खरीफ मौसम में धान की फसल की रोपाई का कार्य लगभग पूरा हो चुका है. रोपित धान की फसल में कई हानिकारक कीट और रोग नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस समय धान में लगने वाला भूरा फुदका (Brown Planthopper - BPH), जिसे भूरा मधुआ या फूदका कीट और तेला कीट भी कहा जाता है. यह धान की फसल के लिए काफी घातक होता है. भूरा फुदका कीट धान के पौधों का रस चूसकर फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है. इसका प्रकोप धान की फसल पर बहुत अधिक होता है. इस कीट के अधिक प्रकोप की स्थिति में धान के पौधे पूरी तरह सूख जाते हैं, जिससे 'हॉपरबर्न' नामक स्थिति उत्पन्न होती है. इस स्थिति में पौधे पूरी तरह झुलस जाते हैं, जिससे 100 प्रतिशत तक फसल का नुकसान हो सकता है. इसकी रोकथाम के लिए पहले इसकी पहचान करना जरूरी है. कीट की रोकथाम के लिए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर कम लागत में धान की फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है. इसके लिए बताए गए सुझावों को अपनाना जरूरी है.
अगस्त माह शुरू हो गया है, इसलिए अपने धान के खेतों का निरीक्षण अंदर तक जाकर करें. क्योंकि, कई बार धान की फसल पर भूरा फुदका कीट(BPH) शुरुआत इसी माह में हो जाती है. इस कीट रोकथाम के पहले इसकी पहचान जरूरी है. इसकी शिशु सफेद होता है जिसकी लंबाई 0.6 मिमी होती है और यह पांचवें चरण में बैंगनी-भूरे रंग का हो जाता है, जिसकी लंबाई 3.0 मिमी होती है. वयस्क हॉपर 4.5-5.0 मिमी लंबा होता है और इसका शरीर पीले-भूरे से गहरे भूरे रंग का होता है. धान की फसल बढ़ रही हो तो निगरानी रखना जरूरी है. बीपीएच संक्रमण ज्यादातर सितंबर के पहले सप्ताह से शुरू हो जाता है. धान का भूरा फुदका कीट पौधे के निचले भाग में जड़ों के पास पाया जाता है और तनों का रस चूसता है. इस कीट की रोकथाम के लिए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने से फसल को नुकसान और अधिक रसायनों के प्रयोग से बचा जा सकता है.
इन उपायों को अपनाकर धान की फसल को भूरा फुदका कीट से कम लागत में फसल को बचाया जा सकता है. इसलिए भूरा फुदका कीट के प्रकोप से बचाव के लिए इन उपायों को अपनाएं.