलोवेरा का जूस, जेल या प्रोसेसिंग कर खुद बेचता है, तो मुनाफा इससे कई गुना बढ़ सकता है. इस वजह से ही एलोवेरा की खेती आज के समय में किसानों के लिए एक सुरक्षित और फायदेमंद विकल्प बनकर उभरी है. कम लागत, कम जोखिम और स्थायी बाजार के कारण यह फसल वाकई 'इस एक चीज की खेती यानी पैसा ही पैसा' साबित हो रही है.
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